हाईकोर्ट ने किया स्पष्ट : उम्रकैद का मतलब अंतिम सांस तक सजा, निचली अदालत का फैसला बरकरार


अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Fri, 06 May 2022 12:43 AM IST

सार

उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा का मतलब अभियुक्त की आखिरी सांस तक है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने महोबा जिले के कुलपहाड़ थाने के अंतर्गत 1997 में हुई हत्या के मामले में दाखिल फूल सिंह व अन्य (तीन ) की अपीलों को खारिज करते हुए दिया है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उम्रकैद की सजा अभियुक्त के प्राकृतिक जीवन तक है, जिसे कोर्ट द्वारा वर्षों की संख्या में तय नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह राज्य सरकार का विवेकाधिकार है कि वह जेल में कम से कम 14 साल की सजा काटने के बाद आजीवन कारावास की सज़ा में छूट दे।

लेकिन उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा का मतलब अभियुक्त की आखिरी सांस तक है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने महोबा जिले के कुलपहाड़ थाने के अंतर्गत 1997 में हुई हत्या के मामले में दाखिल फूल सिंह व अन्य (तीन अपीलों) को खारिज करते हुए दिया है।

कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट मामले में आरोपी बनाए गए फूल सिंह, कल्लू और जोगेंद्र व अन्य की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी। महोबा की जिला अदालत ने तीनों अभियुक्तों को हत्या सहित आईपीसी की अलग-अलग धाराओं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तीनों आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती थी। याचियों की ओर से कहा गया कि उन्हें जेल में रहते हुए 20-21 साल हो गए हैं। याचियों की मांग थी कि उन्हें छोड़ दिया जाए।

कोर्ट ने पाया कि मामला राज्य सरकार की ओर से बनाई गई नीति के अंतर्गत है। मामले में आरोपी फूल सिंह और कल्लू पहले से ही जेल में हैं, इसलिए कोर्ट ने दोनों याचियों के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया। लेकिन कोर्ट ने संबंधित अदालत को हरि उर्फ हरीश चंद्र और चरण नाम के अपीलकर्ताओं को हिरासत में लेने और शेष सजा काटने के लिए जेल भेजने का निर्देश दिया। कोर्ट केसमक्ष याची कल्लू की ओर से तर्क दिया गया कि वह 20-21 साल जेल में काट चुका है। उसकी सज़ा की अवधि को देखते हुए उसे रिहा किया जाए। कोर्ट ने इस पर स्पष्ट किया कि यह उचित नहीं है।

एक अभियुक्त की हो चुकी है मौत
सुनवाई के दौरान पांच अभियुक्तों में कल्लू, फूल सिंह, हरि और चरण को जय सिंह की हत्या करने का दोषी ठहराया गया था। मामले में एक अन्य आरोपी जोगेंद्र सिंह की मौत हो चुकी है।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उम्रकैद की सजा अभियुक्त के प्राकृतिक जीवन तक है, जिसे कोर्ट द्वारा वर्षों की संख्या में तय नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह राज्य सरकार का विवेकाधिकार है कि वह जेल में कम से कम 14 साल की सजा काटने के बाद आजीवन कारावास की सज़ा में छूट दे।

लेकिन उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा का मतलब अभियुक्त की आखिरी सांस तक है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने महोबा जिले के कुलपहाड़ थाने के अंतर्गत 1997 में हुई हत्या के मामले में दाखिल फूल सिंह व अन्य (तीन अपीलों) को खारिज करते हुए दिया है।

कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट मामले में आरोपी बनाए गए फूल सिंह, कल्लू और जोगेंद्र व अन्य की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी। महोबा की जिला अदालत ने तीनों अभियुक्तों को हत्या सहित आईपीसी की अलग-अलग धाराओं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तीनों आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती थी। याचियों की ओर से कहा गया कि उन्हें जेल में रहते हुए 20-21 साल हो गए हैं। याचियों की मांग थी कि उन्हें छोड़ दिया जाए।



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