मूवी रिव्‍यू: सनी देओल की दमदार वापसी है ‘चुप’, दुलकर सलमान लूट लेंगे दिल


फिल्म निर्देशक और फिल्म समीक्षक सिनेमाई तिलिस्म से प्यार करने वाले ऐसे दो पक्ष हैं, जिन्हें सिनेमा का मोह तो बराबर का होता है, मगर कई बार सिनेमा को देखने का नजरिया अलग होता है। इसी अनबन पर आधारित है चीनी कम, पा, इंग्लिश विंग्लिश, पैड मैन, मिशन मंगल आदि के निर्देशक आर बाल्की की फिल्म ‘चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्‍ट।’ इसे एक तरह से बाल्की का सिनेमा के कालजयी फिल्मकार गुरुदत्त को ट्रिब्यूट भी कहा जा सकता है, क्योंकि मूल कहानी के बैकड्रॉप में गुरुदत्त की कल्ट फिल्म कागज के फूल की परछाइयां शुरू से अंत तक देखने को मिलती हैं। और तो और इस बार मीडिया स्क्रीनिंग में फिल्म की संपूर्ण कास्ट और अन्य सितारों के साथ गुरुदत्त की चहेती अभिनेत्री वहीदा रहमान की उपस्थिति इस ट्रिब्यूट को और पुख्ता करती है।

Chup: Revenge Of The Artist की कहानी
जैसा कि नाम से जाहिर है कहानी प्रतिशोध की है। फिल्म के पहले ही दृश्य में एक फिल्म समीक्षक को बेहद ही वीभत्स तरीके से कत्ल का दिया गया है। मगर उस वक्त मीडिया जगत, पुलिस और आम लोगों में खौफ का माहौल छा जाता है, जब क्रिटिक्स के कत्ल का खौफनाक सिलसिला चल निकलता है। एक बात साफ हो जाती है कि इन बेरहम हत्याओं के पीछे एक साइकोपैथ का हाथ है, जिसे फिल्मों को लेकर की जाने वाली इन समीक्षकों की समीक्षा रास नहीं आई है। पुलिस अफसर अरविंद माथुर (Sunny Deol) और उसकी टीम की शक की सुई उन तमाम लोगों पर जाकर थमती है, जो इस फिल्म के रिव्यू से कहीं न कहीं प्रभावित हुए हैं। अब वो डिप्रेस फिल्म निर्माता, नाराज अभिनेता या फिर जुनूनी फिल्मी प्रेमी, में से कोई भी हो सकता है। इन हत्याओं का एक खास पैटर्न भी है। इन कत्लों की इन्वेस्टिगेशन के साथ-साथ फूल वाले डैनी (Dulquer Salman) और फिल्म पत्रकार नीला (Shreya Dhanwanthary) की मीठी नोकझोंक और लव ट्रैक कहानी की शुरुआत से ही साथ-साथ परवान चढ़ता है। क्रिटिक्स की कटी-पिटी लाशों का सुराग लगाने के लिए अरविंद माथुर अपनी दोस्त और क्रिमिनल सायकॉलजिस्ट जेनोबिया (Pooja Bhatt) की मदद लेता है और फिर कैसे ये पूरी टीम कातिल को अपने शिकंजे में लेती है, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

‘चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्‍ट’ का ट्रेलर

‘चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्‍ट’ का रिव्‍यू
सिनेमा के सौ साल के इतिहास में पहली बार फिल्म समीक्षकों को कहानी का केंद्र बनाया गया है। फिल्म क्रिटिक्स को चुप कराने निकला एक जुनूनी शख्स, जिसका मानना है कि उसकी समीक्षा कैसे एक फिल्मकार की दिशा और दशा को बदलने के लिए काफी साबित हो सकती है। आर बाल्की की यह फिल्म रेटिंग सिस्टम पर कटाक्ष करती भी दिखती है, मगर फिर वे उसे किरदारों के जरिए जस्टिफाई करने की कोशिश करते है। फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी मजबूत है, मगर सेकंड हाफ में कहानी ढुलमुल साबित होती है। सस्पेंस-थ्रिलर फिल्मों का मुख्य आकर्षण उसका सस्पेंस होता है और निर्देशक बाल्की उसका खुलासा करने की जल्दबाजी कर बैठते हैं। हालांकि दुलकर सलमान और श्रेया धनवंतरी की प्रेम कहानी फिल्म का मजबूत पक्ष साबित होती है। दोनों ही किरदारों का चरित्र चित्रण विशिष्ट है। गुरुदत्त की कागज के फूल के जाने के तूने कही, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है जैसे गानों को निर्देशक ने कहानी में काफी रूमानी और मार्मिक अंदाज में फिल्माया है। अमित त्रिवेदी का संगीत कानों को सुकून देता है।

सिनेमेटोग्राफी फिल्म का एक बेहद ही दिलचस्प पहलू है। विशाल सिन्हा के लेंस से साइकिल से ढलान उतरने वाला दृश्य याद रह जाता है। याद और भी तमाम वे रूपकों और उपमाओं जैसी छवियां रह जाती हैं जो फिल्म के अलग अलग भाग में दिखती हैं। बैकग्राउंड स्कोर दमदार है।

एक्‍ट‍िंग की बात करें, तो दुलकर सलमान हुकुम का इक्का साबित होते हैं। अपनी भूमिका के दोहरे रंग को उन्होंने बहुत ही चटख अंदाज में निभाया है। पुलिस अफसर अरविंद माथुर के रूप में सनी देओल की दमदार वापसी हुई है। पूजा भट्ट को जेनोबिया के रूप में देखना सुखद लगता है। श्रेया धनवंतरि अपनी भूमिका की चपलता और चंचलता में खूब खिलती हैं, मगर उनकी भूमिका का सही तरह से विकास नहीं किया गया है। सहयोगी कास्ट में एक नेत्रहीन मां के रूप में तमिल अभिनेत्री सरन्या पोनवानन्न दिल जीत ले जाती हैं। ये मां अंधी होने के बावजूद दया की पात्र नहीं हैं, बल्कि बेहद लिबरल और आत्मनिर्भर है। केमियो में बिग बी का अलहदा अंदाज लुभाता है।

क्यों देखें – सस्पेंस-थ्रिलर फिल्मों के शौकीन और सिनेमा को सेलिब्रेट करने की चाहत रखने वाले ये फिल्म देख सकते हैं।

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