पांच लड़कियों ने संभाली भारत को टीबी मुक्त बनाने की कमान, टीबी चैंपियंस बन कर फैला रही हैं जागरूकता


World Tuberculosis Day 2022: टीबी (TB or Tuberculosis) के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 24 मार्च को ‘वर्ल्ड टीबी डे’ मनाया जाता है. हर बार इसकी एक थीम रखी जाती है. जानकारी के मुताबिक इस बार की थीम ‘इनवेस्ट टू एंड टीबी, सेव लाइव्स’ (Invest to End TB, Save Lives) है. दुनिया भर में टीबी के कारण हर साल लाखों लोगों की मौत होती है. भारत में भी इसके मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा है. यह कहा जा सकता है कि टीबी के मरीजों के आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि लोगों में अभी भी इस बीमारी को लेकर जानकारी की कमी है. आज भी बहुत सारे टीबी के मरीजों को तरह-तरह की बातें सुनाई जाती हैं और उनको सपोर्ट करने की जगह उन्हें ट्रोल किया जाता है.

आज हम ऐसे ही एक केस की बात करेंगे जहां ट्रोलर्स को समझाने और लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने के लिए कुछ लड़कियों ने टीबी के प्रति क्रिएटिव अंदाज में अवेयरनेस फैलाने का जिम्मा उठाया. दरअसल, साल 2021 के दिसंबर महीने में जारी किए गए एक वीडियो में हर्षिता, सबा, शबनम, आरती और तनुजा नाम की लड़कियां एक गाने पर डांस करती हुई नजर आईं. इस गाने की खास बात ये है कि ये ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए बनाया गया है.

आपको बता दें कि इन लड़कियों में से तनुजा और शबनम टीबी सर्वाइवर्स हैं या उन्हें टीबी चैंपियंस (TB Champions) भी कहा जा सकता है. वहीं सबा और आरती के करीबी टीबी की चपेट में आए. इन सभी ने टीबी मुक्त भारत का सपना आखों में लिए “गंदी लड़की” गाने के माध्यम से लोगों को यह बताने की कोशिश की है कि इसकी जांच और इलाज मुफ्त है.

जानकारी के मुताबिक इस गाने के लिरिक्स हर्षिता ने लिखे हैं. इस गाने को लिखने के पीछे का किस्सा बताते हुए हर्षिता ने कहा कि इसे लिखने का आइडिया उनको उस समय आया जब टीबी को खत्म करने के लिए वह सोशल मीडिया पर अवेयरनेस फैला रही थीं और ट्रोलर्स उन्हें ट्रोल कर रहे थे. सेंटर फॉर पब्लिक हेल्थ काइनेटिक्स, नई दिल्ली में एक शोध वैज्ञानिक हर्षिता ने 2015 में अपनी ‘क्रिएटिव एडवोकेसी’ शुरू की, उस समय उन्होंने अपना पहला गाना ‘आई वाना स्टॉप टीबी'(I wanna stop TB) जारी किया. इसके बाद उन्होंने ‘निक्षय एंथम’ लिखा. इस पर काम करना उन्होंने उस समय के आसपास शुरू किया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 तक भारत में टीबी को खत्म करने का आह्वान किया था.

हर्षिता से मिली जानकारी के अनुसार सोशल मीडिया अकाउंट पर उनके इस काम के बारे में लोग अभद्र टिप्पणियां करने लगे. हर्षिता ने न्यूज़18 को बताया कि यही वह समय था जब उन्होंने ‘तू क्या टीबी रोकेगी, तू गंदी लड़की है!’ लिख कर गाने की शुरुआत की. जिसके बाद उन्होंने सोचा कि यह गीत टीबी से जुड़े स्टिग्मा पर केंद्रित हो सकता है क्योंकि टीबी को एक गंदी बीमारी माना जाता है और महिलाएं इससे बहुत अधिक प्रभावित होती हैं. इसके बाद वह ‘टच्ड बाय टीबी’ के जरिए सबा, शबनम, आरती और तनुजा के संपर्क में आईं. आपको बता दें कि ‘टच्ड बाय टीबी’ टीबी सर्वाइवर्स या ‘टीबी चैंपियंस’ का एक ग्रुप है जहां लोग अपने अनुभवों को साझा करते हुए इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाते हैं.

जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, टीबी की जांच को लेकर हुई देरी से संक्रमण की अवधि बढ़ सकती है, उपचार में देरी हो सकती है और बीमारी की गंभीरता भी बढ़ सकती है. हर्षिता का कहना है, ‘टीबी से पीड़ित व्यक्ति भेदभाव के डर से मदद लेने में असमर्थ हो सकता है, जिससे उपचार में देरी हो सकती है. यह देरी बीमारी को और बढ़ा देती है. टीबी से ग्रसित इंसान स्टिग्मा के कारण हो सकता है कि मरीज ट्रीटमेंट कराना ही बंद कर दे. टीबी का इलाज संभव है, खासकर जब इसके बारे में जल्दी पता चल जाए. जबकि पलमोनरी टीबी, जो फेफड़ों को प्रभावित करती है, संक्रामक है. एक्स्ट्रा पलमोनरी टीबी (ईपीटीबी) नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने कहा कि 2020 में इस बैक्टीरिया बीमारी से दुनिया भर में 1.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई. साल 2019 में 1.4 मिलियन टीबी मरीजों की मौत हुई. भारत में इसके मरीजों की संख्या बहुत अधिक है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और उत्तर प्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्य सरकारों के साथ काम करने वाले स्वास्थ्य सलाहकार राघवन गोपाकुमार ने कहा, “लोगों को पता होता है कि शायद उन्हें टीबी है लेकिन और जांच नहीं कराना चाहते हैं.”
गोपकुमार ‘टच्ड बाय टीबी’ के साथ भी काम करते हैं और वीडियो में पांच लड़कियों को एक साथ लाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने समझाया कि टीबी से जुड़ा स्टिग्मा कोरोना के शुरुआती महीनों की तरह है, क्योंकि दूसरों को बीमारी वाले व्यक्ति के शारीरिक रूप से करीब होने से बचने की जरूरत है लेकिन उन्होंने कहा कि दवा लेने के तीन सप्ताह बाद पलमोनरी टीबी भी संक्रामक होना बंद हो जाता है. गोपकुमार ने कहा, “हमें बीमारी को खत्म करने की जरूरत है” बीमारी के इलाज और प्रसार के बारे में लोगों के पास जानकारी की कमी है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा कई जगह वर्क प्लेस पर टीबी से पीड़ित कर्मचारियों को छुट्टी पर जाने या छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है और महिलाओं के लिए, घर और शादी में कई दिक्कते हो सकती हैं.
वीडियो में दिखाई गई टीबी चैंपियन तनुजा इस बात का प्रमाण हैं कि मेडिकल कम्युनिटी टीबी से जुड़े स्टिग्मा के बारे में क्या कहती है. तनुजा ने दो बार बीमारी को हराया. उन्हें न केवल अपनी रीढ़ की हड्डी में ईपीटीबी से जूझना पड़ा, बल्कि उन्हें अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी. बावजूद इसके कि ईपीटीबी संक्रामक नहीं है. तनुजा ने कहा, “मैंने झूठ बोला था कि मुझे पीठ दर्द है,” वह 6 महीने तक दवा लेने के बाद ठीक हो गईं. हालांकि, उसके बाद उन्हें फिर से ये बीमारी हो गई. ऐसा तब हुआ जब उन्होंने निजी सेक्टर के डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाएं लीं, जो उनके लिए मददगार साबित नहीं हुईं. जानकारी के मुताबिक तनुजा ने तब सरकारी अस्पताल में इलाज कराने का फैसला किया. उन्हें दो महीने तक हर दिन कुछ अन्य दवाओं के साथ एक इंजेक्शन लेना पड़ा. इस दौरान उन्हें पैनिक अटैक का सामना भी करना पड़ा. उन्होंने कहा, ‘मैं उदास थी. इस बीमारी से बदतर कुछ भी नहीं है.’ तनुजा पिछले एक साल से दिल्ली के नेहरू नगर टीबी अस्पताल में ए़डवोकेसी कर रही हैं, जहां उन्होंने अपना इलाज भी करवाया. वह अस्पताल में टीबी रोगियों का मार्गदर्शन करती हैं और उऩ्हें प्रेरणा देती हैं. वह कहती है, ‘हम उनको समाज सकते हैं.’

टीबी को हराया जा सकता है. समय पर जांच और इलाज करने से टीबी के मरीज की जान बचाई जा सकती है.

Tags: Health News, Lifestyle, TB

image Source

Enable Notifications OK No thanks