प्रेग्नेंसी के दौरान मां के मोटापे से बच्चों में हार्ट डिजीज का खतरा- स्टडी


ये बात तो हम सभी जानते हैं कि मां की सेहत का असर उसके पेट में पलने वाले बच्चे पर बहुत गहरा होता है. इसलिए प्रेग्नेंसी के टाइम महिलाओं की हेल्थ पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी हो जाता है. लेकिन क्या ये बात जानते हैं कि प्रेग्नेंसी के टाइम मोटापे की शिकार मां से उसके होने वाले बच्चे में हार्ट डिजीज का रिस्क हो सकता है? अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो (University of Colorado) के साइंटिस्टों ने अपनी नई स्टडी ऐसा दावा किया है. रिसर्चर्स के अनुसार ये अपने आप में पहली स्टडी है जिसमें ये दर्शाया गया है कि मां का मोटापा भ्रूण के हार्ट में मॉलीक्यूलर बदलावों (molecular changes) की वजह बनता है और ये न्यूट्रिएंट मेटाबॉलिज्म से संबंधित जीन एक्सप्रेशंस को बदल देता है, जो बाद के जीवन में संतान के हार्ट से जुड़ी समस्याओं के जोखिम को बहुत बढ़ा देता है.

इस स्टडी का निष्कर्ष जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी (Journal of Physiology) में प्रकाशित हुआ है. इस स्टडी के लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के रिसर्चर्स ने चूहों के मॉडल पर प्रयोग किया. क्योंकि इनमें इंसानी मातृत्व फिजियोलॉजी और गर्भनाल के जरिए न्यूट्रीशन्ल सप्लाई (पोषण आपूर्ति) एक जैसी पाई जाती है.

कैसे हुई स्टडी
रिसर्च दौरान चुहिया को हाई फैट वाली खाने की चीजों के साथ ही शुगर वाले ड्रिंक्स भी दिए गए, जो इंसानों के आमतौर पर बर्गर, चिप्स और फिजी (गैस मिला हुआ) ड्रिंक्स लेने के बराबर होता है. चुहिया को ये डाइट उन्हें तब तक दी जाती है, जब तक की उनका वेट उनके मूल सामान्य वजन से 25% ज्यादा नहीं हो जाता है. जबकि 50 चुहियों को कंट्रोल रूप में खाना दिया गया. इसके बाद चुहियों के भ्रूण की स्टडी करने के साथ ही बच्चे के जन्म होने के 3, 6, 9 और 14 महीने बाद भी इमेजिंग तकनीक से जांच की गई. इनमें इकोकार्डियोग्राम और पॉज़िट्रॉन उत्सर्जन टोमोग्राफी (पीईटी) जैसे स्कैन शामिल थे. इसके आधार पर बच्चों के जीन प्रोटीन और माइटोकांड्रिया के विश्लेषण किए गए.

स्टडी में क्या निकला
रिसर्चर्स ने पाया कि बच्चों के कार्डियक मेटाबॉलिज्म (cardiac metabolism) में बदलाव बहुत हद तक लिंग के आधार पर निर्भर करता है. मादा भ्रूण में 841 जीन एक्सप्रेशन में बदलाव हुआ, जबकि नर भ्रूण के 764 जीनों में परिवर्तन था. बदलाव वाले जीनों में महज 10% ही ऐसे थे, जो दोनों लिंग में कॉमन थे. इसके बावजूद दिलचस्प बात ये रही मोटापे की शिकार मां से पैदा हुए नर और मादा दोनों बच्चों के कार्डियक फंक्शन में गड़बड़ी पाई गई. हालांकि दोनों लिंगों में हार्ट की गड़बड़ियों के विकास में फर्क होता है. नर बच्चों के हार्ट में गड़बड़ी पहले ही शुरू हो जाती है, जबकि मादा में बढ़ती उम्र के साथ स्थिति बिगड़ती जाती है.

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रिसर्चर्स का कहना है कि कार्डियोवस्कुलर हेल्थ और उसके कामकाज में अंतर एस्ट्रोजन हार्मोन की वजह से हो सकता है. यंग एज में एस्ट्रोजन का हाई लेवल होने से कार्डियोस्कुलर हेल्थ को सुरक्षा मिलती है, जबकि उम्र बढ़ने पर जब एस्ट्रोजन का लेवल कम होता है, तो सुरक्षा खत्म हो जाती है. लैंगिक आधार पर इस अंतर को मॉलीक्यूलर आधार पर नहीं समझा जा सका है.

क्या कहते हैं जानकार
स्टडी के मेन ऑथर यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के डॉक्टर ओवेन वॉन (Dr Owen Vaughan) का कहना है, ‘हमारी स्टडी से ये संकेत मिलता है कि मां के मोटापे का अगली पीढ़ी में कार्डियोमेटाबॉलिक डिजीज के बीच एक प्रक्रिया या तंत्र (process or mechanism) है. ये स्टडी इस मायने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इंसानी आबादी में दिनों-दिन मोटापा बढ़ता जा रहा है और बच्चा पैदा करने की उम्र में लगभग एक-तिहाई महिलाएं इससे ग्रस्त होती हैं. ऐसे में मोटापा के कारण बच्चों को होने वाले जोखिम की प्रक्रिया या तंत्र के बारे में समझ विकसित होने से उसका इलाज खोजने या कार्डियोमेटाबॉलिक बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी.’

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उन्होंने आगे कहा, ‘रोकथाम कि दिशा में माताओं या बच्चों को उनके बॉडी मास इंडेक्स के आधार पर न्यूट्रीशन की सलाह दी जा सकती है या फिर ऐसी दवा विकसित की जा सकती है, जो भ्रूणावस्था (embryo stage) में ही दिल के मेटाबॉलिज्म को ठीक करने के लिए काम कर सके’

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