वो जो किसी से कुछ कह नहीं पाई वो लिखती रही कागज़ पर. दर्द, तकलीफ़ अज़ीयत और बेपनाह मोहब्बत वो ख़ामोशी से उतारती रही कागज़ पर. वो इश्क़ की अज़ीयतें नज़्मों में उतारती रही, वो इश्क़ जिससे नाम पर छला गया, वो इश्क़ जिसके नाम पर वो इस्तेमाल होती रही. वो इक ऐसे शख़्स से मोहब्बत करती रही जो शायद इश्क़ के मायने भी नहीं जानता था. उस शख्स को मोहब्बत नहीं बल्कि दौलत शोहरत चाहिए थी. एक बेहद ख़ूबसूरत क़ामयाब शख्सियत नाकाम रिश्ते की भेंट चढ़ गई.
हम आज बात कर रहे हैं हिंदी सिनेमा की ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी की. संजीदा और दर्द से भरे किरदार निभाने की वजह से उन्हें ट्रेजडी क्वीन का ख़िताब नवाज़ा गया था. आज उनकी सालगिरह है. बॉलीवुड की महान अभिनेत्री मीना कुमारी उर्फ़ माहजबीं का जन्म 1 अगस्त 1933 को मुंबई में हुआ था. बहुत कम उम्र में उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने कदम रखे. उनकी बेमिसाल अदाकारी की दुनिया कायल है. वो एक छोटी की ज़िंदगी में लंबा सफर तय कर गईं. उनके चाहने वाले उन्हें अपने दिल में बसाए हुए हैं. उनकी एक्टिंग में सिर्फ़ ट्रेजेडी ही नहीं थी बल्कि उनका किरदार अलग-अलग रंगों से भरा हुआ था. हां, लेकिन ये बात सच है कि रुपहले पर्दे पर ट्रेजेडी, गम उतारते हुए वो अपनी ज़िंदगी की त्रासदी को शायद नहीं देख पाईं. लेकिन हम आज मीना कुमारी को उनकी बेमिसाल अदाकारी के साथ साथ उनकी शायदी के लिए याद करेंगे.
मीना कुमारी के किरदार का अहम हिस्सा था उनकी शायरी. वो अपनी ज़िंदगी का खालीपन, उदासी, नाकाम मोहब्बत, इंतज़ार लिखती रहीं और अपनी उदासी के साथ ही महज 39 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गईं. उनकी शायरी में तन्हाई शिद्दत से छलकती है. वो मीना कुमारी “नाज़” के नाम से कलाम लिखती थीं. उनके ज़िंदगी की झलक उनके लिखे अशआर और गज़लों में साफ़ नज़र आते. वो कहतीं हैं:
हम ये कह-कहकर दिल को समझा रहे हैं
वो अब चल चुके हैं, वो अब आ रहे हैं.
उनका लिखा हुआ शेर है :
ना हाथ थाम सका कोई, ना पकड़ सका दामन
बड़े करीब से उठकर, चला गया कोई.
इस शेर में उनकी ज़िंदगी नज़र आती है. मीना कुमारी की ज़िंदगी रुपहले पर्दे पर जितनी कामयाब थी उतनी ही दर्द तकलीफ़ उनकी निजी ज़िंदगी में थी. वो नाकाम मोहब्बत का दर्द खुद में समाए हुए थीं. वो नाकाम शादी को किसी तरह निभा रहीं थी. इसी अज़ीयत से भरे रिश्ते को ढ़ोते हुए उन्होंने शराब का सहारा लिया और खुद को नशे में डुबो दिया कि शायद उन्हें सुकून मिल जाए. लेकिन कहते हैं कुछ लोगों की रूहें बेचैन होती हैं उन्हें किसी सूरत चैन नहीं. यही बेचैनी वो लिखती रहीं:
कोई चाहत है न जरूरत है मौत क्या इतनी खूबसूरत है
मौत की गोद मिल रही हो अगर जागे रहने की क्या जरूरत है.
कहा जाता है कि जब भी मीना कुमारी आउटडोर शूटिंग पर जाती थीं तो उनके साथ उनकी किताबें जरूर होती थीं. पैक-अप के बाद वे या तो किताबें पढ़ा करती थीं या फिर पेपर पर अपने जज़्बात लिखा करती थीं. देर शाम को कभी-कभार वे अपने होटल से बाहर आकर टहलने लगती थीं क्योंकि उन्हें चांद देखना अच्छा लगता था। चांद के लिए वो लिखती हैं :
ना जाने चांद निकले कितने दिन हुए
देखो ना कमसिन चांदनी ने
समुंदर पर एक रहगुज़र बना रखी है
जिस पर कोई राह नज़र नहीं आती
मगर कदमों की चाप सुनाई दे रही है
बेशुमार अनदेखे कदमों की चाप.
मीना कुमारी एक अभिनेत्री के रूप में 32 सालों तक भारतीय सिने जगत पर राज किया. उन्होंने अपने किरदारों को असल ज़िंदगी में भी जिया. वो बेहद जज़्बाती थीं. उनके लिए कहते हैं कि वो दूसरों को खुशी बांटते हुए और अपने ग़म छुपाते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गईं. वो तन्हाई में चांद से अपने दर्द बयां करतीं और फिर उसे नज़्म की शक्ल दे देतीं. अपनी एक गज़ल में वो लिखती हैं:
चांद तन्हा है और आसमां तन्हा, दिल मिला है कहां-कहां तन्हा,
क्या ज़िंदगी इसी को कहते हैं, जिस्म तन्हा है और जां तन्हां
इसी गज़ल का आख़िरी शेर उनके किरदार, उनकी ज़िंदगी की कहानी बयां कर देता है. वो लिखती हैं:
राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा.
मीना कुमारी ने 1954 में डायरेक्टर-प्रोड्यूसर कमाल अमरोही से शादी की थी। इस समय मीना महज 18 और कमाल 34 साल के थे. मीना ने जब कमाल से निकाह किया तब वह पहले से शादीशुदा थे। उन्हें कमाल की दूसरी पत्नी का दर्जा मिला लेकिन इसके बावजूद कमाल के साथ उन्होंने 10 साल बिताए. कामयाबी की बुलंदिया छूने वाली मीना कुमारी की शादीशुदा ज़िंदगी नाकामी के दौर में पहुंच गई थी. अपने वक्त में सबसे ज़्यादा फीस लेने वाली खूबसूरत अभिनेत्री कमाल अमरोही की मारपीट का शिकार तक हुई. कहते हैं कि कामयाबी की सीढियां चढ़ती हुई मीना कुमारी कमाल अमरोही की खटक रही थीं. वो उन पर पाबंदियां लगाते लेकिन मीना कुमारी ज़िंदगी अपने तरीके से जीना चाहती थीं. इस उठा पटक में उनकी शादीशुदा ज़िंदगी जंग का मैदान बन गई.
अपनी तन्हाई और उदासी को छुपाने के लिए और ग़म से निजात पाने के लिए मीना कुमारी ने शराब का सहारा लिया. वो कमाल अमरोही से अलग रहने लगीं लेकिन उन्होंने उनके साथ काम करना नहीं छोड़ा. ‘पाक़ीज़ा’ मीना कुमारी और कमाल अमरोही की आख़िरी फिल्म बनी. कमाल अमरोही से अलग होने के बाद मीना कुमारी को शराब को ऐसी लत लगी कि वो शराब के साथ ही मौत के आग़ोश में गईं. अपने ख़्वाहिशों का दम भरते हुए मीना कुमारी लिखती हैं कि
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली.
मीना कुमारी की ज़िंदगी उनकी फिल्म की स्क्रीप्ट की मानिंद थी. जैसे उन्होंने रुपहले पर्दे पर ग़म को जीया ठीक वैसे ही वो अपनी निजी ज़िंदगी में ग़म को समेटे जीती रहीं. अपनी बेहतरीन अदाकारी के साथ मीना कुमारी इस दुनिया में अपने चाहने वालों के लिए छोड़ गईं बेहतरीन नज़्में, ग़ज़लें और उनकी यादें. मीना कुमारी को उनके चाहने वाले मोहब्बत और एहतराम के साथ याद करते हैं. आप जहां भी हो आपकी रूह को सुकून मिले इसी दुआ के साथ सालगिरह बहुत मुबारक मेरी पसंदीदा शायरा और अभिनेत्री.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
निदा रहमानपत्रकार, लेखक
एक दशक तक राष्ट्रीय टीवी चैनल में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी. सामाजिक ,राजनीतिक विषयों पर निरंतर संवाद. स्तंभकार और स्वतंत्र लेखक.
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