दिलों में राज करते इरफ़ान और ऋषि कपूर; हो सके तो लौट आओ किसी बहाने से….


आसमान रौशन है और ज़मीं उदास है,

हमारे सितारे लेके, इतरा रहा है दूसरा जहां

दो साल पहले लिखी गईं ये लाइनें इस बरस भी मेमोरी में आयीं, और दिल में एक हूक उठी. दिल बहुत उदास हो गया, आंखें नम हो गईं. ऐसा लगता है कि जैसे कोई अपना बेहद करीबी चला गया था हमें छोड़कर. हां वो अपने ही थे दिल के इतने करीब कि उनके जाने से दिल बैठ गया था. 29 और 30 अप्रैल 2020 ये वो दो दिन हिंदुस्तानियों के साथ-साथ दुनिया को ग़मज़दा कर गए. 29 अप्रैल को हमारे सबके बेहद अज़ीज़ इरफ़ान इस दुनिया को अलविदा कह देते हैं और 30 अप्रैल की सुबह ख़बर मिलती है कि ऋषि कपूर साहब भी अब हमारे बीच नहीं रहे. इन दोनों के साथ-साथ जाने से दिल उदास हो गए और दुनिया ग़म में डूब गई.

जब इरफ़ान के जाने की ख़बर मिली थी तो दिल धक से हुआ. ऐसा लगा कि कोई बेहद करीबी चला गया. इरफ़ान सिर्फ़ एक कलाकार नहीं थे. वो करोड़ों लोगों के दिलों में घर करते थे. मैं हमेशा कहती हूं कि अगर इश्क़ की कोई सूरत होती हो यक़ीनन इरफान खान की तरह होती. वो इश्क़ की सूरत थे. इश्क़ ऐसा ही तो होता है, बेलौस, बेपनाह. जिससे कभी मिले नहीं, जिससे कोई रिश्ता नाता नहीं उससे दिल का जुड़ जाना कोई आसान तो नहीं. लेकिन इरफ़ान के साथ ऐसा ही रिश्ता बना. उनकी आवाज़ कानों में गूंजती है.

उनकी आखें समंदर से गहरीं जो वो बयां कर जाएं जो लफ़्ज़ ना कह पाए. कैंसर जैसी बीमारी से जूझते हुए इरफ़ान कभी नाउम्मीद नहीं हुए. उन्होंने हमेशा हौसले से काम लिया. इरफ़ान खान के गए दो बरस बीत गए लेकिन वो हमारे बीच घर कर गए हैं. वो कहीं नहीं गए. बस सो रहे हैं सुकूं की नींद. उनकी फिल्में हमें उनके पास ले जाती हैं. इरफ़ान जैसे कलाकार कहीं नहीं जाते हैं वो रह जाते हैं हम लोगों के बीच, वो बस जाते हैं हमारी ज़िंदगी में धड़कनों की तरह. इरफ़ान को देश मोहब्बत से याद कर रहा है, सोशल मीडिया पटा पड़ा है इरफ़ान खान की तस्वीरों से. सबकी अपनी अपनी यादें हैं. जो इनके मिले और जो रुपहले पर्दे के ज़रिए रुबरू हुए. सबके दिलों में टीस है कि इरफ़ान खान को इतनी जल्दी नहीं जाना चाहिए लेकिन कहते हैं सबका अपना अपना सफ़र है कब कहां खत्म होगा कह नहीं सकते.

पत्रकार अमीश राय इरफ़ान को याद करते हुए लिखते हैं कि-

आज मातम का दिन है इरफान भाई और दिल से आवाज़ आ रही है मुकर्रर-मुकर्रर

देखिए न इरफान भाई, लॉकडाउन में जब हमारा खुद का जीवन आपाधापी में फंसा हुआ है तो जिंदगी की ट्रेन की चेन खींच आप चुपके से उतर लिए. मुझे ये बात नहीं समझ में आती थी कि लोग कैसे कहते हैं कि कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला. आज एक झटके में समझा दिया आपने. आपसे भी तो प्यार ही हो गया था और देखिए न हमें कभी पता ही नहीं चला.

पता भी कैसे चलता? प्यार के लिए ठहरना पड़ता है. वक़्त देना पड़ता है. और हम सब उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जिसकी पूंछ में आग लगा दी गयी है. इरफान भाई हमारे पैरों में चक्र बांध दिए गए हैं. देखिए न इस लॉकडाउन में भी इतनी फुरसत नहीं कि आराम से आपसे किये गए प्रेम को ही याद कर लें.

गलती किसी की नहीं, हमारी खुद की है इरफान भाई. ये जिंदगी हमने ही तो चुनी है. हमारी इस शापित पीढ़ी के पास सो कॉल्ड ही सही चुनाव के मौके तो होते ही हैं इरफान भाई. कम से कम हमारे बड़े बुजुर्ग और सीनियर तो यही कहते हैं.

जब खबर मिली तो एक पल के लिए लगा कि सब कुछ कितना जल्दी हो गया? ऐसा लगता था कि अभी तो मानो आपने मत्ला पढ़ना शुरू ही किया है. और कब आप मक़्ता पढ़ कर निकल गए पता ही नहीं चला.

इरफ़ान लोगों के दिलों में इस क़दर बसे हुए हैं कि सबके दिलों का एक कोना खाली हो गया, वो भर नहीं सकता क्योंकि वहां इरफ़ान रहते हैं.

मैं उदास थी, रोए जा रही थी और मां मुझे समझा रहीं थी लेकिन एक दिन बाद ही मेरी मां के सबसे पसंदीदा कलाकार भी चल बसे. मुझे याद है बचपन में जब भी दूरदर्शन पर ऋषि कपूर की कोई फिल्म आती हम मां को आवाज़ देकर बुलाते कि मां आपके हीरो की फिल्म आ रही है. मां दौड़ी दौड़ी आती सारा काम छोड़कर. ऋषि कपूर भी कैंसर जैसी बीमारी का शिकार हुए. एक बेहतरीन कलाकार जिसने अपने आख़िरी समय तक काम किया. उनके जाने के बाद उनकी आखिरी फिल्म शर्मा जी नमकीन रिलीज़ हुई. जो ऋषि साहब पूरी नहीं कर पाए थे, ये फिल्म परेश रावल ने पूरी की. अभी कुछ दिनों पहले ही ये फिल्म देखी और बस आंखे नम हो गईं. वो हंसा गए, गुदगुदा गए और फिल रुला भी गए.

इरफ़ान और ऋषि कपूर से हिंदुस्तान के लोगों का दिलों का जुड़ाव था. उनके जाने से खाली हुई जगह कभी नहीं भर सकती है. हमने बेहतरीन कलाकारों के साथ साथ बेहतरीन इंसानों को खोया है जो आज की दुनिया में बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. नफ़रतों के दौर में हर शख़्स गमज़दा था इनके जाने से. मुस्लिम ऋषि कपूर के लिए दुआ कर रहे थे तो हिंदुओं ने इरफ़ान के लिए प्रार्थनाएं की. यही तो ख़ासियत थी दोनों की ये मज़हब से मोहब्बत की तरफ़ ले गए थे लोगों को.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

ब्लॉगर के बारे में

निदा रहमान

निदा रहमानपत्रकार, लेखक

एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.

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