Maharashtra Political Crisis: क्या शिवसेना पार्टी पर हो जाएगा बागी एकनाथ शिंदे का कब्जा? क्या कहता है कानून?


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शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे का दावा है कि कम से कम 42 विधायक उनके साथ हैं। वहीं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पक्ष में केवल 13 विधायक बचे हैं। बागी विधायकों पर ‘एंटी डिफेक्शन लॉ’ भी लागू नहीं होगा, क्योंकि बागी विधायकों की संख्या कुल विधायकों के दो-तिहाई से ज्यादा हो चुकी है। विधानसभा के अंदर एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना पार्टी की मान्यता मिल जाएगी और उसके नेता एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता मान लिया जाएगा। लेकिन क्या शिवसेना पार्टी पर भी एकनाथ शिंदे का कब्जा हो जाएगा? बगावत की स्थिति में किसी पार्टी पर किस दल का अधिकार होता है और उसके चुनाव चिन्ह पर किसका कब्जा होता है? इस पर कानून क्या कहता है?

राजनीतिक पार्टी का रजिस्ट्रेशन किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं होता

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अमर उजाला को बताया कि चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29(A) के अंतर्गत किया जाता है। किसी राजनीतिक पार्टी का रजिस्ट्रेशन किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं होता। उस पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार भी नहीं होता। पार्टी अध्यक्ष को नियमों के अंतर्गत पार्टी को संचालित करने का अधिकार होता है। पार्टियों का रजिस्ट्रेशन करते समय चुनाव आयोग में पार्टी को एक संविधान जमा करना पड़ता है जिसमें पार्टी संचालित करने के नियमों, पदाधिकारियों की संख्या, उनके पदनाम, अधिकार और उनके चुने जाने के समय और प्रक्रिया के बारे में बताया गया होता है।

किसी राजनीतिक दल में सबसे ऊंचा पद अध्यक्ष का होता है और उसके पास सबसे ज्यादा अधिकार होते हैं। इन्हीं अधिकारों का उपयोग करते हुए वह पार्टी संचालित करता है। लेकिन किसी पार्टी में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नेशनल काउंसिल होती है जिसमें न्यूनतम 100 सदस्य होते हैं। इस काउंसिल के सदस्यों के पास बहुमत के आधार पर अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का भी अधिकार होता है।

जब किसी पार्टी में दो या दो से अधिक अलग-अलग गुट बन जाते हैं और सभी गुट पार्टी पर अपना-अपना दावा ठोंकने लगते हैं तो यह मामला चुनाव आयोग के पास चला जाता है। अधिकार से संबंधित विवाद होने पर नेशनल काउंसिल के सदस्यों का बहुमत सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। चुनाव आयोग उसी गुट को असली पार्टी होने का अधिकार दे देता है, जिसके पास नेशनल काउंसिल में सबसे ज्यादा मत होते हैं। अधिकार मिलने पर यह गुट विरोधी गुट को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आधार पर पार्टी से बाहर भी कर सकता है।

चुनाव निशान पर किसका अधिकार

चुनाव आयोग उसी गुट को पार्टी का आधिकारिक चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करने की अनुमति दे देता है, जिसके पास नेशनल काउंसिल में सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। लेकिन यदि विवाद का निपटारा होने के पहले ही कोई चुनाव आ जाता है और सभी गुट निशान पर अपना दावा ठोंक देते हैं तो इस परिस्थिति में चुनाव आयोग दोनों गुटों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह आवंटित कर देता है। चुनाव बाद मामला सुलझने पर जिस गुट का पार्टी पर अधिकार सिद्ध हो जाता है, उसे पार्टी का निशान भी आवंटित कर दिया जाता है। एआईएडीएमके के मामले में चुनाव आयोग ने यही किया था।

विधानसभा में नियम ज्यादा आसान

किसी विधानसभा में किसी पार्टी के जितने सदस्य चुने गए होते हैं, पार्टी उन्हीं सदस्यों में से किसी एक को विधायक दल का नेता बना देती है। वह पार्टी की नीतियों के अनुसार सदन में पार्टी के सदस्यों का दिशा-निर्देशन करता है। लेकिन नेता के मुद्दे पर विवाद होने पर उसी गुट को असली पार्टी की मान्यता दी जाती है जिसके पास सदस्यों की संख्या ज्यादा होती है। पार्टी के ह्विप से अलग मतदान करने पर विधानसभा या लोकसभा स्पीकर से सदस्यों की सदस्यता समाप्त करने की मांग भी की जा सकती है। लेकिन यदि बागी विधायकों-सांसदों की संख्या दो-तिहाई या इससे ज्यादा होती है, तो इस बागी गुट को ही असली पार्टी होने की मान्यता दी जाती है।

विस्तार

शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे का दावा है कि कम से कम 42 विधायक उनके साथ हैं। वहीं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पक्ष में केवल 13 विधायक बचे हैं। बागी विधायकों पर ‘एंटी डिफेक्शन लॉ’ भी लागू नहीं होगा, क्योंकि बागी विधायकों की संख्या कुल विधायकों के दो-तिहाई से ज्यादा हो चुकी है। विधानसभा के अंदर एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना पार्टी की मान्यता मिल जाएगी और उसके नेता एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता मान लिया जाएगा। लेकिन क्या शिवसेना पार्टी पर भी एकनाथ शिंदे का कब्जा हो जाएगा? बगावत की स्थिति में किसी पार्टी पर किस दल का अधिकार होता है और उसके चुनाव चिन्ह पर किसका कब्जा होता है? इस पर कानून क्या कहता है?

राजनीतिक पार्टी का रजिस्ट्रेशन किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं होता

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अमर उजाला को बताया कि चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29(A) के अंतर्गत किया जाता है। किसी राजनीतिक पार्टी का रजिस्ट्रेशन किसी व्यक्ति के नाम पर नहीं होता। उस पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार भी नहीं होता। पार्टी अध्यक्ष को नियमों के अंतर्गत पार्टी को संचालित करने का अधिकार होता है। पार्टियों का रजिस्ट्रेशन करते समय चुनाव आयोग में पार्टी को एक संविधान जमा करना पड़ता है जिसमें पार्टी संचालित करने के नियमों, पदाधिकारियों की संख्या, उनके पदनाम, अधिकार और उनके चुने जाने के समय और प्रक्रिया के बारे में बताया गया होता है।

किसी राजनीतिक दल में सबसे ऊंचा पद अध्यक्ष का होता है और उसके पास सबसे ज्यादा अधिकार होते हैं। इन्हीं अधिकारों का उपयोग करते हुए वह पार्टी संचालित करता है। लेकिन किसी पार्टी में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नेशनल काउंसिल होती है जिसमें न्यूनतम 100 सदस्य होते हैं। इस काउंसिल के सदस्यों के पास बहुमत के आधार पर अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का भी अधिकार होता है।

जब किसी पार्टी में दो या दो से अधिक अलग-अलग गुट बन जाते हैं और सभी गुट पार्टी पर अपना-अपना दावा ठोंकने लगते हैं तो यह मामला चुनाव आयोग के पास चला जाता है। अधिकार से संबंधित विवाद होने पर नेशनल काउंसिल के सदस्यों का बहुमत सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। चुनाव आयोग उसी गुट को असली पार्टी होने का अधिकार दे देता है, जिसके पास नेशनल काउंसिल में सबसे ज्यादा मत होते हैं। अधिकार मिलने पर यह गुट विरोधी गुट को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आधार पर पार्टी से बाहर भी कर सकता है।

चुनाव निशान पर किसका अधिकार

चुनाव आयोग उसी गुट को पार्टी का आधिकारिक चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करने की अनुमति दे देता है, जिसके पास नेशनल काउंसिल में सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। लेकिन यदि विवाद का निपटारा होने के पहले ही कोई चुनाव आ जाता है और सभी गुट निशान पर अपना दावा ठोंक देते हैं तो इस परिस्थिति में चुनाव आयोग दोनों गुटों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह आवंटित कर देता है। चुनाव बाद मामला सुलझने पर जिस गुट का पार्टी पर अधिकार सिद्ध हो जाता है, उसे पार्टी का निशान भी आवंटित कर दिया जाता है। एआईएडीएमके के मामले में चुनाव आयोग ने यही किया था।

विधानसभा में नियम ज्यादा आसान

किसी विधानसभा में किसी पार्टी के जितने सदस्य चुने गए होते हैं, पार्टी उन्हीं सदस्यों में से किसी एक को विधायक दल का नेता बना देती है। वह पार्टी की नीतियों के अनुसार सदन में पार्टी के सदस्यों का दिशा-निर्देशन करता है। लेकिन नेता के मुद्दे पर विवाद होने पर उसी गुट को असली पार्टी की मान्यता दी जाती है जिसके पास सदस्यों की संख्या ज्यादा होती है। पार्टी के ह्विप से अलग मतदान करने पर विधानसभा या लोकसभा स्पीकर से सदस्यों की सदस्यता समाप्त करने की मांग भी की जा सकती है। लेकिन यदि बागी विधायकों-सांसदों की संख्या दो-तिहाई या इससे ज्यादा होती है, तो इस बागी गुट को ही असली पार्टी होने की मान्यता दी जाती है।



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