मान के एलान पर कानूनी पेंच: 35000 कर्मचारी कैसे होंगे पक्के? तीन पूर्व सीएम भी कर चुके कोशिश, मगर सफल नहीं हो सके


न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: ajay kumar
Updated Thu, 24 Mar 2022 12:01 AM IST

सार

कच्चे मुलाजिमों को पक्का करने के अब तक के सभी प्रयासों पर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आड़े आता है। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार केस में एक फैसला दिया था कि कांट्रैक्ट मुलाजिमों को पक्का नहीं किया जा सकता।

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पंजाब की भगवंत मान सरकार ने सरकारी विभागों में कार्यरत 35000 कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का फैसला किया है लेकिन यह फैसला कानूनी दाव-पेंच में उलझ सकता है। राज्य सरकार इतने कच्चे मुलाजिमों को पक्का नहीं कर सकेगी। हालांकि इस संबंध में प्रक्रिया शुरू करने के लिए उन्होंने मुख्य सचिव को अगले विधानसभा सत्र से पहले प्रारूप तैयार करने के निर्देश भी दिया है ताकि सदन में इस फैसले को पारित कर तुरंत ही राज्यपाल की मुहर लगवाई जाए और फैसले को लागू कर दिया जाए।

सरकारी विभागों में कार्यरत तदर्थ, अनुबंध, दैनिक वेतन, अस्थायी कार्य प्रभारित और आउटसोर्स मुलाजिमों की संख्या 35000 से ज्यादा है। इनमें ठेका आधार पर नियुक्त मुलाजिमों की संख्या ज्यादा है और जिनका पूरा ब्योरा संबंधित ठेकेदारों के पास ही है। केवल कांट्रैक्ट और डेलीवेज पर रखे गए मुलाजिमों का विवरण ही विभागों के पास है। इनके अलावा अनेक कच्चे मुलाजिम केंद्रीय परियोजनाओं के हिस्से के तौर पर विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं। उन पर केवल केंद्र सरकार के सेवा नियम ही लागू होते हैं। 

बावजूद इसके पंजाब में समय-समय पर सरकारों द्वारा सभी तरह के कच्चे मुलाजिमों को पक्का करने का एलान भी होता रहा है और प्रयास भी होते रहे हैं। ऐसे प्रयास का ताजा मामला पंजाब की पूर्व कांग्रेस सरकार का है, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने 35000 मुलाजिमों को पक्का करने का प्रस्ताव सदन में पारित कर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा लेकिन इसे राज्यपाल की सहमति नहीं मिल सकी। इससे पहले 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। बाद में, 2016 में बादल सरकार ने पंजाब तदर्थ, अनुबंध, दैनिक वेतन, अस्थायी कार्य प्रभारित और आउटसोर्स कर्मचारी कल्याण अधिनियम-2016 पारित कर इसे कानूनी दर्जा देने की कोशिश कर चुके हैं।

यहां फंसा है पेंच
कच्चे मुलाजिमों को पक्का करने के अब तक के सभी प्रयासों पर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आड़े आता है। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार केस में एक फैसला दिया था कि कांट्रैक्ट मुलाजिमों को पक्का नहीं किया जा सकता, क्योंकि कांट्रैक्ट पर नियुक्ति के मापदंड ही निर्धारित नहीं है।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था केवल उन मुलाजिमों को पक्का किया जा सकता है, जिन्हें नियमबद्ध तरीके और स्वीकृत पदों के लिए भर्ती किया गया हो। इसके अलावा अन्य कोई मुलाजिम पक्का नहीं किया जा सकता। हालांकि उस समय सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को 2006 तक ठेके पर रखे हुए मुलाजिमों को नियमित करने की छूट भी दी लेकिन बाद में उस पर भी रोक लगा दी थी। ऐसे में पंजाब की चन्नी सरकार ने जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी करते हुए नया एक्ट लाकर मुलाजिमों को पक्का करने की कोशिश की तो सरकार के प्रस्ताव को राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी। ऐसी ही आशंका अब मुख्यमंत्री भगवंत मान की घोषणा को लेकर व्यक्त की जा रही है।

विस्तार

पंजाब की भगवंत मान सरकार ने सरकारी विभागों में कार्यरत 35000 कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का फैसला किया है लेकिन यह फैसला कानूनी दाव-पेंच में उलझ सकता है। राज्य सरकार इतने कच्चे मुलाजिमों को पक्का नहीं कर सकेगी। हालांकि इस संबंध में प्रक्रिया शुरू करने के लिए उन्होंने मुख्य सचिव को अगले विधानसभा सत्र से पहले प्रारूप तैयार करने के निर्देश भी दिया है ताकि सदन में इस फैसले को पारित कर तुरंत ही राज्यपाल की मुहर लगवाई जाए और फैसले को लागू कर दिया जाए।

सरकारी विभागों में कार्यरत तदर्थ, अनुबंध, दैनिक वेतन, अस्थायी कार्य प्रभारित और आउटसोर्स मुलाजिमों की संख्या 35000 से ज्यादा है। इनमें ठेका आधार पर नियुक्त मुलाजिमों की संख्या ज्यादा है और जिनका पूरा ब्योरा संबंधित ठेकेदारों के पास ही है। केवल कांट्रैक्ट और डेलीवेज पर रखे गए मुलाजिमों का विवरण ही विभागों के पास है। इनके अलावा अनेक कच्चे मुलाजिम केंद्रीय परियोजनाओं के हिस्से के तौर पर विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं। उन पर केवल केंद्र सरकार के सेवा नियम ही लागू होते हैं। 

बावजूद इसके पंजाब में समय-समय पर सरकारों द्वारा सभी तरह के कच्चे मुलाजिमों को पक्का करने का एलान भी होता रहा है और प्रयास भी होते रहे हैं। ऐसे प्रयास का ताजा मामला पंजाब की पूर्व कांग्रेस सरकार का है, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने 35000 मुलाजिमों को पक्का करने का प्रस्ताव सदन में पारित कर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा लेकिन इसे राज्यपाल की सहमति नहीं मिल सकी। इससे पहले 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। बाद में, 2016 में बादल सरकार ने पंजाब तदर्थ, अनुबंध, दैनिक वेतन, अस्थायी कार्य प्रभारित और आउटसोर्स कर्मचारी कल्याण अधिनियम-2016 पारित कर इसे कानूनी दर्जा देने की कोशिश कर चुके हैं।

यहां फंसा है पेंच

कच्चे मुलाजिमों को पक्का करने के अब तक के सभी प्रयासों पर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आड़े आता है। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार केस में एक फैसला दिया था कि कांट्रैक्ट मुलाजिमों को पक्का नहीं किया जा सकता, क्योंकि कांट्रैक्ट पर नियुक्ति के मापदंड ही निर्धारित नहीं है।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था केवल उन मुलाजिमों को पक्का किया जा सकता है, जिन्हें नियमबद्ध तरीके और स्वीकृत पदों के लिए भर्ती किया गया हो। इसके अलावा अन्य कोई मुलाजिम पक्का नहीं किया जा सकता। हालांकि उस समय सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को 2006 तक ठेके पर रखे हुए मुलाजिमों को नियमित करने की छूट भी दी लेकिन बाद में उस पर भी रोक लगा दी थी। ऐसे में पंजाब की चन्नी सरकार ने जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी करते हुए नया एक्ट लाकर मुलाजिमों को पक्का करने की कोशिश की तो सरकार के प्रस्ताव को राज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी। ऐसी ही आशंका अब मुख्यमंत्री भगवंत मान की घोषणा को लेकर व्यक्त की जा रही है।



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