न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बेंगलुरु
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Mon, 14 Feb 2022 04:23 PM IST
सार
हिजाब विवाद में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर दिया गया सरकारी आदेश दिमाग का गैर-उपयोग है।
कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है। सुनवाई से पहले अदालत ने मीडिया से अपील करते हुए कहा कि मीडिया को ऐसे संवेदनशील विषय पर और जिम्मेदार बनने की जरूरत है। वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर दिया गया सरकारी आदेश दिमाग का गैर-उपयोग है। उनका कहना है कि यह सरकारी आदेश अनुच्छेद 25 के तहत है और यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने आगे कहा कि हिजाब की अनुमति है या नहीं, यह तय करने के लिए कॉलेज कमेटी का प्रतिनिधिमंडल पूरी तरह से अवैध है।
बहस के दौरान कामत ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय में मुस्लिम छात्राओं को हेडस्कार्फ पहनने की अनुमति है। कामत ने कहा कि जहां तक मुख्य धार्मिक प्रथाओं का संबंध है, वे अनुच्छेद 25(1) से आते हैं और यह पूर्ण नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर मूल धार्मिक प्रथाएं सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं या ठेस पहुंचाती हैं तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इस दौरान हाई कोर्ट ने कामत से पूछा कि क्या कुरान में जो कुछ कहा गया है वह जरूरी धार्मिक प्रथा है? इस पर कामत ने कहा, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं।
विस्तार
कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है। सुनवाई से पहले अदालत ने मीडिया से अपील करते हुए कहा कि मीडिया को ऐसे संवेदनशील विषय पर और जिम्मेदार बनने की जरूरत है। वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर दिया गया सरकारी आदेश दिमाग का गैर-उपयोग है। उनका कहना है कि यह सरकारी आदेश अनुच्छेद 25 के तहत है और यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने आगे कहा कि हिजाब की अनुमति है या नहीं, यह तय करने के लिए कॉलेज कमेटी का प्रतिनिधिमंडल पूरी तरह से अवैध है।
बहस के दौरान कामत ने कहा कि केंद्रीय विद्यालय में मुस्लिम छात्राओं को हेडस्कार्फ पहनने की अनुमति है। कामत ने कहा कि जहां तक मुख्य धार्मिक प्रथाओं का संबंध है, वे अनुच्छेद 25(1) से आते हैं और यह पूर्ण नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर मूल धार्मिक प्रथाएं सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं या ठेस पहुंचाती हैं तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इस दौरान हाई कोर्ट ने कामत से पूछा कि क्या कुरान में जो कुछ कहा गया है वह जरूरी धार्मिक प्रथा है? इस पर कामत ने कहा, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं।
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