Explained: कितना खतरनाक है कनाडा में पंजाबी युवाओं का माफिया सिंडिकेट, कैसे वहां बैठकर पूरे पंजाब के अंडरवर्ल्ड को करते हैं ऑपरेट


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शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद एक बार फिर पूरे देश में गैंगस्टर, गैंगवॉर और अंतरराष्ट्रीय क्राइम सिंडिकेट चर्चा में है। दरअसल, पंजाब के मनसा में मूसेवाला की हत्या के ठीक बाद इस घटना की जिम्मेदारी कनाडा के गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने ली थी। पंजाब पुलिस का दावा है कि गोल्डी ने मूसेवाला की हत्या तिहाड़ जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई के इशारे पर करवाई। पुलिस का कहना है कि मूसेवाला की हत्या दो गैंगों के बीच दुश्मनी की वजह से हुई। 

इस बीच सवाल उठता है कि आखिर कैसे भारत में आपराधिक गतिविधियों के तार कनाडा तक से जुड़े हैं। दरअसल, बीते वर्षों में मुंबई और बाकी राज्यों के अंडरवर्ल्ड का कनेक्शन दुबई और पाकिस्तान से तो मिला था। लेकिन पंजाब में बढ़ते क्राइम की वजह कनाडा में रहने वाले सिंडिकेट्स को माना जाता है। ऐसे में हम आपको बताएंगे कि कनाडा में पंजाब आधारित गैंग्स का इतिहास क्या रहा है?  कैसे यह देश पंजाब में आतंक फैलाने वाले अपराधियों का गढ़ बन गया? इसके अलावा वे कौन से समूह हैं, जिन पर पंजाब में आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं?

पहले जानें- क्या है पंजाबी कैनेडियन सिंडिकेट?
पंजाबी-कनाडाई क्राइम सिंडिकेट मुख्यतः उन युवा-वयस्कों का गुट है, जो पंजाबी परिवारों में जन्में हैं। इनमें एक बड़ा तबका सिखों का है, जो कि शिक्षा, नौकरी या व्यापार के लिए कनाडा पहुंचे थे। अकेले कनाडा की ही बात कर लें तो पंजाबी-कनाडाई गैंग्स देश में अपराधों के लिए जिम्मेदार टॉप-3 गुटों में आते हैं। 2004 की ब्रिटिश कोलंबिया की सालाना पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौर में पंजाबी-कनाडाई अपराधी संगठन और तैयारी के लिहाज से बाकी गुटों से काफी आगे थे। इस गुट से आगे सिर्फ कनाडा के मोटरसाइकिल क्लब्स और एशियाई अपराधी संगठन ‘ट्रायड्स’ थे। 

मौजूदा समय में कनाडा में पंजाबी मूल के जो गैंगस्टर्स शामिल हैं, उनमें अधिकतर दूसरी या तीसरी पीढ़ी के पंजाबी-कनाडाई हैं। यानी जिनके माता-पिता या उससे पहले का परिवार कनाडा में जाकर बस गया। वैंकूवर सन की 2005 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कनाडा के वैंकूवर में पंजाब से संबंध रखने वाले लोगों के गैंग्स की शुरुआत 1980 के दशक में हुई। जिस गैंगस्टर का नाम सबसे पहले आता है उनमें भूपिंदर ‘बिंदी सिंह जोहल’ शामिल है, जिसने अपने ड्रग्स के कारोबार के जरिए अपना अपराधिक साम्राज्य खड़ा किया। 

पंजाबी समुदाय के कौन से आपराधिक संगठन सबसे ज्यादा एक्टिव?
पंजाबी समुदाय के जिन समूहों की गतिविधियों को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा रही है, उनमें एक है ब्रदर्स कीपर्स गैंग, जिसे गविंदर सिंह ग्रेवाल ने शुरू किया था। इसके अलावा धुक-धुरे समूह, धालीवाल परिवा, इंडिपेंडेंट सोल्जर्स गैंग, मल्ही-बुत्तर संगठन, पंजाबी माफिया और संघेरा अपराध संगठन कुछ ऐसे पंजाबी युवा-वयस्कों के गुट हैं, जिन्हें खतरनाक माना गया है। 

भारत के साथ कैसे जुड़ते हैं तार, पंजाब से क्यों बना रहता है नाता?
पिछले दशक यानी 2000 की शुरुआत से ही जैसे-जैसे कनाडा में इन भारतीय मूल के गैंगस्टर्स का वर्चस्व बढ़ना शुरू हुआ है, वैसे ही इन अपराधियों ने भी अपने पैतृक संपर्कों को भुनाने की कोशिशें शुरू की हैं। इनका मकसद आमतौर पर अपने अपराध के दायरे को दूसरे देश तक फैलाना ही रहा है। पंजाब में तो ये गैंग कई गांव स्तर की खेल प्रतियोगिता कराते हैं या राज्य में ही बड़ी-बड़ी जमीनें खरीद लेते हैं और मंदिरों-गुरुद्वारों में बड़े दानकर्ता बन जाते हैं। 2005 में जब हरजीत मान, जसदेव सिंह और सुखराज धालीवाल को अमेरिका में ड्रग्स के मामले में पकड़ा गया था, तब उन्होंने बताया था कि वे पंजाब के ही एक गांव के रहने वाले हैं और दानकर्ता हैं। कनाडा के कई गैंग अपने पंजाब से जुड़ाव की बात भी कर चुके हैं। 

कनाडा में बैठकर कैसे देते हैं आपराधिक गतिविधियों को अंजाम?
पंजाबी-कनाडाई समुदाय के ऑपरेट करने का तरीका भी काफी चर्चित रहा है। बताया जाता है कि जब पंजाबियों की कनाडा में बड़े स्तर पर एंट्री हुई, तब यहां पहले से रह रहे पंजाबी परिवारों ने उन्हें रहने के लिए घर दिए। आज भी पंजाब से कनाडा जाने वाले अधिकतर लोग पहले यहां रहने वालों के साथ ही रुकते हैं। इतना ही नहीं कनाडा में जब समुदाय से जुड़े किसी व्यक्ति को स्थानीय गैंग्स या अपराधियों की तरफ से परेशान किया जाता है, तब यही पंजाबी संगठन उनकी मदद करते हैं। हालांकि, धीरे-धीरे यह चलन पंजाब में कई गैंग्स के गठन का कारण भी बना है। 

पंजाबियों के गैंग्स बनने का असर सिर्फ कनाडा में ही नहीं, बल्कि पंजाब में भी देखने को मिलता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई बार कनाडाई सिखों की धर्म के प्रति कट्टरता के चलते वहां भारत से अलग खालिस्तान का मुद्दा उठता रहा है। इस भावना को भड़काने में पाकिस्तान की खुफिया एंजेंसी आईएसआई भी काफी मदद करती है। पंजाब के पूर्व डीजीपी शशिकांत ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि उन्होंने पंजाब में ड्रग्स की तस्करी से जुड़ी एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें सामने आया था कि लिस्ट में 14 नाम कनाडा से जुड़े थे। इसके अलावा पंजाब में हत्या और हमलों से जुड़ी और घटनाओं में भी लगातार कनाडाई गुटों का नाम उछलता रहा है। नौ मई को मोहाली में पंजाब पुलिस के खुफिया विभाग पर हुए रॉकेट हमले की साजिश रचने वालों में कनाडा के एक गैंगस्टर लखबीर सिंह का नाम सामने आया था। 

शशिकांत के मुताबिक, कनाडा में बैठे गैंगस्टर भारत में स्थित अपराधियों के जरिए अपने कामों को अंजाम देते हैं। उन्हें लगता है कि कनाडा में रहने की वजह से उन्हें कोई छू नहीं सकता, लेकिन भारत-कनाडा के बीच 1987 में हुआ प्रत्यर्पण समझौता उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। पूर्व डीजीपी के मुताबिक, 2019 में एक मर्डर केस में कनाडा से दो अपराधियों मल्कियत कौर और सुरजीत सिंह बदेशा को कनाडा से प्रत्यर्पित भी किया गया था।

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शुभदीप सिंह सिद्धू उर्फ सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद एक बार फिर पूरे देश में गैंगस्टर, गैंगवॉर और अंतरराष्ट्रीय क्राइम सिंडिकेट चर्चा में है। दरअसल, पंजाब के मनसा में मूसेवाला की हत्या के ठीक बाद इस घटना की जिम्मेदारी कनाडा के गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने ली थी। पंजाब पुलिस का दावा है कि गोल्डी ने मूसेवाला की हत्या तिहाड़ जेल में बंद लॉरेंस बिश्नोई के इशारे पर करवाई। पुलिस का कहना है कि मूसेवाला की हत्या दो गैंगों के बीच दुश्मनी की वजह से हुई। 

इस बीच सवाल उठता है कि आखिर कैसे भारत में आपराधिक गतिविधियों के तार कनाडा तक से जुड़े हैं। दरअसल, बीते वर्षों में मुंबई और बाकी राज्यों के अंडरवर्ल्ड का कनेक्शन दुबई और पाकिस्तान से तो मिला था। लेकिन पंजाब में बढ़ते क्राइम की वजह कनाडा में रहने वाले सिंडिकेट्स को माना जाता है। ऐसे में हम आपको बताएंगे कि कनाडा में पंजाब आधारित गैंग्स का इतिहास क्या रहा है?  कैसे यह देश पंजाब में आतंक फैलाने वाले अपराधियों का गढ़ बन गया? इसके अलावा वे कौन से समूह हैं, जिन पर पंजाब में आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं?

पहले जानें- क्या है पंजाबी कैनेडियन सिंडिकेट?

पंजाबी-कनाडाई क्राइम सिंडिकेट मुख्यतः उन युवा-वयस्कों का गुट है, जो पंजाबी परिवारों में जन्में हैं। इनमें एक बड़ा तबका सिखों का है, जो कि शिक्षा, नौकरी या व्यापार के लिए कनाडा पहुंचे थे। अकेले कनाडा की ही बात कर लें तो पंजाबी-कनाडाई गैंग्स देश में अपराधों के लिए जिम्मेदार टॉप-3 गुटों में आते हैं। 2004 की ब्रिटिश कोलंबिया की सालाना पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौर में पंजाबी-कनाडाई अपराधी संगठन और तैयारी के लिहाज से बाकी गुटों से काफी आगे थे। इस गुट से आगे सिर्फ कनाडा के मोटरसाइकिल क्लब्स और एशियाई अपराधी संगठन ‘ट्रायड्स’ थे। 

मौजूदा समय में कनाडा में पंजाबी मूल के जो गैंगस्टर्स शामिल हैं, उनमें अधिकतर दूसरी या तीसरी पीढ़ी के पंजाबी-कनाडाई हैं। यानी जिनके माता-पिता या उससे पहले का परिवार कनाडा में जाकर बस गया। वैंकूवर सन की 2005 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कनाडा के वैंकूवर में पंजाब से संबंध रखने वाले लोगों के गैंग्स की शुरुआत 1980 के दशक में हुई। जिस गैंगस्टर का नाम सबसे पहले आता है उनमें भूपिंदर ‘बिंदी सिंह जोहल’ शामिल है, जिसने अपने ड्रग्स के कारोबार के जरिए अपना अपराधिक साम्राज्य खड़ा किया। 

पंजाबी समुदाय के कौन से आपराधिक संगठन सबसे ज्यादा एक्टिव?

पंजाबी समुदाय के जिन समूहों की गतिविधियों को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा रही है, उनमें एक है ब्रदर्स कीपर्स गैंग, जिसे गविंदर सिंह ग्रेवाल ने शुरू किया था। इसके अलावा धुक-धुरे समूह, धालीवाल परिवा, इंडिपेंडेंट सोल्जर्स गैंग, मल्ही-बुत्तर संगठन, पंजाबी माफिया और संघेरा अपराध संगठन कुछ ऐसे पंजाबी युवा-वयस्कों के गुट हैं, जिन्हें खतरनाक माना गया है। 

भारत के साथ कैसे जुड़ते हैं तार, पंजाब से क्यों बना रहता है नाता?

पिछले दशक यानी 2000 की शुरुआत से ही जैसे-जैसे कनाडा में इन भारतीय मूल के गैंगस्टर्स का वर्चस्व बढ़ना शुरू हुआ है, वैसे ही इन अपराधियों ने भी अपने पैतृक संपर्कों को भुनाने की कोशिशें शुरू की हैं। इनका मकसद आमतौर पर अपने अपराध के दायरे को दूसरे देश तक फैलाना ही रहा है। पंजाब में तो ये गैंग कई गांव स्तर की खेल प्रतियोगिता कराते हैं या राज्य में ही बड़ी-बड़ी जमीनें खरीद लेते हैं और मंदिरों-गुरुद्वारों में बड़े दानकर्ता बन जाते हैं। 2005 में जब हरजीत मान, जसदेव सिंह और सुखराज धालीवाल को अमेरिका में ड्रग्स के मामले में पकड़ा गया था, तब उन्होंने बताया था कि वे पंजाब के ही एक गांव के रहने वाले हैं और दानकर्ता हैं। कनाडा के कई गैंग अपने पंजाब से जुड़ाव की बात भी कर चुके हैं। 

कनाडा में बैठकर कैसे देते हैं आपराधिक गतिविधियों को अंजाम?

पंजाबी-कनाडाई समुदाय के ऑपरेट करने का तरीका भी काफी चर्चित रहा है। बताया जाता है कि जब पंजाबियों की कनाडा में बड़े स्तर पर एंट्री हुई, तब यहां पहले से रह रहे पंजाबी परिवारों ने उन्हें रहने के लिए घर दिए। आज भी पंजाब से कनाडा जाने वाले अधिकतर लोग पहले यहां रहने वालों के साथ ही रुकते हैं। इतना ही नहीं कनाडा में जब समुदाय से जुड़े किसी व्यक्ति को स्थानीय गैंग्स या अपराधियों की तरफ से परेशान किया जाता है, तब यही पंजाबी संगठन उनकी मदद करते हैं। हालांकि, धीरे-धीरे यह चलन पंजाब में कई गैंग्स के गठन का कारण भी बना है। 

पंजाबियों के गैंग्स बनने का असर सिर्फ कनाडा में ही नहीं, बल्कि पंजाब में भी देखने को मिलता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई बार कनाडाई सिखों की धर्म के प्रति कट्टरता के चलते वहां भारत से अलग खालिस्तान का मुद्दा उठता रहा है। इस भावना को भड़काने में पाकिस्तान की खुफिया एंजेंसी आईएसआई भी काफी मदद करती है। पंजाब के पूर्व डीजीपी शशिकांत ने एक मीडिया संस्थान को बताया कि उन्होंने पंजाब में ड्रग्स की तस्करी से जुड़ी एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें सामने आया था कि लिस्ट में 14 नाम कनाडा से जुड़े थे। इसके अलावा पंजाब में हत्या और हमलों से जुड़ी और घटनाओं में भी लगातार कनाडाई गुटों का नाम उछलता रहा है। नौ मई को मोहाली में पंजाब पुलिस के खुफिया विभाग पर हुए रॉकेट हमले की साजिश रचने वालों में कनाडा के एक गैंगस्टर लखबीर सिंह का नाम सामने आया था। 

शशिकांत के मुताबिक, कनाडा में बैठे गैंगस्टर भारत में स्थित अपराधियों के जरिए अपने कामों को अंजाम देते हैं। उन्हें लगता है कि कनाडा में रहने की वजह से उन्हें कोई छू नहीं सकता, लेकिन भारत-कनाडा के बीच 1987 में हुआ प्रत्यर्पण समझौता उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। पूर्व डीजीपी के मुताबिक, 2019 में एक मर्डर केस में कनाडा से दो अपराधियों मल्कियत कौर और सुरजीत सिंह बदेशा को कनाडा से प्रत्यर्पित भी किया गया था।



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