Haryana Local Body Election: नतीजों के भाजपा-कांग्रेस के लिए क्या मायने, जानें पहली बार लड़ी आप ने पहुंचाई कितनी चोट?


हरियाणा के शहरी निकाय चुनाव के नतीजे बुधवार को आ चुके हैं। कुल 46 निकायों में से 22 में भाजपा ने जीत दर्ज की, तीन पर उसकी सहयोगी जजपा को सफलता मिली। बाकी बची 21 सीटों में से 19 पर निर्दलीय और एक-एक पर इनेलो और आप ने जीत हासिल की।  

ऐसे में सवाल ये है कि आखिर हरियाणा के स्थानीय चुनावों के नतीजों के मायने क्या हैं? क्या भाजपा ने कृषि आंदोलन के बाद हरियाणा में एक बार फिर खोई जमीन वापस पाने में सफलता हासिल की है? इन चुनावों में कांग्रेस की क्या स्थिति रही? आम आदमी पार्टी के लिए इन नतीजों के क्या मायने हैं? आइए जानते हैं…

क्या भाजपा ने किसान आंदोलन की खोई जमीन वापस पाई?

शहरी निकाय के चुनाव में किसान आंदोलन को लेकर सीधे असर का पता लगाना मुश्किल है। इसके बाद भी निकाय में कई ऐसे इलाके थे जो कस्बाई थे। जहां लोग किसानी से जुड़े हुए हैं। वहीं, कई शहरी मतदाताओं की जड़े गांवों से जुड़ी हैं। इसके अलावा ज्यादातर छोटे शहर कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़े हैं, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा किसान आंदोलन से हुए नुकसान को खत्म करने की ओर अग्रसर है। किसान आंदोलन के दौरान बरोदा सीट (जिसे कांग्रेस ने जीता था) और एलनाबाद सीट (जिसे इनेलो ने जीता था) पर हुए विधानसभा उपचुनाव भाजपा हार गई थी। यह दोनों ही चुनाव किसान आंदोलन के दौरान भाजपा के प्रति जनता के गुस्से के तौर पर देखे गए थे। 

भाजपा-जजपा के आगे रहने की और कोई वजह?

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि निकाय चुनाव में ज्यादातर स्थानीय मुद्दे हावी होते हैं। बीते चुनावों को देखें तो निकाय चुनाव के नतीजे उसी के पक्ष में जाते हैं जो सत्ता में होता है। इन चुनावों के नतीजे भी मौजूदा सरकार के पक्ष में गए। कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि चुनाव में हुई देरी का भी भाजपा को फायदा हुआ। दरअसल, इन स्थानीय चुनावों को कोर्ट केस और तकनीकी कारणों से कई महीनों के लिए स्थगित किया गया था। तब भी विपक्ष का आरोप था कि भाजपा-जजपा अपने राजनीतिक फायदे के लिए चुनाव कराने में देर कर रहे हैं। यानी अगर यह चुनाव समय पर होते तो भाजपा-जजपा के लिए इस तरह की जीत संभवतः मुश्किल होती। 

उस वक्त किसान आंदोलन के चलते राज्य में भाजपा-जजपा सरकार के खिलाफ माहौल था। लेकिन, चुनाव में हुई इस देरी और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत ने हरियाणा कैडर में भी जोश भर दिया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने स्थानीय चुनावों की तैयारी पूरे जोर-शोर से की। 

 

कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलने का क्या कारण?

उपचुनाव में किसान आंदोलन के गुस्से का फायदा पाने वाली कांग्रेस इस बार स्थानीय चुनाव में बुरी तरह पिछड़ गई। दरअसल, राज्य स्तर की बात करें तो पिछले आठ साल से कांग्रेस गुटों में बंटी हुई है। न तो कांग्रेस का जिला और ब्लॉक स्तर पर संगठन तैयार हो पाया है और न ही निकाय चुनावों को लेकर कांग्रेस की ओर से कोई ठोस प्रचार रणनीति तैयार की गई। 

कांग्रेस के दिग्गज नेता अपने-अपने हलकों और जिलों तक ही सीमित रहे। कांग्रेस की ओर से नगर पालिका और नगर परिषदों में चेयरमैन पदों के लिए किसी को मैदान में नहीं उतारा गया। लेकिन अलग-अलग गुटबाजी के चलते एक ही सीट पर कांग्रेस के समर्थन वाले कई-कई दावेदार मैदान में उतर गए। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता ठीक से अपने किसी प्रत्याशी के प्रचार में भी नहीं उतरे। इसी का लाभ भाजपा के प्रत्याशियों को मिला।

हालांकि, नतीजों के बाद कांग्रेस दावा कर रही है कि चुनाव में जीत दर्ज करने वाले 19 निर्दलियों में से लगभग सभी उसकी पार्टी से जुड़े लोग हैं। 

आम आदमी पार्टी के लिए इस चुनाव के क्या मायने?

पंजाब विधानसभा में एकतरफा जीत के बाद हरियाणा निकाय चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाई। हालांकि, पंजाब राज्य की सीमा के साथ लगते कुरुक्षेत्र के इस्माइलाबाद नगरपालिका में जरूर निशा ने चेयरमैन पद पर जीत दर्ज कर पार्टी का खाता खोला। आम आदमी पार्टी ने नांगल चौधरी को छोड़कर सभी 45 स्थानों पर चेयरमैन पदों के लिए अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। हालांकि, उम्मीद के मुताबिक शहरी क्षेत्र में पार्टी मतदाताओं को नहीं लुभा पाई।  इसके साथ ही घरौंडा, पिहोवा और कुंडली नगर पालिका में आप के उम्मीदवारों ने भाजपा के उम्मीदारों को कांटे की टक्कर दी। इनके अलावा आप के उम्मीदवार बाकी स्थानों पर काफी पीछे रहे। इस लिहाज से माना जा सकता है कि कांग्रेस से छिटके वोट भी आप तक नहीं पहुंच पाए। 

कई विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी के लिए हरियाणा में जमीन तलाशना उतना आसान नहीं होगा, जितना दिल्ली और पंजाब में रहा। हालांकि, निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी के चेयरमैन पदों के प्रत्याशियों को कुल 130170 वोट मिले हैं। यह कुल मतदान किए गए वोटों का करीब 10 प्रतिशत बनता है। इस लिहाज से आप आगे ज्याद वोट जुटाकर अपनी जगह बना सकती है। पार्टी के निशान पर प्रत्याशियों को इतने वोट मिलना इस बात के भी संकेत हैं कि आप ने भविष्य के लिए अपने विश्वसनीय कार्यकर्ता जुटाने शुरू कर दिए हैं।



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