चिंता की बात : ग्लोबल वार्मिंग से धधकेगा भारत, छह दशक में पांच डिग्री तक गर्म हो जाएंगे दिल्ली-मुंबई


सार

तापमान में तेज वृद्धि का मतलब है कि भारत को अधिक लंबे समय तक अभूतपूर्व लू और गर्मी का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह से कृषि और वन्यजीवों से लेकर जनजीवन तक को अपूरणीय क्षति होगी। ग्रीनपीस इंडिया के अभियान प्रबंधक अविनाश चंचल का कहना है कि लू सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए घातक है। तेज गर्म हवाएं पारिस्थितिक तंत्र को भी खतरे में डालती हैं।

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इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट के मुताबिक अगर समय रहते कार्बन-डाई-ऑक्साइड व ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह 2050 तक बढ़कर दोगुना हो जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, जिससे समुद्रों का स्तर बढ़ने से एक तरफ तटवर्ती शहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा, दूसरी तरफ मैदानी शहरों में गर्म हवाएं शोले बरसाएंगी।

ग्रीनपीस इंडिया ने देश में लू चलने और तापमान बढ़ने का अनुमान लगाया है, जिससे दिल्ली-मुंबई का औसत वार्षिक तापमान आगामी छह दशक में पांच डिग्री तक बढ़ जाएगा। 1995 से 2014 की अवधि में दिल्ली का जून के अधिकतम तापमान का औसत 41.93 डिग्री रहा है, जो 2080 से 99 की अवधि में बढ़कर 45.97 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा जो 48.19 डिग्री तक जा सकता है। मुंबई का औसत वार्षिक तापमान 1995-2014 की अवधि के 39.17 डिग्री की तुलना में पांच डिग्री बढ़कर 43.35 डिग्री हो जाएगा।

मैदानी शहरों में बढ़ेगी मुसीबत
तटवर्ती शहरों की तुलना में मैदानी शहरों में उच्च तापमान के कारण लू का खतरा ज्यादा होता है। दिल्ली, लखनऊ, पटना, जयपुर और कोलकाता जैसे शहर आने वाले दिनों में इससे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। इन शहरों में रहने वाला कमजोर वर्ग इस संकट के सबसे भयावह पक्ष का सामना करेगा। शहरी गरीब, बाहरी श्रमिकों, महिलाएं, बच्चे और वरिष्ठ नागरिकों के लिए जोखिम ज्यादा होगा।

जनजीवन से जंगल तक सब पर होगा असर
तापमान में तेज वृद्धि का मतलब है कि भारत को अधिक लंबे समय तक अभूतपूर्व लू और गर्मी का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह से कृषि और वन्यजीवों से लेकर जनजीवन तक को अपूरणीय क्षति होगी। ग्रीनपीस इंडिया के अभियान प्रबंधक अविनाश चंचल का कहना है कि लू सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए घातक है। तेज गर्म हवाएं पारिस्थितिक तंत्र को भी खतरे में डालती हैं।

सही दिशा मालूम, पर आगे बढ़ने से कतरा रही दुनिया
अविनाश चंचल कहते हैं कि यह बेदह अफसोस की बात है कि इस तरह के चरम मौसम की घटनाओं के सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े होने के पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत होने के बावजूद पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन को रोकने अपेक्षित कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे खतरे में वृद्धि हो रही है।

विस्तार

इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट के मुताबिक अगर समय रहते कार्बन-डाई-ऑक्साइड व ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह 2050 तक बढ़कर दोगुना हो जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, जिससे समुद्रों का स्तर बढ़ने से एक तरफ तटवर्ती शहरों के डूबने का खतरा बढ़ेगा, दूसरी तरफ मैदानी शहरों में गर्म हवाएं शोले बरसाएंगी।

ग्रीनपीस इंडिया ने देश में लू चलने और तापमान बढ़ने का अनुमान लगाया है, जिससे दिल्ली-मुंबई का औसत वार्षिक तापमान आगामी छह दशक में पांच डिग्री तक बढ़ जाएगा। 1995 से 2014 की अवधि में दिल्ली का जून के अधिकतम तापमान का औसत 41.93 डिग्री रहा है, जो 2080 से 99 की अवधि में बढ़कर 45.97 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा जो 48.19 डिग्री तक जा सकता है। मुंबई का औसत वार्षिक तापमान 1995-2014 की अवधि के 39.17 डिग्री की तुलना में पांच डिग्री बढ़कर 43.35 डिग्री हो जाएगा।

मैदानी शहरों में बढ़ेगी मुसीबत

तटवर्ती शहरों की तुलना में मैदानी शहरों में उच्च तापमान के कारण लू का खतरा ज्यादा होता है। दिल्ली, लखनऊ, पटना, जयपुर और कोलकाता जैसे शहर आने वाले दिनों में इससे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। इन शहरों में रहने वाला कमजोर वर्ग इस संकट के सबसे भयावह पक्ष का सामना करेगा। शहरी गरीब, बाहरी श्रमिकों, महिलाएं, बच्चे और वरिष्ठ नागरिकों के लिए जोखिम ज्यादा होगा।

जनजीवन से जंगल तक सब पर होगा असर

तापमान में तेज वृद्धि का मतलब है कि भारत को अधिक लंबे समय तक अभूतपूर्व लू और गर्मी का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह से कृषि और वन्यजीवों से लेकर जनजीवन तक को अपूरणीय क्षति होगी। ग्रीनपीस इंडिया के अभियान प्रबंधक अविनाश चंचल का कहना है कि लू सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए घातक है। तेज गर्म हवाएं पारिस्थितिक तंत्र को भी खतरे में डालती हैं।

सही दिशा मालूम, पर आगे बढ़ने से कतरा रही दुनिया

अविनाश चंचल कहते हैं कि यह बेदह अफसोस की बात है कि इस तरह के चरम मौसम की घटनाओं के सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े होने के पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत होने के बावजूद पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन को रोकने अपेक्षित कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे खतरे में वृद्धि हो रही है।



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