Jagjeet Singh Aurora: जानिए उस जनरल के बार में जिसकी रणनीति से पाकिस्तान के 93,000 सौैनिकों ने मान ली थी हार


वर्ष 1971 में जब पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग किया गया तब पूरे विश्व ने भारत का लोहा माना। बांग्लादेश की उस आजादी में भारतीय सेना का अहम योगदान रहा। अगर भारतीय सेना लोगों के साथ न खड़ी होती तो बांग्लादेश को आजादी मिलना लगभग असंभव था। बांग्लादेश आज भी उन भारतीय सैनिंकों को सम्मान से याद करता है जिनकी हिम्मत और दृढ़-संकल्प ने उन्हें पाकिस्तान से आजादी दिलाई। सेना के उन्हीं महान नामों में से एक है लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा (Jagjeet Singh Aurora) का नाम। उनके विषय में एक बार मानेकशॉ ने कहा था कि असली काम जगजीत सिंह ने ही किया था।

पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश को आजाद कराने के ऑपरेशन का नेतृत्व जगजीत सिंह ने किया। ऑपरेशन के शुरू होते ही भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया और भारत जल्द से जल्द बांग्लादेश को आजाद कराना चाहता था। लेकिन यह जंग इतनी भी आसान नहीं थी। भारतीय सेना को आदेश दिए गए थे कि किसी भई कीमत पर पाकिस्तान के साथ जंग की नौबत नहीं आनी चाहिए। लेकिन इसके उलट पाकिस्तान कहां मानने वाला था। उसने आक्रमण शुरू कर दिया। लेकिन भारत के पास जगजीत सिंह जैसे जाबांज थे जिन्होंने नई रणनीति बनाई और पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े।

भारती के कदम बढ़ने लगे और पाकिस्तान पीछे हटने लगा। जंग में अपनी सेना की इतने अधिक नुकसान को देखकर तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्लाह ख़ान नियाज़ी ने अपने कदम पीछे हटाने का फ़ैसला लिया और पाकिस्तान सरेंडर करने के लिए तैयार हो गया। नियाजी ने जगजीत सिंह को एक वायरलेस सन्देश के जरिए समपर्ण की जानकारी दी। भारतीय सेना भी उनकी सरहद छोड़ने के लिए तैयार हो गई।

फिर क्या था समझौते के कागज भिजवाए गए और उसमें लिखा गया कि कोई पाकिस्तानी अफ़सर या सैनिक उनके सामने आत्म-समर्पण करेगा, तो वे जेनेवा समझौते के अनुसार उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेंगें। जनरल नियाजी ने सरेंडर के वक्त जगजीत सिंह ने अपनी पत्नी भगवंत कौर को भी अपने साथ ले जाने का निर्णय लिया। वे दुनिया को बताना चाहते थे कि युद्ध के दौरान कितनी ही महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ। इसी कारण महिलाओं को इस सरेंडर का साक्षी बनाने के लिए अपनी पत्नी को अपने साथ ले गए।

जनरल नियाजी ने अपने 93,000 सैनिकों के साथ सरेंडर किया और 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का उदय हुआ। आत्मसमर्पण के लिए डॉक्यूमेंट्स की 6 प्रतियां थीं और उन्हें मोटे सफ़ेद कागज़ पर टाइप किया गया था। सरेंडर के कागज पर नियाजी ने केवल एएके निया लिखा जिस पर जगजीत सिंह ने उनसे पूरा हस्ताक्षर करने को कहा। पूरा हस्ताक्षर करते हुए नियाजी के आंखों में आंसू आ गए और बांग्लादेश आजाद हो गया।

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