National Politics: क्षेत्रीय नेताओं के इस कदम से भाजपा और कांग्रेस में बढ़ी हलचल, जानिए किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?


पिछले कुछ समय से कई छोटे दल राष्ट्रीय राजनीति में दखल बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कई दल इसके लिए कमर कस रहे हैं। इनमें वो दल ज्यादा सक्रिय हैं जो किसी न किसी राज्य की सत्ता में हैं। राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए ये दल राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार कर रहे हैं। अपने प्रदेश के विकास कार्यों का विज्ञापन राष्ट्रीय चैनलों और अखबारों में दे रहे हैं।

आइए जानते हैं इन दलों और उनकी कोशिशों के बारे में जानते हैं। साथ ही ये समझने की कोशिश करते हैं कि इसका नुकसान कांग्रेस और भाजपा में किसे ज्यादा होगा? 

 

तृणमूल कांग्रेस : पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नियम के मुताबिक तो राष्ट्रीय पार्टी है, लेकिन पहचना सिर्फ बंगाल की पार्टी के तौर पर है। ममता बनर्जी की पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर आने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक है। 

टीएमसी की मुखिया और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद इसकी अगुवाई कर रहीं हैं। राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी ममता विपक्ष को एकजुट करने में लगी हैं। इसके पहले उन्होंने यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी का समर्थन किया था। टीएमसी ने गोवा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। वोट भी केवल 5.3 फीसदी मिले।

पिछले दो साल में ममता बनर्जी ने कई राज्यों के बड़े नेताओं को पार्टी से जोड़ा है। अरुणाचल प्रदेश में निर्दलीय विधायक चकत अबोह, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं सुष्मिता देव को टीएमसी की सदस्यता दिलाई। इसके अलावा बिहार, गोवा, हरियाणा, केरल, मणिपुर, मेघालय, पंजाब, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश के भी कई दिग्गज नेताओं को पार्टी से जोड़ा गया है। 

 

आम आदमी पार्टी : दिल्ली से निकलकर पंजाब में सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी की नजर अब दूसरे राज्यों पर भी है। आम आदमी पार्टी ने यूपी, गोवा और उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ा था। हालांकि, इन राज्यों में आप को ज्यादा फायदा नहीं मिला। अब इसी साल होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए भी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पूरी ताकत झोंक दी है। 

 

टीआरएस : तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव काफी समय से देश में गैर कांग्रेसी थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिश में जुटे है। इसके लिए उन्होंने कई राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात भी की लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ।

 अब उन्होंने कहा है कि तीसरे मोर्चे की जरूरत नहीं है। कहा जा रहा है कि राव अब तीसरे मोर्चे की जगह अपनी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने का फैसला ले चुके हैं। जल्द ही इसका एलान भी करेंगे। तेलंगाना सरकार के कामकाज का प्रचार अब केवल राज्य तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर तक हो रहा है। तेलंगाना सरकार की योजना से जुड़े विज्ञापन दिल्ली से लखनऊ और पटना तक के अखबारों में नजर आते हैं।  

 

शिवसेना : महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार में शामिल शिवसेना भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुटी है। अभी तक शिवसेना और भाजपा का गठबंधन था। दोनों हिंदुत्ववादी राजनीतिक पार्टियां जानी जाती थीं। अब दोनों ने अपनी राहें अलग कर ली है। इसलिए नए सिरे से शिवसेना अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाना चाहती है। खासतौर पर उन राज्यों में जहां भाजपा की सरकार है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पार्टी ने अपना काम बढ़ा दिया है। 

 



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