महंगे होंगे कपड़े, कॉटन की कीमतें 11 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंची, कपड़ा उत्पादन में आई कमी


नई दिल्ली. कॉटन की कीमतें 2022 में लगभग 40 प्रतिशत बढ़ी हैं व मांग और आपूर्ति में तालमेल बिगड़ने यह 11 साल के उच्च स्तर पर हैं. यह सूती धागे के स्पिनरों, कॉटन आधारित टेक्सटाइल और वस्त्र निर्माताओं को नुकसान पहुंचा रहा है. इससे कई लोगों को देश भर में अपने प्रोडक्शन में कटौती के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

जहां स्पिनिंग मिल कम क्षमता के साथ काम कर रही हैं वहीं कई कपड़ा निर्माताओं ने फैक्ट्रियां बंद कर दी हैं. इस उद्योग के जानकारों का अनुमान है कि भारत में प्रति माह कपास की औसत खपत भी लगभग 29 लाख गांठ से घटकर 19 लाख गांठ प्रति माह हो गई है. इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि 2021-22 में कपास की आवक भी कम हुई है.

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उत्पादन हुआ कम
तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन ने इस मामले में मुंबई के कपड़ा आयुक्त को 3 बार प्रेजेंटेशन दी है. एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार के. वेंकटचलम कहते हैं, “तमिलनाडु में कई कताई मिलें हैं जो पूरे देश में 40 प्रतिशत तक उत्पादन में योगदान करती हैं. यह मिलें सप्ताह में केवल पांच दिन चल रही हैं, कई मिलें 12 घंटे की शिफ्ट अपना रही हैं और अपनी गतिविधियों को 12 घंटे के लिए बंद रख रही हैं. इसका मतलब है कि प्रभावी रूप से केवल 35 से 40 प्रतिशत उत्पादन चल रहा है.” उधर, भारत के नंबर एक कपास उत्पादक राज्य गुजरात में सूत के स्पिनरों को 30-40 रुपये प्रति किलोग्राम की नकद हानि हुई है. गुजरात स्पिनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रिपल पटेल कहते हैं, “अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों में वृद्धि और कम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग कताई मिलों को चिंतित कर रही है. हम खुश हैं कि किसानों को उनकी उपज के लिए उच्च मूल्य मिल रहा है, हम आशा करते हैं कि इनपुट लागत में मूल्य वृद्धि को आगे की ओर वितरित किया जाएगा. अकेले स्पिनर कीमतों में वृद्धि का बोझ नहीं उठा सकते.”

जमाखोरी से बढ़ रही कीमतें
सरकार ने अप्रैल में कपास पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क हटाकर इस क्षेत्र को समर्थन देने की कोशिश की है. इस कदम का उद्देश्य घरेलू कमी को दूर करने के लिए भारत के बाहर के बाजारों से खरीदारी को प्रोत्साहित करना था. हालांकि, वैश्विक जिंस बाजार को डर है कि कपास का शीर्ष निर्यातक भारत निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकता है और जिससे कीमतों में और उछाल आया है. वेंकटचलम ने कहा, “कपास व्यापार में लगे व्यापारियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने कपास का स्टॉक करना शुरू कर दिया है और बाजार में कमी पैदा कर रही है. इन सबके परिणामस्वरूप कपास की कीमत हाल के महीनों में 37,000 रुपये से 45,000 रुपये प्रति कैंडी से बढ़कर 97,000 रुपये 1,04,000 रुपये हो गई है.

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उपभोक्ताओं पर पड़ेगा बोझ
गौरतलब है कि कपास से लेकर कपड़े के उत्पादन तक जिस तरह उद्योग आर्थिक रूप से जूझ रहा है इसका असर जल्द ही उपभोक्ताओं पड़ सकता है. जाहिर है कि अगर हालात ऐसे बने रहे तो निर्माता अपना बोझ कम करने के लिए इनपुट कॉस्ट को उपभोक्ताओं की तरफ बढ़ा देंगे जिससे आने वाले दिनों में हमें कपड़ों के दामों वृद्धि देखने को मिल सकती है.

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