CWG 2022: कौन हैं सुशीला देवी, जिन्होंने जूडो में भारत के लिए रजत पदक जीता, मैरीकॉम को मानती हैं आदर्श


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भारत की जुडोका सुशीला देवी लिकमाबाम ने जूडो के महिला वर्ग में 48 किलोग्राम भारवर्ग में रजत पदक हासिल किया। फाइनल में सुशीला को दक्षिण अफ्रीका की मिकेला व्हीटबोई ने हरा दिया। 4.25 मिनट तक चले मुकाबले में व्हीबोई ने पहले आर्म लॉक के जरिए सुशीला फंसा लिया और नीचे गिरा दिया। इसके बाद कुछ देर तक सुशीला मैट पर ही लॉक छुड़ाने की कोशिश करती रहीं। ऐसे में रेफरी ने दक्षिण अफ्रीका की व्हीटबोई को विजेता घोषित किया। कॉमनवेल्थ खेलों में यह सुशीला का दूसरा रजत पदक है। इससे पहले 2014 में उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। सुशीला ने सेमीफाइनल में मॉरिशस की प्रिसिल्ला मोरांद को इपपोन से हराया था।
जूडो के खिलाड़ियों को ‘जुडोका’ कहते हैं। जूडो में तीन तरह से स्कोरिंग होती है। इसे इपपोन, वजा-आरी और यूको कहते हैं। इपपोन तब होता है, जब खिलाड़ी सामने वाले खिलाड़ी को थ्रो करता है और उसे उठने नहीं देता। इपपोन होने पर एक फुल पॉइंट दिया जाता है और खिलाड़ी जीत जाता है। सुशीला ने इसी तरह से जीत हासिल की। वहीं, स्कोरिंग का दूसरा तरीका वजा-आरी होता है, जब खिलाड़ी सामने वाले खिलाड़ी को फंसा लेता है और उसे अपनी पकड़ से बाहर नहीं होने देता। फाइनल में अफ्रीकी खिलाड़ी ने इसी तरीके से सुशीला को हराया। 
सुशीला इससे पहले भी राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीत चुकी हैं। वह 2014 में राष्ट्रमंडल खेलों में जूडो में भारत के लिए पदक जीतने वालीं पहली भारतीय महिला बनीं थीं। सुशीला ने 2014 ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए रजत पदक जीता था। 
सुशीला जूडो में टोक्यो ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली इकलौती खिलाड़ी थीं। सुशीला भारत कि दिग्गज बॉक्सर मैरीकॉम को अपना आदर्श मानती हैं और उन्हीं की तरह देश के लिए वर्ल्ड चैंपियनशिप और ओलंपिक में पदक जीतना चाहती हैं। सुशीला का जन्म एक फरवरी 1995 को हुआ था। वह मणिपुर की मूल निवासी हैं। सुशीला को बचपन से ही जूडो का शौक था, क्योंकि उनका परिवार ही इस खेल से जुड़ा रहा है। 
सुशीला के बड़े भाई जूडो की ट्रेनिंग करते थे। इसके अलावा उनके चाचा भी जूडो खेलते थे। उन्हें ही देखकर सुशीला ने भी जूडो की ट्रेनिंग शुरू की थी। इसके बाद 2007 से 2010 तक उन्होंने मणिपुर स्थित स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में ट्रेनिंग की। 2010 से सुशीला पटियाला में ट्रेनिंग कर रही हैं। 
सुशीला के पिता प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं। कई बार किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए और शहर से बाहर जाने के लिए सुशीला के पास पैसे नहीं होते थे। इतना ही नहीं उन्हें प्रोपर डाइट भी नहीं मिल पाती थी। हालांकि, साई (SAI) के हॉस्टल में आने के बाद डाइट से जुड़ी परेशानियां दूर हो गईं। इसके साथ ही उन्हें कई स्पॉन्सर से भी समर्थन मिला। भारत सरकार की ओर से भी सुशीला को स्कॉलरशिप मिलने लगी। इस तरह तैयारियों को लेकर सुशीला की हर तरह की परेशानी दूर हो गई।
सुशीला राष्ट्रमंडल खेलों के अलावा 2019 साउथ एशियन गेम्स में 48 किलोग्राम भारवर्ग में ही स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। उन्होंने जूडो में भारत के लिए एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया था। ओलंपिक में उन्होंने महिलाओं की 48 किग्रा इवेंट में हिस्सा लिया और पहले ही दौर में ही बाहर हो गई थीं। 
हालांकि, इससे उन्होंने अपने आत्मविश्वास को कम नहीं होने दिया और अब राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए रजत पदक जीता है। भारत ने जूडो में सभी राष्ट्रमंडल खेलों को मिलाकर अब तक चार रजत और तीन कांस्य समेत कुल नौ पदक जीते हैं। 

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भारत की जुडोका सुशीला देवी लिकमाबाम ने जूडो के महिला वर्ग में 48 किलोग्राम भारवर्ग में रजत पदक हासिल किया। फाइनल में सुशीला को दक्षिण अफ्रीका की मिकेला व्हीटबोई ने हरा दिया। 4.25 मिनट तक चले मुकाबले में व्हीबोई ने पहले आर्म लॉक के जरिए सुशीला फंसा लिया और नीचे गिरा दिया। इसके बाद कुछ देर तक सुशीला मैट पर ही लॉक छुड़ाने की कोशिश करती रहीं। ऐसे में रेफरी ने दक्षिण अफ्रीका की व्हीटबोई को विजेता घोषित किया। कॉमनवेल्थ खेलों में यह सुशीला का दूसरा रजत पदक है। इससे पहले 2014 में उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। सुशीला ने सेमीफाइनल में मॉरिशस की प्रिसिल्ला मोरांद को इपपोन से हराया था।



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