COVID 19: देश के 37 अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों पर डेल्टा बनाम ओमिक्रॉन पर पहला अध्ययन, टीका न लेने वालों में 22 फीसदी की मौत


अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Fri, 04 Feb 2022 01:47 AM IST

सार

ओमिक्रॉन का कम आयु वालों पर अधिक असर देखने को मिला है। पिछले साल 15 नवंबर से 15 दिसंबर और 16 दिसंबर से 17 जनवरी 2022 के बीच 37 अस्पतालों में डेल्टा और ओमिक्रॉन का असर जानने के लिए यह अध्ययन हुआ है।

कोरोना जांच (सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : पीटीआई

ख़बर सुनें

देश के 37 अस्पतालों ने पहली बार डेल्टा बनाम ओमिक्रॉन स्वरूप के असर पर किया गया चिकित्सीय अध्ययन पूरा हो गया। इसके अनुसार टीका न लेने वाले संक्रमित मरीजों में 22 फीसदी की मौत हुई है जिनमें से 83 फीसदी संक्रमण की चपेट में आने से पहले किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे। इसके अलावा टीके की दोनों खुराक लेने वालों में मृत्युदर 10 फीसदी दर्ज की गई। हालांकि इनमें 91 फीसदी में पहले से ही कोई न कोई बीमारी थी।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बृहस्पतिवार को प्रेस कान्फ्रेंस में बताया, टीकाकरण के बाद इस तीसरी लहर में कोरोना की चपेट में आए मरीजों को जब अस्पतालों में भर्ती किया गया तो उपचार के दौरान 10.20 फीसदी की मौत हुई। इनकी केस हिस्ट्री देखी गई तो पता चला कि 91 फीसदी मृतकों को संक्रमण से पहले कोई न कोई बीमारी थी। वहीं अस्पतालों में 21.80 फीसदी मौतें टीकाकरण न कराने वालों की हुई हैं। जिनमें 83 फीसदी को पहले से कोई न कोई बीमारी थी। इस अध्ययन को जल्द ही मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा।

ओमिक्रॉन का कम आयु वालों पर अधिक असर
ओमिक्रॉन का कम आयु वालों पर अधिक असर देखने को मिला है। पिछले साल 15 नवंबर से 15 दिसंबर और 16 दिसंबर से 17 जनवरी 2022 के बीच 37 अस्पतालों में डेल्टा और ओमिक्रॉन का असर जानने के लिए यह अध्ययन हुआ है। 15 नवंबर से 15 दिसंबर 2021 के बीच इन अस्पतालों में 564 मरीज भर्ती हुए थे। जबकि 16 दिसंबर 2021 से 17 जनवरी 2022 के बीच 956 मरीज भर्ती हुए। इन दोनों के बीच अंतर देखें तो डेल्टा संक्रमित मरीजों की आयु 18 से 55 वर्ष के बीच देखी गई।

वहीं ओमिक्रॉन में 20 से 43 वर्ष के बीच मरीजों की आयु मिली। इसके अलावा डेल्टा संक्रमित मरीजों में से 66.1 फीसदी में सह रोग पहले से थे लेकिन ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित मरीजों में 45.80 फीसदी में सहायक रोग पहले से मिले। इसी तरह डेल्टा की वजह से बुखार, कफ सबसे आम लक्षण थे लेकिन ओमिक्रॉन की लहर में सबसे अधिक गले में खराश, दर्द लक्षण देखने को मिला।

मौत के साथ ऑक्सीजन की मांग हुई कम
डॉ. भार्गव ने बताया कि ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से देश में कोरोना की तीसरी लहर आई है। इस लहर में यह देखा गया है कि जिन लोगों ने टीकाकरण पूरा किया है उनमें कोरोना संक्रमण मिलने के बाद ऑक्सीजन की जरूरत कम हुई है। अस्पतालों में भर्ती 36.10 फीसदी मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी जिन्हें दोनों खुराक दी गई थीं लेकिन जिन्होंने टीकाकरण पूरा नहीं किया उनमें से 45.50 फीसदी रोगियों को ऑक्सीजन थेरेपी की जरूरत पड़ी। इसी तरह टीकाकरण करा चुके मरीजों में से 5.4 फीसदी को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया। जबकि टीकाकरण न कराने वालों में से 11.20 फीसदी वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहे।

ओवरऑल स्थिति में आ रहा सुधार
नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा, महामारी को लेकर देश में ओवरऑल स्थिति में सुधार हो रहा है। हालांकि मिजोरम और केरल में संक्रमण अभी भी चिंताजनक बना हुआ है जो बताता है कि वायरस अभी भी कहीं गया नहीं है। हमें अभी भी अपना ध्यान रखना है और महामारी से बचकर रहना है। टीकाकरण को लेकर भी अब चिकित्सीय अध्ययन सामने आने लगे हैं और यह साबित हो चुका है कि टीका की दो खुराक हर किसी के लिए काफी जरूरी है।

संक्रमित मरीजों में ऑपरेशन का जोखिम हुआ कम
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव कुमार अग्रवाल ने दिल्ली एम्स के चिकित्सीय अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि देश में अब कोरोना संक्रमित मरीजों में ऑपरेशन का जोखिम कम हुआ है। लव अग्रवाल ने बताया कि साल 2020 में जब कोरोना महामारी आई तो उस दौरान संक्रमित रोगियों के ऑपरेशन रोकने पड़े थे। उसके बाद यह भी देखने को मिला कि ऑपरेशन के सात सप्ताह बाद मरीज का जोखिम भी बढ़ा है लेकिन हाल ही में दिल्ली एम्स ने अध्ययन पूरा किया है जिसमें पता चला है कि 20 दिसंबर 2021 से 20 जनवरी 2022 के बीच 53 मरीजों का ऑपरेशन किया गया और इनमें से किसी में भी जोखिम नहीं मिला है। ऐसे में अब यह कहा जा सकता है कि कोरोना संक्रमित के ऑपरेशन को टालने की आवश्यकता नहीं है। जरूरत पड़ने पर इन रोगियों की सर्जरी की जा सकती है।

विस्तार

देश के 37 अस्पतालों ने पहली बार डेल्टा बनाम ओमिक्रॉन स्वरूप के असर पर किया गया चिकित्सीय अध्ययन पूरा हो गया। इसके अनुसार टीका न लेने वाले संक्रमित मरीजों में 22 फीसदी की मौत हुई है जिनमें से 83 फीसदी संक्रमण की चपेट में आने से पहले किसी न किसी बीमारी से पीड़ित थे। इसके अलावा टीके की दोनों खुराक लेने वालों में मृत्युदर 10 फीसदी दर्ज की गई। हालांकि इनमें 91 फीसदी में पहले से ही कोई न कोई बीमारी थी।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बृहस्पतिवार को प्रेस कान्फ्रेंस में बताया, टीकाकरण के बाद इस तीसरी लहर में कोरोना की चपेट में आए मरीजों को जब अस्पतालों में भर्ती किया गया तो उपचार के दौरान 10.20 फीसदी की मौत हुई। इनकी केस हिस्ट्री देखी गई तो पता चला कि 91 फीसदी मृतकों को संक्रमण से पहले कोई न कोई बीमारी थी। वहीं अस्पतालों में 21.80 फीसदी मौतें टीकाकरण न कराने वालों की हुई हैं। जिनमें 83 फीसदी को पहले से कोई न कोई बीमारी थी। इस अध्ययन को जल्द ही मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा।

ओमिक्रॉन का कम आयु वालों पर अधिक असर

ओमिक्रॉन का कम आयु वालों पर अधिक असर देखने को मिला है। पिछले साल 15 नवंबर से 15 दिसंबर और 16 दिसंबर से 17 जनवरी 2022 के बीच 37 अस्पतालों में डेल्टा और ओमिक्रॉन का असर जानने के लिए यह अध्ययन हुआ है। 15 नवंबर से 15 दिसंबर 2021 के बीच इन अस्पतालों में 564 मरीज भर्ती हुए थे। जबकि 16 दिसंबर 2021 से 17 जनवरी 2022 के बीच 956 मरीज भर्ती हुए। इन दोनों के बीच अंतर देखें तो डेल्टा संक्रमित मरीजों की आयु 18 से 55 वर्ष के बीच देखी गई।

वहीं ओमिक्रॉन में 20 से 43 वर्ष के बीच मरीजों की आयु मिली। इसके अलावा डेल्टा संक्रमित मरीजों में से 66.1 फीसदी में सह रोग पहले से थे लेकिन ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित मरीजों में 45.80 फीसदी में सहायक रोग पहले से मिले। इसी तरह डेल्टा की वजह से बुखार, कफ सबसे आम लक्षण थे लेकिन ओमिक्रॉन की लहर में सबसे अधिक गले में खराश, दर्द लक्षण देखने को मिला।

मौत के साथ ऑक्सीजन की मांग हुई कम

डॉ. भार्गव ने बताया कि ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से देश में कोरोना की तीसरी लहर आई है। इस लहर में यह देखा गया है कि जिन लोगों ने टीकाकरण पूरा किया है उनमें कोरोना संक्रमण मिलने के बाद ऑक्सीजन की जरूरत कम हुई है। अस्पतालों में भर्ती 36.10 फीसदी मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी जिन्हें दोनों खुराक दी गई थीं लेकिन जिन्होंने टीकाकरण पूरा नहीं किया उनमें से 45.50 फीसदी रोगियों को ऑक्सीजन थेरेपी की जरूरत पड़ी। इसी तरह टीकाकरण करा चुके मरीजों में से 5.4 फीसदी को वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया। जबकि टीकाकरण न कराने वालों में से 11.20 फीसदी वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहे।

ओवरऑल स्थिति में आ रहा सुधार

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा, महामारी को लेकर देश में ओवरऑल स्थिति में सुधार हो रहा है। हालांकि मिजोरम और केरल में संक्रमण अभी भी चिंताजनक बना हुआ है जो बताता है कि वायरस अभी भी कहीं गया नहीं है। हमें अभी भी अपना ध्यान रखना है और महामारी से बचकर रहना है। टीकाकरण को लेकर भी अब चिकित्सीय अध्ययन सामने आने लगे हैं और यह साबित हो चुका है कि टीका की दो खुराक हर किसी के लिए काफी जरूरी है।

संक्रमित मरीजों में ऑपरेशन का जोखिम हुआ कम

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव कुमार अग्रवाल ने दिल्ली एम्स के चिकित्सीय अध्ययन का हवाला देते हुए बताया कि देश में अब कोरोना संक्रमित मरीजों में ऑपरेशन का जोखिम कम हुआ है। लव अग्रवाल ने बताया कि साल 2020 में जब कोरोना महामारी आई तो उस दौरान संक्रमित रोगियों के ऑपरेशन रोकने पड़े थे। उसके बाद यह भी देखने को मिला कि ऑपरेशन के सात सप्ताह बाद मरीज का जोखिम भी बढ़ा है लेकिन हाल ही में दिल्ली एम्स ने अध्ययन पूरा किया है जिसमें पता चला है कि 20 दिसंबर 2021 से 20 जनवरी 2022 के बीच 53 मरीजों का ऑपरेशन किया गया और इनमें से किसी में भी जोखिम नहीं मिला है। ऐसे में अब यह कहा जा सकता है कि कोरोना संक्रमित के ऑपरेशन को टालने की आवश्यकता नहीं है। जरूरत पड़ने पर इन रोगियों की सर्जरी की जा सकती है।

image Source

Enable Notifications OK No thanks