नई ‘अनीता भाभी’ Vidisha Srivastava को छोटे शहर से होने कारण करना पड़ा स्ट्रगल, रिश्तेदारों ने भी उठाए थे सवाल


साउथ सिनेमा से करियर शुरू करने वाली ऐक्ट्रेस विदिशा श्रीवास्तव (Vidisha Srivastava) अब टेलीविजन इंडस्ट्री का भी जाना-पहचाना नाम बन चुकी हैं। इन दिनों विदिशा चर्चा में हैं, हिट टीवी शो ‘भाबी जी घर पर हैं!’ (Bhabiji Ghar Par Hain!) की नई अनीता भाभी के रोल के लिए। इस पहले से ही मशहूर किरदार को नई ऊंचाई देने के लिए क्या है, विदिशा की तैयारी और कितनी बड़ी है ये जिम्मेदारी? हमने जाना खुद उनसे ही:

आम तौर पर ऐक्टर्स छोटे पर्दे से बड़े पर्दे की ओर जाना चाहते हैं। आपने साउथ सिनेमा से शुरुआत करके टीवी का रुख किया। ऐसा क्यों?
असल में, मैं ऐसी लड़की हूं, जिसे सामने से जो अच्छा मौका मिला, मैं उसको ले लेती हूं। मैं बहुत वर्कोहॉलिक हूं। मैं किसी चीज का इंतजार नहीं करती कि मुझे यह मिलेगा तो ही मैं करूंगी। मुझे लगता है कि जो अच्छा काम मिले, कर लो। मैंने साउथ की कई सारी फिल्में कीं, लेकिन बीच में मैंने दो साल का ब्रेक लिया। जब मैं वापस आई, तो मैं चाहती थी कि अपने हिंदीभाषी क्षेत्र में पहचानी जाऊं। मैं यूपी के बनारस से हूं, तो अपने लोगों के बीच पहचानी जाऊं और घर-घर तक पहुंचने का सबसे अच्छा माध्यम टीवी है। साउथ की फिल्में लोगों के घरों तक नहीं पहुंचतीं, पर टीवी पहुंचता है। इसलिए, मैं चाहती थी कि टीवी में आऊं और मुझे ‘ये है मोहब्बतें’ जैसे बड़े मशहूर शो में ब्रेक मिला। उसके बाद तो कुछ न कुछ मिलता चला गया।


‘अनीता भाभी’ के रूप में लोगों ने सौम्या टंडन को बेहद प्यार दिया और ऐसे चर्चित किरदार को रिप्लेस करना बड़ी चुनौती होती है। जैसे, नेहा पेंडसे को दर्शक उस तरह नहीं स्वीकार पाए, आप इसे कितनी बड़ी जिम्मेदारी मानती हैं?
बिल्कुल, मैं भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी महसूस कर रही हूं, पर मैं प्रेशर नहीं महसूस कर रही हूं। मुझे लगता है कि कहीं न कहीं मैं अनीता भाभी के किरदार के साथ न्याय कर पाऊंगी। अभी तक मुझे जो प्रतिक्रिया मिली है, लोगों से या सोशल मीडिया पर, यहां तक कि मेरे कोस्टार्स रोहिताश्व जी, आसिफ जी, शुभांगी जी, सब बहुत खुश हैं, तो बेशक मेरे कंधे पर जिम्मेदारी है, लेकिन मुझे भरोसा है कि मैं अच्छे से यह जिम्मेदारी निभा पाऊंगी और दर्शकों का उतना ही प्यार बटोर पाऊंगी, जो अब तक अनीता ने बटोरा है।

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आपकी क्या स्ट्रैटिजी रहेगी कि लोग सौम्या को भूलकर आपको अनीता के रूप में अपना लें?
(हंसकर) मैं नहीं चाहूंगी कि कोई किसी को भूले। मैं बस यह चाहूंगी कि अनीता का किरदार जैसे आज तक यादगार रहा है, वैसे ही आगे भी यादगार रहे। मैं नहीं चाहूंगी कि किसी ऐक्टर के बदल जाने से अनीता का किरदार किसी को कमतर लगने लगे। बाकी, मेरी कोशिश यह है कि मैं विदिशा के तौर पर अनीता को निभाऊं। हर ऐक्टर का अपना एक अंदाज होता है, सौम्या जी ने निश्चित तौर पर एक बेंचमार्क सेट किया हुआ है, लेकिन मैं अपना एक अंदाज डालूंगी। अनीता का जो कैरेक्टर है, वो वही रहेगा, लेकिन एक नयापन भी रहेगा। उसमें मेरा एक फ्लेवर रहेगा, जो मुझे उम्मीद है कि सबको पसंद आएगा।

सीरियल में तिवारी जी या विभूति का जो किरदार है कि घर में इतनी हसीन-जहीन बीवी है, पर पड़ोसी की बीवी पर नजर गड़ाए रखते हैं। समाज में भी कई बार ऐसा देखने को मिलता है। क्या आपको ये सेक्सिस्ट सोच नहीं लगती?
देखिए, टीवी शोज कहीं न कहीं हमारे समाज का ही आइना होते हैं। हमारे छोटे शहरों में जो चीजें होती हैं, उसे हल्के-फुल्के ढंग से दिखाया जाता है। मेरा मानना है कि लोगों को टीवी या फिल्म को एंटरटेनमेंट की तरह लेना चाहिए। इसे सीरियसली नहीं लेना चाहिए। वो कॉमिडी है। केवल आपको हंसाने के लिए है। हां, कभी-कभी लोग इसे सीरियसली ले लेते हैं और अपनी जिंदगी में भी उतारते हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि ये हल्की-फुल्की चीजें हैं। इसे देखो, मजे लो और भूल जाओ। बाकी, अपनी-अपनी जिंदगी में रम जाओ। अपनी-अपनी बीवियों के पास रहो (हंसती हैं)।

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बनारस की ये लड़की मायानगरी तक कैसे पहुंची? और इस सफर में संघर्ष कितना करना पड़ा?
मैं तो इसे किस्मत ही कहूंगी। बनारस में थी, ठीकठाक दिखती थी तो दोस्त वगैरह कहने लगे कि मुझे ऐक्टिंग में हाथ आजमाना चाहिए। फिर, कुछ ब्यूटी कॉन्टेस्ट किए और जीत गई। फिर, यहां से एक मेकर गए थे, उन्होंने ऑफर दिया और मैं यहां आ गई, लेकिन छोटे शहर से होने के नाते संघर्ष तो करना ही पड़ा। हालांकि, परिवार के सपोर्ट के मामले में मैं खुशकिस्मत रही हूं। भले ही मेरे दूर के रिश्तेदारों ने सवाल उठाए, लेकिन मेरे पैरंट्स ने पूरा सपोर्ट किया। इसलिए, मैं प्रोटेक्टेड रही। दिक्कत यह थी कि मैं किसी को जानती नहीं थी। मुझे नहीं पता था कि किससे मिलना है। मुझे खुद को प्रेजेंट करना नहीं आता था। मैं बनारस की लड़की थी, मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि कैसे सजना-संवरना होता है, कैसे बात करनी चाहिए। मेरी ग्रूमिंग नहीं थी, क्योंकि मैं बहुत छोटी उम्र में ही आ गई थी। तब ग्रेजुएशन भी पूरा नहीं किया हुआ था। मैंने यहां से जाकर एग्जाम दिए हैं तो ये स्ट्रगल रहा, लेकिन अगर आप कास्टिंग काउच की बात करो या ऐसी किसी चीज का मुझे सामना नहीं करना पड़ा।



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