भारती के कदम बढ़ने लगे और पाकिस्तान पीछे हटने लगा। जंग में अपनी सेना की इतने अधिक नुकसान को देखकर तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्लाह ख़ान नियाज़ी ने अपने कदम पीछे हटाने का फ़ैसला लिया और पाकिस्तान सरेंडर करने के लिए तैयार हो गया। नियाजी ने जगजीत सिंह को एक वायरलेस सन्देश के जरिए समपर्ण की जानकारी दी। भारतीय सेना भी उनकी सरहद छोड़ने के लिए तैयार हो गई।
फिर क्या था समझौते के कागज भिजवाए गए और उसमें लिखा गया कि कोई पाकिस्तानी अफ़सर या सैनिक उनके सामने आत्म-समर्पण करेगा, तो वे जेनेवा समझौते के अनुसार उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेंगें। जनरल नियाजी ने सरेंडर के वक्त जगजीत सिंह ने अपनी पत्नी भगवंत कौर को भी अपने साथ ले जाने का निर्णय लिया। वे दुनिया को बताना चाहते थे कि युद्ध के दौरान कितनी ही महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ। इसी कारण महिलाओं को इस सरेंडर का साक्षी बनाने के लिए अपनी पत्नी को अपने साथ ले गए।
जनरल नियाजी ने अपने 93,000 सैनिकों के साथ सरेंडर किया और 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का उदय हुआ। आत्मसमर्पण के लिए डॉक्यूमेंट्स की 6 प्रतियां थीं और उन्हें मोटे सफ़ेद कागज़ पर टाइप किया गया था। सरेंडर के कागज पर नियाजी ने केवल एएके निया लिखा जिस पर जगजीत सिंह ने उनसे पूरा हस्ताक्षर करने को कहा। पूरा हस्ताक्षर करते हुए नियाजी के आंखों में आंसू आ गए और बांग्लादेश आजाद हो गया।