नई दिल्ली. महामारी के बाद से दुनियाभर में नौकरियां छोड़ने की दर में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है. इस दौरान कुशल कर्मचारियों की हायरिंग (Hiring) में भी तेजी आई है. ग्लोबल प्रोवाइडर ऑफ इंप्लाइमेंट सर्विसेज रैंडस्टैड एनवी (Randstad NV) के मुताबिक, द ग्रेट रेजिगनेशन (Great Resignation) में नरमी के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. इससे पेशेवर और कुशल कर्मचारियों की आपूर्ति घटती जा रही है.
डच कंपनी के नए चीफ एक्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) सैंडर वैन टी नूरडेंडे का कहना है कि जिन कंपनियों में प्रतिभाशाली कर्मचारियों को मनमाफिक काम और सैलरी नहीं मिल रही है, वे कंपनी छोड़कर जा रहे हैं. वे उन कंपनियों का चयन कर रहे हैं, जहां उनकी जरूरतें पूरी हो रही हैं और जहां उन्हें उनके हिसाब से सुविधाएं मिल रही हैं.
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अब खुलकर अपनी बात रख रहे कर्मचारी
रैंडस्टैड ने अपनी नई ‘वर्कमॉनिटर’ रिपोर्ट में कहा कि आज यह एक तरह का बदलाव है. मांग बढ़ने और आपूर्ति घटने के कारण कर्मचारी आज खुलकर अपनी खुशी-नाखुशी जाहिर कर रहे हैं. वे जो चाहते हैं, उसे पाना चाहते हैं. ऐसा नहीं होने पर वे नौकरी छोड़कर नई कंपनी का रुख कर रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो वर्षों की घटनाओं ने दुनियाभर के कर्मचारियों की भावनाओं को बदल दिया है. वे अब कंपनियों के सामने खुलकर अपनी बात रख रहे हैं.
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वरदान साबित हुआ है Great Resignation
रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर काम करने की स्थिति और अच्छी सैलरी की तलाश करने वाले कर्मचारियों के लिए ग्रेट रेजिगनेशन एक वरदान साबित हुआ है. महामारी के दौरान वर्क फ्रॉम होम करने वाले कर्मचारियों के लिए नए विकल्पों की तलाश आसान हो गई है.
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Great Resignation में नरमी की संभावना नहीं
रैंडस्टैड ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा कि ग्रेट रेजिगनेशन में अभी नरमी की संभावना नहीं है. उसने कहा कि भले ही 83 फीसदी लोग फ्लेक्सिबल ऑवर (काम के लचीले घंटे) और 71 फीसदी लोग वर्कप्लेस को महत्ता दे रहे हैं, लेकिन अधिकांश का मानना है कि उनके पास यह चुनने का अधिकार नहीं है कि वे कहां काम करना चाहते हैं.
कंपनी का दावा…दुनिया का पहला बड़ा अध्ययन
रिपोर्ट के मुताबिक, हर पांच में से दो कर्मचारियों का मानना है कि काम के घंटे पर उनका कोई अधिकार नहीं है. इसका मतलब है कि कंपनियां जितने घंटे चाहती हैं, कर्मचारियों को काम करना पड़ रहा है. ग्रेट रेजिगनेशन में इसकी भी अहम भूमिका है. यह सर्वे 34 देशों के करीब 35,000 कर्मचारियों से बातचीत पर आधारित है. डच कंपनी का दावा है कि यह दुनिया में अपनी तरह का पहला बड़ा अध्ययन है.
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