कारगिल विजय और हौसलों की दास्तानें: जब अमेरिकी GPS की कमी को लखनऊ के लड़के ने गोरखा खुखरी से पूरा किया


ख़बर सुनें

1997 में रिलीज हुई जेपी दत्ता की बॉर्डर का एक सीन याद करिए। जब दुश्मन की पूरी टैंक रेजिमेंट के सामने महज़ एक सौ दस जवानों को खड़ा देख मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी अपने जवानों को युद्धभूमि छोड़कर वापस चले जाने का मौका देते हैं तो उन्हीं एक सौ दस जवानों के बीच से एक आवाज़ आती है-
 

ये आवाज सूबेदार रतन सिंह की होती है और इसके बाद एक सौ दस जवान पूरी टैंक रेजिमेंट को रातभर में धूल चटा देते हैं। कहने का अर्थ ये है कि कोई भी जंग सिर्फ संसाधनों से नहीं बल्कि हौसलों से जीती जाती है। ये वाक़या भारत पाकिस्तान सीमा पर बसे एक छोटी से सैनिक पोस्ट लोंगेवाला का है जहां 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध की रात मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने अपने हौसले के दम पर सारा खेल पलट दिया।

बात सिर्फ फिल्म की नहीं

हम आज 1971 की बात नहीं कर रहे, न ही मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की और न ही सूबेदार रतन सिंह की। हम बात कर रहे हैं आज से 22 साल पहले इसी जून-जुलाई के महीने में हुए कारगिल के युद्ध की।

दरअसल, जब-जब हौसलों से जंग जीतने की बात होगी तब-तब कारगिल युद्ध का नाम ज़रूर लिया जाएगा, जहां सैन्य गणित के अनुसार ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के एक जवान के बदले हमारे सात जवान खोने की गणना थी। युद्ध समाप्त होते-होते ये गणना 1 के बदले 3 की हो गई, मगर रिवर्स में, यानी एक भारतीय जवान के बदले 3 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत। ये असंभव सा दिखने वाला काम हौंसले के बल पर किया गया था।

अमेरिका ने कर दिया था मना

ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की पोजीशन जानने के लिए भारत ने अमेरिका से GPS यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सेटेलाइट की मदद मांगी जिसे अमेरिका ने मना कर दिया। कारण साफ था, अमेरिका और पाकिस्तान का बैकडोर से हथियारों की सौदेबाजी करना। हाल ही में अमेरिकी निगरानी के चक्र को तोड़ते हुए भारत का परमाणु सम्पन्न देश बन जाना अमेरिकी इंटेलीजेंस और CIA की नाकामी को सिद्ध कर रहा था। इसी बात को लेकर भारत अघोषित रूप से अमेरिका की आंखों का नासूर बना हुआ था।

GPS की सुविधा न मिल पाने के कारण भारतीय फौज को आगे बढ़ने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की पोजीशन और निशाना इतना सटीक था कि वो सीधा भारतीय जवानों की आंख में गोली मार पाने में सक्षम हो रहा था। मगर फिर एक बार भारतीय सेना के अनुशासन और हौसले ने आगे का मार्ग प्रशस्त किया।

23 साल के कप्तान मनोज कुमार पांडेय

नेशनल डिफेंस अकेडमी यानी कि NDA में जो लड़का एक बकरे के कटने पर पूरी रात न सो पाया और अपने मुंह पर पड़े खून के छीटों को कई बार धोया था, मातृभूमि की रक्षा की खातिर आज वो दुश्मन का खून पीने के लिए बर्फीली चोटियों पर खड़ा था। लखनऊ के रहने वाले तेईस साल के लड़के ने गोरखा खुखरी से अमेरिकी GPS की कमी पूरी कर दी।

दरअसल, 1/11 गोरखा राईफल्स की टुकड़ियों का नेतृत्व करते हुए लखनऊ के कप्तान मनोज कुमार पांडेय ने एक एक कर खालूबार, कूकरथांम और जब्बार की पहाड़ियों पर कब्ज़ा किए दुश्मनों को मौत की नींद सुला दी।

मनोज पांडेय ने अपनी दैनिक डायरी में लिखा था-

 

 

‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित

SSB इंटरव्यू के दौरान “आप फौज़ में क्यों आना चाहते हैं” के जवाब में कहे गए अपने शब्दों को कप्तान मनोज पांडेय ने चरितार्थ कर दिया था। उन्हें मरणोपरांत युद्ध समय के सर्वोच्च सैनिक पदक ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया और यहीं उनके SSB इंटरव्यू में पूछे गए सवाल का जवाब था “मैं परमवीर चक्र पाना चाहता हूं”।

कप्तान मनोज पांडेय के साथ ही साथ कप्तान विक्रम बत्रा, ग्रनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, राइएफलमैन संजय कुमार को भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। पांच सौ से भी अधिक भारतीय वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर पाकिस्तानी फौज की घुसपैठ को नाकाम करते हुए उन्हें LOC के उस पर धकेल दिया।

भारतीय थल सेना ने ऑपरेशन विजय चला कर पाकिस्तानी फौज़ की धज्जियां उड़ा दीं, और अंततः भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन सफेद सागर चला कर दुश्मन के बंकरों के साथ साथ उनके इरादों को भी नेस्तोनाबूद कर दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने पांच जुलाई को बिना शर्त अपनी सेना वापस बुलाने का एलान किया।

26 जुलाई 1999 को भारत के प्रधानमंत्री ने आधिकारिक तौर पर दुनिया को बताया -“कारगिल में तिरंगा लहरा रहा है”।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

विस्तार

1997 में रिलीज हुई जेपी दत्ता की बॉर्डर का एक सीन याद करिए। जब दुश्मन की पूरी टैंक रेजिमेंट के सामने महज़ एक सौ दस जवानों को खड़ा देख मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी अपने जवानों को युद्धभूमि छोड़कर वापस चले जाने का मौका देते हैं तो उन्हीं एक सौ दस जवानों के बीच से एक आवाज़ आती है-

 

“ता क्या होया साब जी, सच्चे पादशाह दसवीं पादशाही श्री गुरु गोबिंद सिंह महाराज जी ने फरमाया है, चिड़िया नाल जे बाज लडावां, ता गोबिंद सिंह नाम कहवां”। 


ये आवाज सूबेदार रतन सिंह की होती है और इसके बाद एक सौ दस जवान पूरी टैंक रेजिमेंट को रातभर में धूल चटा देते हैं। कहने का अर्थ ये है कि कोई भी जंग सिर्फ संसाधनों से नहीं बल्कि हौसलों से जीती जाती है। ये वाक़या भारत पाकिस्तान सीमा पर बसे एक छोटी से सैनिक पोस्ट लोंगेवाला का है जहां 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध की रात मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने अपने हौसले के दम पर सारा खेल पलट दिया।


बात सिर्फ फिल्म की नहीं

हम आज 1971 की बात नहीं कर रहे, न ही मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की और न ही सूबेदार रतन सिंह की। हम बात कर रहे हैं आज से 22 साल पहले इसी जून-जुलाई के महीने में हुए कारगिल के युद्ध की।

दरअसल, जब-जब हौसलों से जंग जीतने की बात होगी तब-तब कारगिल युद्ध का नाम ज़रूर लिया जाएगा, जहां सैन्य गणित के अनुसार ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के एक जवान के बदले हमारे सात जवान खोने की गणना थी। युद्ध समाप्त होते-होते ये गणना 1 के बदले 3 की हो गई, मगर रिवर्स में, यानी एक भारतीय जवान के बदले 3 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत। ये असंभव सा दिखने वाला काम हौंसले के बल पर किया गया था।


अमेरिका ने कर दिया था मना

ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की पोजीशन जानने के लिए भारत ने अमेरिका से GPS यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सेटेलाइट की मदद मांगी जिसे अमेरिका ने मना कर दिया। कारण साफ था, अमेरिका और पाकिस्तान का बैकडोर से हथियारों की सौदेबाजी करना। हाल ही में अमेरिकी निगरानी के चक्र को तोड़ते हुए भारत का परमाणु सम्पन्न देश बन जाना अमेरिकी इंटेलीजेंस और CIA की नाकामी को सिद्ध कर रहा था। इसी बात को लेकर भारत अघोषित रूप से अमेरिका की आंखों का नासूर बना हुआ था।

GPS की सुविधा न मिल पाने के कारण भारतीय फौज को आगे बढ़ने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की पोजीशन और निशाना इतना सटीक था कि वो सीधा भारतीय जवानों की आंख में गोली मार पाने में सक्षम हो रहा था। मगर फिर एक बार भारतीय सेना के अनुशासन और हौसले ने आगे का मार्ग प्रशस्त किया।



Source link

Enable Notifications OK No thanks