युद्ध: बाहर माइनस 20 डिग्री तापमान, ईंधन नहीं इस्तेमाल किया तो अंदर फ्रीजर जैसी स्थिति, टैंकों में बंद रूसी सैनिकों पर जान का खतरा


वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कीव
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Wed, 09 Mar 2022 09:24 PM IST

सार

रूस का यह 64 किमी लंबा टैंकों का बेड़ा अब तक कीव में घुसने में सफल नहीं हुआ है। इसके पीछे यूक्रेन की तबाह हो चुकी सड़कें और रसद की सप्लाई में आया गतिरोध तो एक वजह है ही। 

यूक्रेन से 30 किमी बाहर भीषण सर्दी में फंसे टैंक।

यूक्रेन से 30 किमी बाहर भीषण सर्दी में फंसे टैंक।
– फोटो : Social Media

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विस्तार

रूस की ओर से यूक्रेन के खिलाफ जंग छेड़े अब दो हफ्ते हो चुके हैं। 24 फरवरी को पहली बार रूसी राष्ट्रपति पुतिन की सेना ने यूक्रेन में कदम रखा था। इसके बाद से ही यूक्रेनी सेना ने रूस के आक्रमण से कीव को बचाकर रखा है। पिछले हफ्ते एक संस्थान ने सैटेलाइट तस्वीरों के हवाले से बताया था कि रूस ने कीव को घेरने के लिए 64 किलोमीटर लंबा टैंकों का बेड़ा भी शहर के ठीक बाहर लगा दिया है। इसके बावजूद रूस अब तक कीव पर कब्जा करने में नाकाम रहा है। अब सामने आया है कि रूस के लिए यूक्रेन पर हमला उसके अपने ही सैनिकों के लिए बड़ी मुसीबत बन गया है। इसमें यूक्रेन का मौसम रूस के लिए बड़ी बाधा बनकर सामने आया। 

गौरतलब है कि रूस का यह 64 किमी लंबा टैंकों का बेड़ा अब तक कीव में घुसने में सफल नहीं हुआ है। इसके पीछे यूक्रेन की तबाह हो चुकी सड़कें और रसद की सप्लाई में आया गतिरोध तो एक वजह है ही। साथ ही यूक्रेन की माइनस 20 डिग्री सेल्सियस की हाड़ कंपाने वाली ठंड रूसी सैनिकों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। कीव और खारकीव में इस हफ्ते तक शीतलहर की वजह से तापमान और गिरने की संभावना है। 

यूक्रेन में भारी बर्फबारी की वजह से रूसी सेना के टैंक कीव से करीब 30 किमी दूर ही फंसे हैं। इस भीषण ठंड में रूसी जवानों के पास न तो रसद की आपूर्ति हो पा रही है और न ही उनकी योजनाएं सफल हो रही हैं। इस बीच कई सैनिकों के टैंक ईंधन की सप्लाई में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। 

ब्रिटिश सेना के पूर्व मेजर केविन प्राइस के मुताबिक, टैंक में बंद सैनिकों को इस वक्त सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा होगा, क्योंकि पूरी तरह से लोहे से बने टैंकों में तापमान और कम होगा। यानी ये टैंक एक लोहे के फ्रीजर का काम कर रहे होंगे। इस स्थिति में उनके बचने का एकमात्र रास्ता टैंक के अंदर लगे हीटर हैं, जो कि ईंधन के इस्तेमाल से ही चलते हैं। पर चूंकि सप्लाई लाइन पूरी तरह से टूट चुकी है, ऐसे में उन पर ज्यादा ईंधन इस्तेमाल न करने का दबाव होगा। यानी इन स्थितियों में ज्यादा देर तक रहने से सैनिकों की जान पर खतरा होगा। इसके अलावा जो इस स्थिति का सामना कर लेंगे, उनकी आगे जंग लड़ने की हिम्मत भी टूट सकती है। 

यूक्रेनी सैनिकों के पास बड़ा मौका?

प्राइस के मुताबिक, ठंड की यह स्थिति यूक्रेनी सैनिकों के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है। क्योंकि रूसी सैनिक फिलहाल फंसे हुए हैं और वे अपने टैंकों के ईंधन को या तो जला चुके होंगे या टैंक को बंद कर के सप्लाई चालू होने का इंतजार कर रहे होंगे। इस स्थिति में यूक्रेनी सैनिक मौके का फायदा उठाकर टैंकों को खदेड़ने का काम कर सकते हैं। रूस के जवानों के लिए टैंक में बैठे रहना मौत को दावत देने जैसा है। 

क्या पुतिन ने सेना भेजने के फैसले पर किसी से नहीं की थी चर्चा?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूसी सेना को यूक्रेन में भेजने का यह फैसला राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर भारी पड़ गया है। क्रेमलिन के कुछ अधिकारियों ने इस कदम को लेकर चिंताएं जाहिर कीं। रूस की एक पत्रकार फरीदा रुस्तमोवा ने देश से बाहर निकलने के बाद कहा कि पुतिन ने यूक्रेन में जंग छेड़ने का फैसला अचानक ही लिया और मॉस्को में किसी को उम्मीद नहीं थी कि पुतिन धमकियों से आगे बढ़ेंगे। 



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