नई दिल्ली . एचडीएफसी बैंक के अपने सबसे बड़े शेयरधारक हाउसिंग लोन कंपनी एचडीएफसी के मेगा मर्जर को रेगुलेटरी बाधा का करना पड़ सकता है. इसका कारण यह है कि एचडीएफसी इस बैंक को बीमा सेक्टर में भी हिस्सेदारी देगी. विश्लेषकों ने यह आशंका जताई है. देश का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक एचडीएफसी बैंक अपनी पेरंट कंपनी एचसीएफसी और उसके ऑल-स्टॉक अधिग्रहण के लिए राजी हुआ है.
विलय के बाद एचडीएफसी लिमिटेड की एचडीएफसी बैंक में 41 फीसदी हिस्सेदारी होगी. एचडीएफसी बैंक ने 28 साल पहले हाउसिंग लोन देने वाली इस कंपनी को स्थापित करने में मदद दी थी. विलय के बाद एचडीएफसी बैंक 100 फीसदी पब्लिक होल्डिंग कंपनी बनेगी. एचडीएफसी लिमिटेड के निवेशकों को 25 शेयर के बदले एचडीएफसी बैंक के 42 शेयर मिलेंगे.
यह मर्जर वित्त वर्ष 2023-24 की तीसरी तिमाही तक पूरा होने की उम्मीद है. एचडीएफसी बैंक के सीईओ शशिधर जगदीशन विलय की गई इकाई के प्रमुख होंगे. इससे पहले जानकारी मिली थी कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) चाहता है कि बैंक बीमा कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम करे.
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एचडीएफसी लाइफ और एचडीएफसी एर्गो प्राइवेट सेक्टर की प्रमुख जीवन और सामान्य बीमा कंपनियों में से हैं. विश्लेषकों का कहना है कि आरबीआई एचडीएफसी बैंक के हाथों इन बीमा कंपनियों के संचालन की जिम्मेदारी सौंपे जाने को लेकर सहज नहीं होगा. यही वजह है कि एचडीएफसी बैंक के मैनेजमेंट ने सोमवार को कहा कि उन्होंने नियामक से इसके नियमों के संबंध में स्पष्टता मांगी है. विश्लेषकों का मानना है कि यह आसान नहीं होगा.
एक घरेलू ब्रोकरेज हाउस के एनालिस्ट ने कहा, “इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कई सहायक कंपनियों को मर्ज करने की जरूरत है, जिसमें कुछ नियामकीय बाधा सामने आ सकती हैं, खासकर बीमा कारोबार में जहां आरबीआई बैंकों के अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने को लेकर बहुत सहज नहीं है.”
बैलेंस शीट पर निगेटिव असर
विश्लेषकों के अनुसार सहायक कंपनियों को एचडीएफसी बैंक के अधीन लाने के लिए होल्डिंग कंपनी स्ट्रक्चर बनाना पड़ सकता है. हालांकि अल्पावधि में बैलेंस शीट पर इसका निगेटिव प्रभाव पड़ सकता है. ब्रोकरेज फर्म Macquarie ने मंगलवार को कहा कि यदि होल्डिंग कंपनी अस्तित्व में लाई जाती है, तो समीकरण बदल जाते हैं. स्टांप शुल्क के रूप में लागत बढ़ने के साथ कर बढ़ जाते हैं.
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इक्विटी पर रिटर्न घटेगा
ब्रोकरेज फर्म Macquarie के नोट में कहा गया है कि होल्डिंग कंपनी बनाने की स्थिति में कुछ नियामकीय आवश्यकताओं को पूरा करने के कारण इक्विटी पर रिटर्न (RoE) भी अल्पावधि में कम हो जाएगा. इसका असर कंपनी और निवेशकों पर पड़ सकता है.
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