Delhi Police: क्या प्रयोगशाला बनता जा रहा है आयुक्त का पद? भाजपा काल में ही दूसरे कैडर के IPS को मिली कमान


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आईटीबीपी के डीजी रहे तमिलनाडु कैडर के 1988 बैच के आईपीएस संजय अरोड़ा ने सोमवार को दिल्ली पुलिस आयुक्त का पदभार ग्रहण कर लिया है। दिल्ली पुलिस के इतिहास में वे ऐसे तीसरे आईपीएस हैं, जिन्होंने ‘एजीएमयूटी’ (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और यूनियन टेरेटरीज) कैडर से बाहर का पुलिस अधिकारी होने के बावजूद दिल्ली पुलिस की कमान संभाली है। खास बात है कि तीनों आईपीएस, भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार यानी एनडीए शासनकाल में ही दिल्ली पुलिस आयुक्त बने हैं। सबसे पहले 1999 में अजय राज शर्मा, उसके बाद 2021 में राकेश अस्थाना और अब संजय अरोड़ा को दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाया गया है। पूर्व अफसरों ने व्यंगात्मक शैली में कहा, अब दिल्ली पुलिस आयुक्त का पद एक ‘प्रयोगशाला’ बन कर रह गया है। ‘एजीएमयूटी’ कैडर को कमतर आंका जा रहा है।

लालकृष्ण आडवाणी ने किया था पहला ‘प्रयोग’

केंद्र सरकार ने आईपीएस संजय अरोड़ा की ‘एजीएमयूटी’ कैडर में अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी दी है। इससे पहले केंद्र सरकार ने 2021 में बीएसएफ के डीजी राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस आयुक्त बना दिया था। उस वक्त भी ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस, केंद्र सरकार का आदेश देख हैरान रह गए थे। ऐसा भी नहीं है कि ‘एजीएमयूटी’ कैडर में वरिष्ठ आईपीएस अफसरों का अभाव है। अभी तक तीन अफसरों को छोड़, बाकी सभी पुलिस आयुक्त ‘एजीएमयूटी’ कैडर से रहे हैं। 1999 के दौरान तत्कालीन एनडीए सरकार, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी गृह मंत्री थे, उन्होंने यूपी कैडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस आयुक्त बनाया था। दिल्ली पुलिस में डीजी रैंक से रिटायर हुए एक अधिकारी बताते हैं, उस वक्त ‘एजीएमयूटी’ कैडर में उच्च स्तर पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। पुलिस आयुक्त लगने की होड़ में कई अफसरों ने गोपनीयता के नियमों को ताक पर रख दिया था। अंदर की बातें बाहर आने लगी थीं।

तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस तरह के विवाद को शांत कराने के मकसद से उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस आयुक्त की कमान सौंप दी थी। हालांकि शर्मा की नियुक्ति के बाद दिल्ली पुलिस के कुछ अफसरों ने लामबंद होने की कोशिश की, लेकिन अजय राज शर्मा की सख्ती के आगे उन्होंने शांत बैठना ही ठीक समझा।

राकेश अस्थाना के समय भी दिल्ली पुलिस में थी ‘खींचतान’

पिछले साल ‘गुजरात कैडर के आईपीएस’ राकेश अस्थाना, जब बीएसएफ डीजी के पद से रिटायर होने वाले थे, तो उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दे दिया था। इसके बाद उन्हें दिल्ली पुलिस आयुक्त लगा दिया गया। उससे पहले अस्थाना, बीएसएफ महानिदेशक के अलावा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो के डीजी का प्रभार भी संभाल चुके थे। तब भी दिल्ली पुलिस में हालात ठीक नहीं थे। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन सीपी एसएन श्रीवास्तव के कार्यकाल में कई बड़े अफसरों के बीच खींचतान हुई थी। खुद सीपी पर भी आरोप लगे थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय में शिकायतें भेजी गई। उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस का आयुक्त बना दिया गया। हालांकि उनके कार्यकाल में भी वे सभी अफसर शांत बैठ गए, जो एक दूसरे की टांग खिंचाई कर रहे थे। वजह, अस्थाना को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही नहीं, बल्कि पीएम मोदी भी अच्छे से जानते हैं। इस वजह से ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस मौन साध कर अपने काम में लग गए।

ये ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस के हितों पर प्रहार है

पूर्व आईपीएस बताते हैं, ठीक है कि अखिल भारतीय सेवा वाले अधिकारी को किसी भी राज्य में भेजा जा सकता है। जिस तरह से वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में आते हैं, ऐसे ही दूसरे कैडर का अफसर दिल्ली का पुलिस आयुक्त बन सकता है। कानूनी तौर से इसमें कुछ गलत नहीं है। यहां पर जो सवाल उठ रहे हैं, वह ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस अधिकारियों को लेकर है। अभी कई वरिष्ठ आईपीएस डीजी रैंक में हैं। वे भी पुलिस प्रमुख बनना चाहते हैं। पहले राकेश अस्थाना और अब संजय अरोड़ा, ऐसे तो ‘एजीएमयूटी’ कैडर के कई आईपीएस जो खुद पुलिस आयुक्त बनने की दौड़ में शामिल थे, वे बाहर हो जाएंगे। संजय अरोड़ा का कार्यकाल भी लंबा है। वे 2025 में रिटायर होंगे। ये कदम एक आध बार के लिए तो ठीक है, लेकिन इसे नियमित आदत के तौर पर विकसित करना ठीक नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि ‘एजीएमयूटी’ कैडर के सभी अफसर खींचतान में शामिल हैं, जो लायक हैं, उन्हें पुलिस आयुक्त बनने का अवसर मिलना चाहिए। भरोसा तो करना ही होगा।

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आईटीबीपी के डीजी रहे तमिलनाडु कैडर के 1988 बैच के आईपीएस संजय अरोड़ा ने सोमवार को दिल्ली पुलिस आयुक्त का पदभार ग्रहण कर लिया है। दिल्ली पुलिस के इतिहास में वे ऐसे तीसरे आईपीएस हैं, जिन्होंने ‘एजीएमयूटी’ (अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिजोरम और यूनियन टेरेटरीज) कैडर से बाहर का पुलिस अधिकारी होने के बावजूद दिल्ली पुलिस की कमान संभाली है। खास बात है कि तीनों आईपीएस, भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकार यानी एनडीए शासनकाल में ही दिल्ली पुलिस आयुक्त बने हैं। सबसे पहले 1999 में अजय राज शर्मा, उसके बाद 2021 में राकेश अस्थाना और अब संजय अरोड़ा को दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाया गया है। पूर्व अफसरों ने व्यंगात्मक शैली में कहा, अब दिल्ली पुलिस आयुक्त का पद एक ‘प्रयोगशाला’ बन कर रह गया है। ‘एजीएमयूटी’ कैडर को कमतर आंका जा रहा है।

लालकृष्ण आडवाणी ने किया था पहला ‘प्रयोग’

केंद्र सरकार ने आईपीएस संजय अरोड़ा की ‘एजीएमयूटी’ कैडर में अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी दी है। इससे पहले केंद्र सरकार ने 2021 में बीएसएफ के डीजी राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस आयुक्त बना दिया था। उस वक्त भी ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस, केंद्र सरकार का आदेश देख हैरान रह गए थे। ऐसा भी नहीं है कि ‘एजीएमयूटी’ कैडर में वरिष्ठ आईपीएस अफसरों का अभाव है। अभी तक तीन अफसरों को छोड़, बाकी सभी पुलिस आयुक्त ‘एजीएमयूटी’ कैडर से रहे हैं। 1999 के दौरान तत्कालीन एनडीए सरकार, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी गृह मंत्री थे, उन्होंने यूपी कैडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस आयुक्त बनाया था। दिल्ली पुलिस में डीजी रैंक से रिटायर हुए एक अधिकारी बताते हैं, उस वक्त ‘एजीएमयूटी’ कैडर में उच्च स्तर पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। पुलिस आयुक्त लगने की होड़ में कई अफसरों ने गोपनीयता के नियमों को ताक पर रख दिया था। अंदर की बातें बाहर आने लगी थीं।

तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस तरह के विवाद को शांत कराने के मकसद से उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस आयुक्त की कमान सौंप दी थी। हालांकि शर्मा की नियुक्ति के बाद दिल्ली पुलिस के कुछ अफसरों ने लामबंद होने की कोशिश की, लेकिन अजय राज शर्मा की सख्ती के आगे उन्होंने शांत बैठना ही ठीक समझा।

राकेश अस्थाना के समय भी दिल्ली पुलिस में थी ‘खींचतान’

पिछले साल ‘गुजरात कैडर के आईपीएस’ राकेश अस्थाना, जब बीएसएफ डीजी के पद से रिटायर होने वाले थे, तो उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दे दिया था। इसके बाद उन्हें दिल्ली पुलिस आयुक्त लगा दिया गया। उससे पहले अस्थाना, बीएसएफ महानिदेशक के अलावा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो के डीजी का प्रभार भी संभाल चुके थे। तब भी दिल्ली पुलिस में हालात ठीक नहीं थे। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन सीपी एसएन श्रीवास्तव के कार्यकाल में कई बड़े अफसरों के बीच खींचतान हुई थी। खुद सीपी पर भी आरोप लगे थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय में शिकायतें भेजी गई। उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस का आयुक्त बना दिया गया। हालांकि उनके कार्यकाल में भी वे सभी अफसर शांत बैठ गए, जो एक दूसरे की टांग खिंचाई कर रहे थे। वजह, अस्थाना को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही नहीं, बल्कि पीएम मोदी भी अच्छे से जानते हैं। इस वजह से ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस मौन साध कर अपने काम में लग गए।

ये ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस के हितों पर प्रहार है

पूर्व आईपीएस बताते हैं, ठीक है कि अखिल भारतीय सेवा वाले अधिकारी को किसी भी राज्य में भेजा जा सकता है। जिस तरह से वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में आते हैं, ऐसे ही दूसरे कैडर का अफसर दिल्ली का पुलिस आयुक्त बन सकता है। कानूनी तौर से इसमें कुछ गलत नहीं है। यहां पर जो सवाल उठ रहे हैं, वह ‘एजीएमयूटी’ कैडर के आईपीएस अधिकारियों को लेकर है। अभी कई वरिष्ठ आईपीएस डीजी रैंक में हैं। वे भी पुलिस प्रमुख बनना चाहते हैं। पहले राकेश अस्थाना और अब संजय अरोड़ा, ऐसे तो ‘एजीएमयूटी’ कैडर के कई आईपीएस जो खुद पुलिस आयुक्त बनने की दौड़ में शामिल थे, वे बाहर हो जाएंगे। संजय अरोड़ा का कार्यकाल भी लंबा है। वे 2025 में रिटायर होंगे। ये कदम एक आध बार के लिए तो ठीक है, लेकिन इसे नियमित आदत के तौर पर विकसित करना ठीक नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि ‘एजीएमयूटी’ कैडर के सभी अफसर खींचतान में शामिल हैं, जो लायक हैं, उन्हें पुलिस आयुक्त बनने का अवसर मिलना चाहिए। भरोसा तो करना ही होगा।



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