आजादी का अमृत महोत्सव : गांधी के ‘दक्षिणी सेनापति’ राजाजी के घर में.. जब नेक काम के लिए मिली ‘नल्लन चक्रवर्ती’ की उपाधि


सार

ज्योतिषियों ने कहा था- ये बालक राजा बनेगा, लेकिन एक दिन निर्वासित भी होगा। लोग इसका सम्मान करेंगे, लेकिन एक दिन वही लोग इसे ठुकरा देंगे। सम्राट के सिंहासन पर विराजमान होगा, लेकिन बाद में निर्वासित होकर आश्रम और झोपड़ों में रहेगा। आजादी के अमृत महोत्सव के समय हम पीछे मुड़कर देखें कि देश को बनाने में जिन्होंने अपना जीवन दे दिया उनकी विरासत को हमने कितना सहेजा है? उनकी स्मृतियों से हम कितनी शक्ति लेते हैं? इस अभियान के तहत अमर उजाला ने अपने प्रतिनिधियों को देशभर में भेजा। इस कड़ी में पढ़िए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की जन्मस्थली थोरापल्ली से रिपोर्ट…

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तमिलनाडु के गांवों में दो चीजें आपको इफरात में मिलेंगी। एक धान के लहलहाते खेत और दूसरे केले व नारियल के ऊंचे लहराते पेड़। चावल यहां की आत्मा है। चावल और उससे बने दोसा, उत्तपम, इडली जैसे सारी दुनिया में लोकप्रिय व्यंजनों की जन्मभूमि भी यही है। ये सारे स्वादिष्ट व्यंजन आपको हरे ताजे केले के पत्ते पर नारियल की चटनी और सांबर के साथ परोसे मिलेंगे। तमिलनाडु के पांच सितारा होटल से लेकर सड़क किनारे के रेस्तरां तक, हर जगह।

भारत के अंतिम गवर्नर जनरल और ‘गांधी के दक्षिणी सेनापति’ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी यानी सीआर के जन्मस्थान पर पहुंचने से पहले हमें इन्हीं धान के खेतों और नारियल के झूमते पेड़ों के बीच से गुजरना होता है। चेन्नई से बेंगलुरु की तरफ आते हुए मौसम सुहाना है और सड़क के दोनों तरफ खूब हरी पहाड़ियां हैं। मोबाइल का गूगल मैप 19वीं सदी के अंतिम दशकों में जन्मे राजाजी की जन्मभूमि तक ऐसे ले जा रहा है जैसे बगल में कोई लोकल गाइड बैठा हो। बेंगलुरु से 50 किलोमीटर हाईवे के किनारे दायीं तरफ एक बड़े से सिंहद्वार पर तमिल में कुछ लिखा है। 

मैं तमिल ड्राइवर भास्करन को गाड़ी रोकने के लिए कहता हूं। सर इस गेट पर तमिल में राजाजी का नाम लिखा है। यानी हम सही रास्ते पर हैं। लेकिन गूगल का नक्शा बताता है कि राजाजी के गांव जाने के लिए आपको हरियाली व खेतों के बीच से निकल रही चौड़ी सड़क पर कोई 10 किलोमीटर और यात्रा करनी होगी। अगले दस मिनट में हम राजाजी के गांव थोरापल्ली पहुंच गए। अरे, यहां तो एक और सिंहद्वार है जिस पर तमिल में लिखा है-‘ये राजाजी के घर का प्रवेश द्वार है।’

अब हम राजाजी के गांव थोरापल्ली की साफ सुथरी गलियों में हैं। लेकिन चौंकिए मत, गलियों के टाइल्स से इंटरलॉक किए रास्ते इतने चौड़े हैं कि छोटे ट्रक और ट्रैक्टर आराम से चले जाएं। इन गलियों के दोनों तरफ कुछ दक्षिण शैली में बने पुराने खपरैल के घर हैं और कुछ पक्के रिहायशी मकान। इनकी दीवारों पर राजनीतिक दलों के पुराने चुनावी सिंबलों व नारों की पेटिंग्स अब तक बनी हैं। खपरैल के घरों में चल रहे बड़े एलईडी टीवी और पक्के घरों के आगे खड़े ट्रैक्टर, कार यहां के किसानों की संपन्नता की कहानी कह रहे हैं। 

गली के किनारे कहीं-कहीं दक्षिण शैली में नए बने वैष्णव मंदिर भी दिख जाते हैं। थोड़ा सा आगे बढ़िए तो लाल खपरैल के बने एक घर के आगे बोर्ड लगा है, जिस पर तमिल में लिखा है- मुद्रिग्यार राजाजी पिरणथाइल्लम यानी मूर्धन्य पंडित राजाजी का जन्मस्थान। घर की दलान के बाहर लोहे की मजबूत ग्रिल लगी है। पूरे घर का मूल रूप बरकरार रखते हुए तमिलनाडु सरकार ने 80′ के दशक में ही राजाजी स्मारक बना कर एक केयरटेकर नियुक्त कर दिया था। खादी की सफेद कमीज पहने एक सज्जन दरवाजे पर स्वागत के लिए पहले से ही खड़े हैं। ये जरूर केयरटेकर बालूजी होंगे। 

दरअसल चेन्नई में रह रहे राजाजी के परपोते सीआर केशवन ने उन्हें हमारे आने की सूचना पहले से दे दी थी। लेकिन दिक्कत ये है कि इन्हें भी तमिल के सिवा कोई और भाषा नहीं आती। मेरी बेबसी देखकर वो सामने वाले घर से किसी सज्जन को बुलाते हैं, जो थोड़ी-थोड़ी अंग्रेजी समझ सकते हैं। वे सज्जन मुझे घर दिखाते है। छोटे से दरवाजे से अंदर घुसे तो पूरे घर का फर्श गोबर से लीपा हुआ है। 19वीं सदी के तमिलनाडु के घरों में दरवाजे बहुत छोटे बनते थे। शायद उस वक्त तमिलों की औसत लंबाई कम रही होगी। घर का आकार बहुत छोटा है, इसलिए ये एक गरीब परिवार रहा होगा। 

घर के दूसरे छोटे दरवाजे को पार करते ही एक बड़ा-सा कमरा है। बीच में राजाजी की प्रतिमा लगी है। कमरा राजाजी के जीवन से जुड़ी तस्वीरों की गैलरी में तब्दील कर दिया गया है। कमरे के एक कोने में गोबर से लिपी एक साफ सुथरी कोठरी है, जहां राजाजी का जन्म हुआ था। खाली कोठरी में केवल राजाजी की माला चढ़ी तस्वीर है। फोटो गैलरी में लगी तमाम तस्वीरें राजाजी की जिंदगी की रोमांचक कहानियां खामोशी से खुद-ब-खुद बयां करती चली जाती हैं। राजाजी का जन्म ब्रिटिश हुकूमत में 10 दिसंबर 1878 को तमिलनाडु के सेलम जिले के इसी गांव में हुआ था। 

उनके पिता चक्रवर्ती वेंकटरैया विक्टोरिया राज में मुंसिफ थे।  राजाजी से जुड़े स्वतंत्र फाउंडेशन के अध्यक्ष एस सुब्रह्मन्यम ने हमें उनके नाम के आगे चक्रवर्ती लिखे जाने की कहानी सुनाई। वेंकटरैया के पूर्वज दयालु ब्राह्मण थे। उन्होंने एक लावरिस दलित शव का अंतिम संस्कार किया तो रूढ़िवादी ब्राह्मण समाज उनसे नाराज हो गया। पर इस नेक काम के लिए उन्हें इलाके में ‘नल्लन (अच्छे और उदार) चक्रवर्ती’ की उपाधि मिली। इसी वजह से राजाजी भी अपने नाम के आगे चक्रवर्ती लिखने लगे।

राजाजी का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने उनकी कुंडली देख कर जो कुछ कहा, वो मुंसिफ साहब और उनकी पत्नी सिंगारम्मा को बहुत अजीब लगा। ज्योतिषियों ने कहा, ये बालक राजा बनेगा, लेकिन एक दिन निर्वासित भी होगा। प्रसिद्ध विद्वान, बुद्धिमान होगा। लोग इसका सम्मान करेंगे, लेकिन एक दिन वही लोग इसे ठुकरा देंगे। सम्राट के सिंहासन पर विराजमान होगा, लेकिन फिर जल्द ही निर्वासित होकर गरीबों की तरह आश्रम और झोपड़ों में रहेगा। मां अपने बेटे को राजन के नाम से पुकारने लगीं। 

इन विरोधाभासी भविष्यवाणी पर तब शायद ही किसी को यकीन हुआ हो, लेकिन आगे चलकर उनकी जिंदगी ठीक इसी राह पर निकलती चली गई। वे पढ़ने बेंगलुरु और फिर चेन्नई चले गए। फिर वे सेलम में ही रह कर अच्छी वकालत करने लगे। उनका अपने गांव आना-जाना धीरे-धीरे कम होता गया। उनका अधिकांश वक्त बेंगलुरु व चेन्नई में बीता। लेकिन उन्होंने कहीं अपना कोई निजी बंगला नहीं खरीदा। उनके पास अपनी कोई कार तक नहीं थी। राजाजी के समय का तो अब गांव में कोई नहीं बचा। 

उसके बाद की भी एक पीढ़ी खत्म हो चुकी है, लेकिन गांव में सबको ये जरूर पता है कि उनके गांव में राजाजी नाम का एक लड़का पैदा हुआ था, जो गांधीजी का पक्का दोस्त था। वह देश का आखिरी गवर्नर जनरल, गृहमंत्री और उसके बाद वो उनके राज्य का सीएम बना। बालू ने बताया, तमाम राज्यों के स्कूलों के बच्चे उनका घर देखने आते हैं। इतने में जिले के पीआरओ का फोन आ गया कि हमने स्मारक देखने के लिए सरकार से अनुमति क्यों नहीं ली? तो हमें विनम्रता से उन्हें याद दिलाना पड़ा कि देश के महापुरुषों के स्मारक देखने के लिए सरकारी इजाजत की जरूरत नहीं होती।

राजन की पढ़ाई बंगलौर में हुई। 1897 में जब विवेकानंद मद्रास के आइस हाउस आए तो राजन 18 साल के युवा थे। विवेकानंद ने छात्रों से पूछा कि कृष्ण के चित्र को नीले रंग में क्यों रंगा जाता है? तो राजन ने जवाब दिया-क्योंकि अनंत आकाश नीला है। अनंत समुंदर का रंग नीला है। नीला रंग अनंत का बोध कराता है, इसलिए कृष्ण की नीले रंग में कल्पना की गई है। विवेकानंद इस जवाब से बहुत प्रसन्न हुए। इसी साल राजाजी की शादी मनगा से हुई। उनके तीन बेटे और दो बेटियां हुईं। केवल 26 साल की उम्र में पत्नी चल बसीं। इन्हीं की बेटी लक्ष्मी का गांधीजी के बेटे देवदास गांधी से प्रेम विवाह हुआ।

नेहरू ने पत्रकारों से कहा था- राजाजी ‘खुद एक पर्वत शिखर पर खड़े हैं। न कोई उसे समझता है, न वह किसी को समझते हैं। ऐसे में उन्हें क्या तव्वजो देना? भारत के संबंध में उनकी सभी नीतियां बकवास हैं- उनका अर्थशास्त्र किसी काम का नहीं…

बिगड़ते गए आत्मीय नेहरू से रिश्ते
एक जमाने से गांधी के सबसे करीब तीन लोगों में राजाजी, नेहरू व सरदार पटेल हुआ करते थे। लेकिन आजादी के बाद तीनों में परस्पर कई वैचाारिक मतभेद पैदा हो गए थे। सरदार पटेल तो जल्दी चले गए, लेकिन एक वक्त ये भी आया कि राजाजी ने नेहरू के खिलाफ बाकायदा मोर्चाबंदी कर दी। राजाजी ने बेंगलुरु की सार्वजनिक सभा में नेहरू की आर्थिक और विदेश नीतियों को महापाप तक कह दिया और मद्रास में एक नए राजनीतिक दल, ‘स्वतंत्र पार्टी’ के गठन का एलान कर दिया। उन्होंने एक पत्रिका निकाली ‘स्वराज्य’। 

दिसंबर 1961 में नेहरू ने पत्रकारों से कहा कि राजाजी खुद एक पर्वत शिखर पर खड़े हैं। न कोई उन्हें समझता है, न वह किसी को समझते हैं। ऐसे में उन्हें क्या तवज्जो देना? भारत के संबंध में उनकी सभी नीतियां बकवास हैं। उनका अर्थशास्त्र किसी काम का नहीं, भावना गलत है और स्वभाव और भी ज्यादा बिगड़ा हुआ। राजाजी की स्वतंत्र पार्टी के बारे में नेहरू का कहना था, ये सड़े हुए विचारों का मिश्रण है। राजाजी शुरू से नेहरू के चीन प्रेम के खिलाफ थे। आजादी के बाद से ही गृहमंत्री रहते वे नेहरू को समझाते थे कि चीन की नीति विस्तारवाद की है। वह किसी का दोस्त नहीं हो सकता। 

लेकिन ये बात नेहरू नहीं समझे और 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया और लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया। इस सदमे से नेहरू उबर नहीं पाए। दो साल बाद उनकी मृत्यु पर राजाजी ने ‘स्वराज्य’ में लिखा, नेहरू मुझसे ग्यारह साल छोटे थे लेकिन देश के लिए ग्यारह गुना अधिक महत्वपूर्ण, राष्ट्र के ग्यारह सौ गुना अधिक प्रिय। नेहरू अचानक हमारे बीच से चले गए हैं और मैं दिल्ली से दुखद समाचार सुनने के लिए जीवित हूं और सदमे को सहन कर रहा हूं…। मुझे मेरी लड़ाई में पहले से कमजोर छोड़ कर, लेकिन अलग होकर लड़ते हुए, एक प्रिय मित्र चला गया, हम सब में सबसे सभ्य व्यक्ति। हम में से बहुत से लोग अभी तक सभ्य नहीं हैं।

जब वे गवर्नर जनरल बने तो एक अखबार में कार्टून छपा जिसमें उनके ताज पर पीएम नेहरू और डिप्टी पीएम पटेल जैसे चमकदार सितारे जड़े थे। नीचे सरदार पटेल की टिप्पणी लिखी थी- ”कुछ लोग समझते हैं गवर्नर जनरल का पद बहुत ईष्यापूर्ण है।”

गांधीजी के बने समधी
गांधीजी के पुत्र देवदास राजाजी की बेटी लक्ष्मी के प्रेम में पड़ गए थे। एक गुजराती वैश्य और दूसरी मद्रासी ब्राह्मण। गांधीजी और राजाजी दोनों चकित थे। उन्हें लगा कि अभी वे दोनों शादी के लिए परिपक्व नहीं हुए हैं। जब राजाजी कार्यसमिति में हिस्सा लेने दिल्ली आए, तो गांधी से इस बारे में उनकी लंबी बात हुई फिर तय हुआ कि दोनों को पांच साल अलग रखकर इनके प्रेम की स्थिरता की परीक्षा ली जाए।

अलग होने से पहले युगल एकांत में बात करना चाहते थे। कस्तूरबा ने मीराबेन को बरामदे में इन दोनों प्रेमियों की रखवाली पर लगा दिया था। फिर लक्ष्मी मद्रास चली गई। लेकिन प्रेम पांच साल इंतजार कहां करता है। बापू को दो साल बाद ही सहमति देनी पड़ी। 1933 में देवदास व लक्ष्मी वैवाहिक सूत्र में बंध गए।

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तमिलनाडु के गांवों में दो चीजें आपको इफरात में मिलेंगी। एक धान के लहलहाते खेत और दूसरे केले व नारियल के ऊंचे लहराते पेड़। चावल यहां की आत्मा है। चावल और उससे बने दोसा, उत्तपम, इडली जैसे सारी दुनिया में लोकप्रिय व्यंजनों की जन्मभूमि भी यही है। ये सारे स्वादिष्ट व्यंजन आपको हरे ताजे केले के पत्ते पर नारियल की चटनी और सांबर के साथ परोसे मिलेंगे। तमिलनाडु के पांच सितारा होटल से लेकर सड़क किनारे के रेस्तरां तक, हर जगह।

भारत के अंतिम गवर्नर जनरल और ‘गांधी के दक्षिणी सेनापति’ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी यानी सीआर के जन्मस्थान पर पहुंचने से पहले हमें इन्हीं धान के खेतों और नारियल के झूमते पेड़ों के बीच से गुजरना होता है। चेन्नई से बेंगलुरु की तरफ आते हुए मौसम सुहाना है और सड़क के दोनों तरफ खूब हरी पहाड़ियां हैं। मोबाइल का गूगल मैप 19वीं सदी के अंतिम दशकों में जन्मे राजाजी की जन्मभूमि तक ऐसे ले जा रहा है जैसे बगल में कोई लोकल गाइड बैठा हो। बेंगलुरु से 50 किलोमीटर हाईवे के किनारे दायीं तरफ एक बड़े से सिंहद्वार पर तमिल में कुछ लिखा है। 

मैं तमिल ड्राइवर भास्करन को गाड़ी रोकने के लिए कहता हूं। सर इस गेट पर तमिल में राजाजी का नाम लिखा है। यानी हम सही रास्ते पर हैं। लेकिन गूगल का नक्शा बताता है कि राजाजी के गांव जाने के लिए आपको हरियाली व खेतों के बीच से निकल रही चौड़ी सड़क पर कोई 10 किलोमीटर और यात्रा करनी होगी। अगले दस मिनट में हम राजाजी के गांव थोरापल्ली पहुंच गए। अरे, यहां तो एक और सिंहद्वार है जिस पर तमिल में लिखा है-‘ये राजाजी के घर का प्रवेश द्वार है।’

अब हम राजाजी के गांव थोरापल्ली की साफ सुथरी गलियों में हैं। लेकिन चौंकिए मत, गलियों के टाइल्स से इंटरलॉक किए रास्ते इतने चौड़े हैं कि छोटे ट्रक और ट्रैक्टर आराम से चले जाएं। इन गलियों के दोनों तरफ कुछ दक्षिण शैली में बने पुराने खपरैल के घर हैं और कुछ पक्के रिहायशी मकान। इनकी दीवारों पर राजनीतिक दलों के पुराने चुनावी सिंबलों व नारों की पेटिंग्स अब तक बनी हैं। खपरैल के घरों में चल रहे बड़े एलईडी टीवी और पक्के घरों के आगे खड़े ट्रैक्टर, कार यहां के किसानों की संपन्नता की कहानी कह रहे हैं। 

गली के किनारे कहीं-कहीं दक्षिण शैली में नए बने वैष्णव मंदिर भी दिख जाते हैं। थोड़ा सा आगे बढ़िए तो लाल खपरैल के बने एक घर के आगे बोर्ड लगा है, जिस पर तमिल में लिखा है- मुद्रिग्यार राजाजी पिरणथाइल्लम यानी मूर्धन्य पंडित राजाजी का जन्मस्थान। घर की दलान के बाहर लोहे की मजबूत ग्रिल लगी है। पूरे घर का मूल रूप बरकरार रखते हुए तमिलनाडु सरकार ने 80′ के दशक में ही राजाजी स्मारक बना कर एक केयरटेकर नियुक्त कर दिया था। खादी की सफेद कमीज पहने एक सज्जन दरवाजे पर स्वागत के लिए पहले से ही खड़े हैं। ये जरूर केयरटेकर बालूजी होंगे। 

Thorapalli Agraharam



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