हाइलाइट्स
कैश रिजर्व रेशो जिसे बैंकों को आरबीआई के पास रखना ही होता है.
यह बैंक में जमा कुल राशि का एक निश्चित अनुपात होता है.
फिलहाल आरबीआई ने सीआरआर 4.5 फीसदी रखा है.
नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक बाजार में मुद्रा के प्रवाह को कम करने के लिए रेपो रेट में वृद्धि करता है. इससे बैंकों का आरबीआई से पैसा लेना महंगा होता है और आम लोगों को बैंकों से मिलने वाले कर्ज पर ब्याज भी बढ़ जाता है. नतीजतन, लोग कम पैसा बैंक से लेते हैं और नकदी प्रवाह कम हो जाता है. इसके अलावा भी आरबीआई एक अन्य तरकीब से नकदी का प्रवाह रोकने की कोशिश करता है. इसे कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) कहते हैं.
गौरतलब है कि इसका मकसद वैसे तो सीधे तौर पर नकदी प्रवाह को संतुलित करना नहीं है. लेकिन इसका प्रभाव वहां होता दिखाई देता है. कैश रिजर्व रेशियो को आसान शब्दों में समझें तो तो बैंक के पास जितनी जमा राशि है उसका एक तय हिस्सा वह आरबीआई के पास जमा कर देता है. इस प्रमुख उद्देश्य जमाकर्ताओं के पैसे का कुछ हिस्सा बिलकुल सुरक्षित रखना है. हालांकि, आरबीआई इसका इस्तेमाल मार्केट में कैश फ्लो को संतुलित करने के लिए भी करता है. आइए जानते हैं ऐसा कैसे होता है.
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सीआरआर का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
मौजूदा समय में आरबीआई ने बैंकों के लिए सीआरआर को 4.50 फीसदी रखा है. इसमें 50 बेसिस पॉइंट की वृद्धि 4 मई 2022 को ही की गई थी. अब अगर आप बैंक में 100 रुपये जमा करते हैं तो उसमें से 4.5 रुपये आरबीआई के पास चले जाते हैं. आरबीआई सीआरआर को जितना बढ़ाता है बैंकों के पास कर्ज देने योग्य राशि कम होती चली जाती है. इससे कर्ज पर ब्याज दरें बढ़ जाती हैं और लोगों के हाथ में पैसा आना कम हो जाता है. इसका एक प्रभाव तो यह होता है कि लोगों की क्रय क्षमता घटती है और महंगाई पर थोड़ी लगाम लगती है. लेकिन ऐसे स्थिति में डिमांड घटने पर अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर भी होता है.
आरबीआई कब करता है सीआरआर में बदलाव
जब महंगाई आरबीआई के लक्षित दायरे( 2-6 फीसदी) के बाहर निकल जाती है तो बाजार में कैश फ्लो घटाने के लिए वह सीआरआर में वृद्धि कर सकता है. गौरतलब है कि पिछले कई महीनों से सीपीआई आधारित खुदरा महंगाई दर 6 फीसदी से ऊपर ही रही है. इसी का नतीजा है कि आरबीआई ने रेपो रेट के साथ-साथ सीआरआर में वृद्धि की है.
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FIRST PUBLISHED : July 31, 2022, 10:01 IST