यूपी चुनाव: जिस सीट से सीएम योगी ने चुनाव लड़ा, वहां 45 साल में पहली बार बना ये रिकॉर्ड, जानिए क्या हैं इसके सियासी मायने?


सार

उत्तर प्रदेश में सातों चरण का मतदान खत्म हो चुका है। खास बात ये है कि करीब 18 साल बाद कोई मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव के मैदान में था। इससे पहले 2003 में मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए चुनाव लड़ा था। 

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर शहरी सीट से चुनाव लड़ा है। यहां 53.30% लोगों ने इस बार वोट डाला। 45 साल के इतिहास में ये पहली बार है जब इतनी ज्यादा वोटिंग हुई है। पिछली बार यानी 2017 के मुकाबले इस बार 2.32% की बढ़ोतरी दर्ज हुई। 2017 में यहां के 50.98% लोगों ने वोट डाला था। 

मुख्यमंत्री योगी की सीट पर मतदान प्रतिशत बढ़ने से सियासी गलियारे में चर्चा शुरू हो गई है। लोग वोटिंग बढ़ने के राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं। ऐसे में हम आपको आंकड़ों के जरिए बताएंगे कि गोरखपुर की इस सीट पर 1977 से अब तक क्या-क्या हुआ? मतदान घटने और बढ़ने से किसे क्या फायदा मिला? 
                                                     

वर्ष   प्रत्याशी पार्टी वोटिंग
1977 अवधेश कुमार श्रीवास्तव जनता पार्टी 43.9%
1980 सुनील शास्त्री कांग्रेस (आई) 42.1%
1985 सुनील शास्त्री कांग्रेस 37.5%
1989 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 49.5%
1991 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 43.4%
1993 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 47.7%
1996 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 38.0%
2002 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल हिंदू महासभा 33.1%
2007 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल भाजपा 28.6 %
2012 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल भाजपा 46.2 %
2017 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल भाजपा 50.98%

गोरखपुर शहरी सीट पर 1989 से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। 2002 में टिकट बंटवारे को लेकर योगी आदित्यनाथ और पार्टी के नेताओं के बीच अनबन हो गई थी। तब योगी आदित्यनाथ ने इस सीट से अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के टिकट पर डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को चुनाव लड़ाया था। अग्रवाल जीते भी थे। हालांकि, 2007 से डॉ. राधा मोहन भाजपा के टिकट पर लगातार तीन बार चुनाव जीते। 

आंकड़े बता रहे… वोटिंग बढ़ी तो जीत का मार्जिन बढ़ गया
अगर पिछले 45 सालों के आंकड़ों का एनालिसिस करें तो जब-जब वोटिंग बढ़ी है, इसका फायदा भाजपा को ही मिला है। मतलब वोटिंग अधिक होने पर भाजपा की जीत का मार्जिन भी बढ़ जाता है। 

2007 : सबसे कम 28.6% वोट पड़े थे, तब भाजपा भाजपा के डॉ. राधा मोहन अग्रवाल ने 22,392 मतों से जीत हासिल की थी। डॉ. अग्रवाल को 49,715 मत मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे समाजवादी पार्टी के भानु प्रकाश मिश्र को 27,323 वोट मिले थे। 

2012 : वोटिंग 28.6% से बढ़कर 46.2% हो गई। तब भाजपा की जीत के मार्जिन में भी करीब चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई। तब डॉ. राधा मोहन अग्रवाल 47,454 मतों के अंतर से जीते थे। डॉ. अग्रवाल को 81,148 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे समाजवादी पार्टी की राज कुमारी देवी ने 33,694 मत हासिल किए थे। 

2017 : चुनाव के दौरान मतदान में करीब चार प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। तब 50.98% लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। तब भाजपा के डॉ. राधा मोहन अग्रवाल ने 60,730 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। डॉ. अग्रवाल को 122,221 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के राना राहुल सिंह दूसरे नंबर पर थे। राहुल को 61,491 वोट मिले थे। 

वोट बढ़ने या घटने से किसे फायदा या घाटा? 
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय सिंह बताते हैं कि मतदान बढ़ने के दो मायने होते हैं। पहला ये कि सरकार या प्रत्याशी के खिलाफ एंटीकंबेंसी यानी नाराजगी और दूसरा प्रत्याशी या पार्टी की लहर हो। गोरखपुर में मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने की वजह से दूसरा कारण ज्यादा हो सकता है। वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद श्रीवास्तव भी कहते हैं, ‘गोरखपुर की पहचान अब योगी आदित्यनाथ से ज्यादा जुड़ गई है। ऐसे में मतदान प्रतिशत का बढ़ना योगी के लिए अच्छा संकेत हो सकता है।’

विस्तार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर शहरी सीट से चुनाव लड़ा है। यहां 53.30% लोगों ने इस बार वोट डाला। 45 साल के इतिहास में ये पहली बार है जब इतनी ज्यादा वोटिंग हुई है। पिछली बार यानी 2017 के मुकाबले इस बार 2.32% की बढ़ोतरी दर्ज हुई। 2017 में यहां के 50.98% लोगों ने वोट डाला था। 

मुख्यमंत्री योगी की सीट पर मतदान प्रतिशत बढ़ने से सियासी गलियारे में चर्चा शुरू हो गई है। लोग वोटिंग बढ़ने के राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं। ऐसे में हम आपको आंकड़ों के जरिए बताएंगे कि गोरखपुर की इस सीट पर 1977 से अब तक क्या-क्या हुआ? मतदान घटने और बढ़ने से किसे क्या फायदा मिला? 

                                                     

वर्ष   प्रत्याशी पार्टी वोटिंग
1977 अवधेश कुमार श्रीवास्तव जनता पार्टी 43.9%
1980 सुनील शास्त्री कांग्रेस (आई) 42.1%
1985 सुनील शास्त्री कांग्रेस 37.5%
1989 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 49.5%
1991 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 43.4%
1993 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 47.7%
1996 शिव प्रताप शुक्ला भाजपा 38.0%
2002 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल हिंदू महासभा 33.1%
2007 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल भाजपा 28.6 %
2012 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल भाजपा 46.2 %
2017 डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल भाजपा 50.98%



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