महामारी से ज्यादा घातक : आठ शहरों में असमय ही लाखों लोगों की जिंदगी लील गया वायु प्रदूषण, 13 लाख से ज्यादा मौतें


एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Tue, 12 Apr 2022 06:07 AM IST

सार

देश में पीएम 2.5 की वजह से 2005 में 1,23900 मौतें हुई होंगी, जो 2018 में बढ़कर दो लाख 23 हजार दो सौ तक पहुंच गई होंगी। अध्ययन में वायु गुणवत्ता में तीव्र गिरावट और वायु प्रदूषकों के शहरी जोखिम में वृद्धि को दर्शाया गया है, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओटू) में 14% तक और सूक्ष्म कणों (पीएम-2.5) में 8% की खतरनाक वार्षिक वृद्धि हुई है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

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– फोटो : सोशल मीडियाा

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विस्तार

मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद में 2005 से 2018 के बीच वायु-प्रदूषण की वजह से 13 लाख लोगों की असमय मौत का अनुमान है। इन शहरों में वायु प्रदूषण कोविड महामारी से ज्यादा घातक साबित हो रहा है। वैज्ञानिकों की टीम ने 2005 से 2018 के बीच नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के उपग्रहों से अंतरिक्ष-आधारित अवलोकनों का उपयोग कर अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के 46 शहरों में वायु गुणवत्ता पर अध्ययन किया। यह अध्ययन हाल ही में साइंस एडवांस्ड में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन में अनुमान जताया गया है कि 2005 में कोलकाता में 39,200, अहमदाबाद में 10,500, सूरत में 5800, मुंबई में 30,400, पुणे में 7,400, बेंगलुरु में 9,500, चेन्नई में 11,200 और हैदराबाद में 9,900 लोगों की प्रदूषण की वजह से असमय मौत हुई होगी। इसके बाद बढ़ी हुई जनसंख्या के साथ 2018 में कोलकाता में 54,000, अहमदाबाद में 18,400, सूरत में 15000, मुंबई में 48,300, पुणे में 15,500, बेंगलुरु में 21,000, चेन्नई में 20,800 और हैदराबाद में 23,700 लोगों की असमय मौत का अनुमान है। मोटे तौर पर 2005 से 2018 के दौरान इन आठ शहरों में हर वर्ष प्रदूषण की वजह से 13 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई होगी।

पीएम2.5 प्रदूषक हैं जान के बड़े दुश्मन 

वोहरा कहते हैं, कई अध्ययनों में साबित हो चुका है कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5), अमोनिया व प्रतिक्रियाशील वाष्पशील कार्बनिक यौगिक कई बीमारियों और असामयिक मौत का कारण हैं।

निगरानी नेटवर्क की नीतियों का नहीं हुआ इस्तेमाल 

शोधकर्ताओं ने पाया कि भारत में वायु प्रदूषण पर निगरानी व्यापक नेटवर्क है, लेकिन इसका नीतिगत तौर पर उपयुक्त इस्तेमाल नहीं हो रहा है।  

वर्ष 2100 के मेगा शहरों के भविष्य पर प्रदूषण का साया 

अध्ययन के प्रमुख लेखक और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोध अध्येता करण वोहरा ने बताया कि अध्ययन का मकसद असल में उष्ण-कटिबंधीय क्षेत्र में तेजी से बढ़ते ऐसे शहरों का मूल्यांकन करना था, जो वर्ष 2100 तक मेगासिटी में बदल सकते हैं। दुनिया के इन शहरों में आठ भारत के हैं। अब तक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बायोमास (कृषि अपशिष्ट) को खुले में जलाना सबसे बड़ा कारण रहा है।

लेकिन, विश्लेषण से पता चलता है कि इन शहरों में वायु प्रदूषण के एक नए भयानक युग की शुरुआत हो रही है।  इन शहरों में 46 में से 40 शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और 33 शहरों में पीएम-2.5 के लिहाज से इन शहरों की आबादी के लिए वायु प्रदूषण का गंभीर जोखिम 1.5 से 4 गुना बढ़ गया है। इसके पीछे असल में तेजी से उभरते उद्योग, सड़कें, यातायात, शहरी अपशिष्ट, और प्रदूषक ईंधन लकड़ी का व्यापक उपयोग जिम्मेदार है।

शहर की हवा सबसे ज्यादा खतरनाक

देश में पीएम 2.5 की वजह से 2005 में 1,23900 मौतें हुई होंगी, जो 2018 में बढ़कर दो लाख 23 हजार दो सौ तक पहुंच गई होंगी। अध्ययन में वायु गुणवत्ता में तीव्र गिरावट और वायु प्रदूषकों के शहरी जोखिम में वृद्धि को दर्शाया गया है, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओटू) में 14% तक और सूक्ष्म कणों (पीएम-2.5) में 8% की खतरनाक वार्षिक वृद्धि हुई है। इसके अलावा अमोनिया के स्तर में 12 फीसदी और प्रतिक्रिया करने वाले वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों में 11%फीसदी वृद्धि हुई है।



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