Foreign Policy : नेपाल ने ठुकराई अमेरिकी मदद तो खुश हुआ चीन, जानें इस कदम का भारत पर पड़ सकता है कैसा असर?


नेपाल ने हाल ही में अमेरिका के स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम यानी एसपीपी में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। खास बात है कि इसके लिए नेपाल ने खुद पहल की थी। अब इसे अमेरिका से ज्यादा भारत के लिए झटका माना जा रहा है। वहीं, नेपाल के इस फैसले पर चीन ने खुशी जाहिर की है। 

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये एसपीपी यानी स्टेट पार्टनरशपि प्रोग्राम क्या है? नेपाल ने इसमें शामिल होने से इंकार क्यों किया? चीन को इससे क्या फायदा? भारत के लिए क्या ये बड़ा झटका है? आइए जानते हैं… 

 

पहले जान लीजिए ये प्रोग्राम क्या है? 

स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम अमेरिका के नेशनल गार्ड और सहयोगी देश के बीच एक एक्सचेंज प्रोग्राम है। इसके जरिए अमेरिकी नेशनल गार्ड अलग-अलग तरह की आपदा जैसे भूकंप, बाढ़ और जंगल की आग की स्थिति में अपने साझेदार देश की मदद करता है। ये पिछले 25 साल से जारी है और 90 देशों में इसकी 80 साझेदारियां हैं। 

आपदा की स्थिति में ये अमेरिकी गार्ड राहत और बचाव का कार्य करते हैं। इसलिए नेपाल ने खुद इसका सहयोग लेने के लिए एसपीपी में शामिल होने का आग्रह किया गया था। हालांकि, बाद में नेपाल के अंदर ही इसका विरोध शुरू हो गया। कहा गया कि ये एक तरह का सैन्य समझौता भी है। इसका असर नेपाल की गुटनिरपेक्ष और संतुलित विदेश नीति पर पड़ेगा। 

विरोध शुरू होने के बाद पिछले साल एक प्रेस रिलीज जारी कर अमेरिकी दूतावास ने साफ किया था कि एसपीपी का कोई सैन्य गठबंधन नहीं है और इसका मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत दी जा रही वित्तीय मदद से भी कोई संबंध नहीं है।  

बता दें कि मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन नेपाल के तहत अमेरिका नेपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के विकास के लिए 50 करोड़ डॉलर देने वाला है। इसके तहत, भारत-नेपाल को जोड़ने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी शामिल हैं। नेपाल में इसे लेकर भी विवाद चल रहा है। हालांकि, अमेरिका की सफाई के बाद भी नेपाल में एसपीपी को लेकर विरोध जारी रहा। जिसके बाद सरकार ने इसमें शामिल न होने का फैसला ले लिया। 

 

अब जानिए क्यों हुआ एसपीपी का विरोध? 

साल 2015 और फिर 2017 में नेपाल ने खुद अमेरिका से इसमें शामिल होने का आग्रह किया था। साल 2015 के भूकंप के बाद कई देशों की सेनाओं ने नेपाल को राहत और बचाव कार्यों में मदद की थी। नेपाल के आग्रह पर अमेरिका ने साल 2019 में इसकी मंजूरी भी दे दी थी। 

उस समय ये बताया गया था कि नेपाल की सेना ने अमेरिकी सरकार को एसपीपी के तहत मदद देने का आग्रह किया है ताकि आपदा प्रबंधन में उससे मदद मिल सके। लेकिन, इसके बाद इसका विरोध सरकार के अंदर और विपक्ष में भी होने लगा। कहा जाने लगा कि ये प्रोग्राम आपदा प्रबंधन के लिए नहीं बल्कि सैन्य सहयोग है। इसका नेपाल की संप्रभुता और संतुलित विदेश नीति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। 

प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा पर विपक्षी सीपीएन-यूएमल और अपनी पार्टी का भारी दबाव था। संघीय मामलों के मंत्री राजेंद्र श्रेष्ठ ने ये साफ भी किया था कि अमेरिकी सरकार को इस फैसले की सूचना दी जाएगी और सभी बातचीत केवल विदेश मंत्रालय के जरिए होगी। सेना के जरिए की गई सीधी बातचीत देश के लिए सही नहीं है। 

 

अमेरिका ने क्या कहा?

एसपीपी में शामिल न होने पर नेपाल के फैसले से पहले अमेरिकी दूतावास एक ट्वीट किया था। इसमें उन्होंने सैन्य सहयोग की बात को गलत बताया था। अमेरिका ने कहा था, ‘इसे अमेरिका और नेपाल के बीच सैन्य समझौता दिखाने वाले कुछ जगहों पर प्रकाशित दस्तावेज झूठे हैं। नीति के अनुसार, अमेरिका अन्य देशों को स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम में शामिल होने के लिए नहीं कहता और इसके लिए आग्रह आने पर ही प्रतिक्रिया करता है।’ 

बयान में आगे कहा गया, ‘स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम अमेरिका के नेशनल गार्ड और सहयोगी देश के बीच एक्सचेंज प्रोग्राम है। अमेरिकी नेशनल गार्ड आपदा जैसे भूकंप, बाढ़ और जंगल की आग की स्थिति में अमेरिका में सबसे पहले प्रतिक्रिया देते हैं। आपदा की स्थिति में अमेरिका अपने नेशनल गार्ड की बेहतरीन सेवाओं और क्षमताओं को साझा करता है।’

अमेरिकी दूतावास ने पिछले साल भी कहा था कि अगर नेपाल नहीं चाहता कि ये प्रोग्राम वहां लागू हो तो नहीं होगा। इस संबंध में कोई कार्य आगे नहीं बढ़ाया गया है। 

 

चीन ने क्या कहा? 

अमेरिकी प्रोग्राम में नेपाल के शामिल न होने के फैसले पर चीन की तरफ से खुशी जाहिर की गई है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने गुरुवार को इसपर बयान जारी किया। कहा, ‘एक दोस्त, नजदीकी पड़ोसी और रणनीतिक सहयोगी होने के नाते चीन नेपाल की सरकार के फैसले की सराहना करता है।’

 



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