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वहीं, साइकिलिंग में भारत की ओर से रोनाल्डो सिंह और डेविड बेकहम भी हिस्सा ले रहे हैं। यह एक ऐसा इवेंट है, जिसमें भारतीय टीम का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है। 2018 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में नौ साइकिलिस्ट ने हिस्सा लिया था, लेकिन इसमें से कोई भी पदक नहीं जीत सका था। ऐसे में इस बार साइकिलिंग टीम से काफी उम्मीदें होंगी। खास तौर पर रोनाल्डो और बेकहम से।
ये दोनों खिलाड़ी पिछले कुछ समय में भारत के स्टार साइकिलिस्ट रहे हैं। दोनों ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में कई पदक जीते हैं। रोनाल्डो और बेकहम को किट अनावरण और सेंड-ऑफ कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने सम्मानित भी किया था। आइए इनके बारे में जानते हैं…
वैसे तो डेविड बेकहम फुटबॉल में काफी मशहूर हैं। वह इंग्लैंड के पूर्व कप्तान रह चुके हैं और उनके फ्री-किक का हर कोई दिवाना है। पर अभी हम जिस डेविड बेकहम की बात कर रहे हैं, वह इंग्लैंड नहीं बल्कि भारत के डेविड बेकहम हैं। यह फुटबॉल नहीं बल्कि साइकिलिंग को लेकर भारत में काफी चर्चाओं में हैं। बेकहम का नाम सबसे पहली बार 2020 में सामने आया था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जनवरी को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बेकहम का जिक्र किया था।
डेविड बेकहम
19 साल के बेकहम ने साल 2020 में हुए खेलो इंडिया यूथ गेम्स में अंडर-17 स्प्रिंट साइकिलिंग में 10.891 सेकंड का समय लेकर स्वर्ण पदक जीता था। इसके साथ ही उन्होंने अंडर-17 टीम स्प्रिंट में भी कांस्य पदक अपने नाम किया था। इसी को लेकर पीएम मोदी ने बेकहम की जमकर तारीफ की थी।
बेकहम निकोबार के कार निकोबार में पार्का गांव में रहते हैं। वहां उनका छोटा सा घर है और वह अपने मामाजी और नानाजी के साथ रहते हैं। वहां उनके घर के पीछे रोडस्टर साइकिल भी मिल जाएगी। बेकहम ने इसका मडगार्ड और टॉप ट्यूब निकाल दिया है, ताकि वह गांव में इस साइकिल से प्रैक्टिस कर सकें।
डेविड के मामा फुटबॉलर बेकहम के बहुत बड़े फैन हैं। 2002 में एक बार वह फीफा वर्ल्ड कप में इंग्लैंड और अर्जेंटीना के बीच मैच देख रहे थे। इस मैच में फुटबॉलर बेकहम ने फ्री-किक पर एक गोल किया था। इस गोल की मदद से इंग्लैंड ने मैच 1-0 से जीता था। इसके बाद साइकिलिस्ट बेकहम के मामा ने खूब जश्न मनाया था।
अगले साल यानी 2003 में साइकिलिस्ट बेकहम का जन्म हुआ था। तब मामा ने जिद्द कर उनका नाम डेविड बेकहम रखवाया था। 19 साल के बेकहम बताते हैं कि जब उनसे कोई ये बोलता है कि तुम फुटबॉल क्यों नहीं खेलते तो वह जवाब देते हैं- तुम फिर कैसे दो बेकहम के बीच का अंतर देख पाओगे। एक को दूसरे से कुछ तो अलग करना ही होगा। मैं साइकिलिस्ट डेविड बेकहम के नाम से मशहूर होना चाहता हूं। मुझे साइकिलिस्ट होने पर गर्व है।
डेविड साइकिलिस्ट देबोराह हैरोल्ड और ईसो एल्बेन को अपना आदर्श मानते हैं। इन दोनों ने भारत के लिए कई मेडल जीते हैं। बेकहम भी आगे चलकर इनकी तरह देश का नाम रौशन करना चाहते हैं। बेकहम को रास्ते में कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जब बेकहम एक साल के थे तो उनके पिता का 2004 सुनामी में निधन हो गया था।
इसके बाद 2014 में उनकी मां का भी गले में इन्फेक्शन की वजह से निधन हो गया था। बेकहम का उनके मामा और नाना ने ही ख्याल रखा। बेकहम बताते हैं कि वह अपने माता-पिता को काफी मिस करते हैं।
वह कहते हैं कि काश आज अगर वे जिंदा होते तो मुझे साइकिलिंग में चैंपियन बनते देख पाते। बेकहम बताते हैं कि उन्होंने खेलो इंडिया में अच्छा प्रदर्शन किया है और अब अपने प्रदर्शन को अगले लेवल पर ले जाना चाहते हैं। उनका सपना देश के लिए ओलंपिक में साइकिलिंग में पदक जीतना है।
मणिपुर के रहने वाले साइकिलिस्ट रोनाल्डो की भी कहानी कुछ-कुछ डेविड बेकहम जैसी ही है। रोनाल्डो के दिवंगत पिता रोबेन सिंह लैंटोजामी सीआरपीएफ के जवान रह चुके हैं। 2002 में वह श्रीनगर में तैनात थे और फीफा वर्ल्ड कप में ब्राजील और इंग्लैंड के बीच फुटबॉल मैच देख रहे थे। तब उन्हें पता नहीं था कि कई हजार किलोमीटर दूर इम्फाल में उनकी पत्नी पहले बच्चे को जन्म देने जा रही हैं।
कैसा पड़ा था रोनाल्डो नाम?
ब्राजील बनाम इंग्लैंड मैच के 50वें मिनट तक स्कोर 1-1 की बराबरी पर था। इसके बाद ब्राजील को एक फ्री-किक मिली और रोबेन सिंह ने अपने साथी जवान से शर्त लगाई कि इस पर रोनाल्डिन्हो गोल दागेंगे। ऐसा ही हुआ और रोनाल्डिन्हो ने 57वें मिनट में फ्री-किक पर गोल दागा और ब्राजील को 2-1 से जीत दिलाई। इसके बाद ही रोबेन ने अपने बेटे का नाम रोनाल्डो ने रखा था।
एशिया कप ट्रैक चैंपियनशिप रजत पदक के साथ रोनाल्डो (बाएं)
रोबेन सिंह चाहते थे कि रोनाल्डो सिंह लैंटोजामी भी फुटबॉलर बनें, लेकिन रोनाल्डो ने अपने दिल की सुनी और फुटबॉल की जगह साइकिलिंग को चुना। बाद में रोनाल्डो के परिवार वालों ने भी उनका साथ दिया और हर संभव मदद की। परिवार से समर्थन मिलने के बाद रोनाल्डो ने उन्हें निराश नहीं किया।
2016 में उन्हें भारतीय खेल प्राधिकरण ने चयनित किया। साई के बेहतरीन कोच की देखरेख में रोनाल्डो की प्रतिभा और निखरी। 2018 में रोनाल्डो सिंह को मेहनत का इनाम मिला और वह पहली बार भारतीय टीम में चुने गए। तब उनकी उम्र सिर्फ 16 साल थी।
रोनाल्डो सिंह
रोनाल्डो की हाइट 6.1 फुट है और इसका उन्हें साइकिलिंग में जमकर फायदा मिलता है। उन्होंने 2019 में 17 साल की उम्र में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में आयोजित जूनियर विश्व चैंपियनशिप में टीम स्प्रिंट में रोनाल्डो ने स्वर्ण पदक जीता और जूनियर विश्व चैंपियन बन गए। 2019 में एशिया कप ट्रैक चैंपियनशिप में रोनाल्डो छुपा रुस्तम साबित हुए।
उन्होंने 200 मीटर टाइम ट्रायल स्प्रिंट के क्वालिफाइंग राउंड में सर्फ 10.065 सेकंड का समय निकालकर नया वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया। इसके बाद 2022 एशियाई ट्रैक साइकिलिंग चैंपियनशिप में रोनाल्डो ने कुल तीन पदक जीते। रोनाल्डो ने स्प्रिंट इवेंट में रजत पदक, एक किलोमीटर टाइम ट्रायल और टीम स्प्रिंट में एक-एक कांस्य पदक जीते।वह एक चैंपियनशिप में तीन पदक जीतने वाले भारत के पहले साइकिलिस्ट बने।
रोनाल्डो सिंह (दाएं)
रोनाल्डो के पिता का 2017 में निधन हो गया था। वह अपने पिता को ही अपना आदर्श मानते हैं। रोनाल्डो बताते हैं कि उन्होंने जीवन में जो कुछ भी सीखा है, वह अपने पिता से ही सीखा है। पिता ने ही एथलीट बनने में रोनाल्डो की मदद की थी।
रोनाल्डो बताते हैं कि भले ही उनके पिता इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन वह जब भी किसी टूर्नामेंट में उतरते हैं तो अपने पिता को ध्यान करते हैं। अब रोनाल्डो का अगला लक्ष्य राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को पदक दिलाने के साथ ओलंपिक में पदक जीतने पर भी है।
रोनाल्डो सिंह
विस्तार
भारतीय दल 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने के लिए बर्मिंघम रवाना हो चुकी है। इस साल 215 भारतीय एथलीट्स राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय टीम का हिस्सा होंगे। इनमें 108 पुरुष और 107 महिला खिलाड़ी शामिल हैं। वहीं, 107 स्टाफ भी टीम इंडिया के साथ बर्मिंघम जाएंगे। राष्ट्रमंडल खेलों की शुरुआत 28 जुलाई से हो रही है।
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