अविश्वास प्रस्ताव: आखिर ऐसा क्या हुआ कि इमरान के पड़ रहे कुर्सी बचाने के लाले, क्यों सेना ने भी छोड़ दिया साथ, जानें


सार

कुछ महीने पहले तक यह तय था कि इमरान खान अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। 2018 में जब देश में उन्हें भ्रष्टाचार खत्म करने और लोगों के जीवन में बदलाव करने के वादों पर जीत मिली तो उम्मीद यही थी कि इमरान अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पाकिस्तान के पहले पीएम होंगे। हालांकि, पिछले डेढ़ साल के घटनाक्रमों ने इमरान की कुर्सी पर खतरा पैदा कर दिया है।

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की कुर्सी खतरे में आ गई है। दरअसल, विपक्ष ने उनके खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिससे पार पाना इमरान के लिए काफी मुश्किल साबित होने वाला है। संसद में सहयोगियों की स्थिति पर गौर किया जाए तो सामने आता है कि इमरान सरकार इस वक्त अल्पमत में है। हालांकि, रविवार को इस्लामाबाद में हुई रैली में उन्होंने रूठे हुए साथियों को मनाने के लिए कई अपील कीं। इस बीच अब तक यह साफ नहीं है कि आखिर क्यों एक साल पहले तक देश में पूरी तरह सुरक्षित नजर आ रही पीटीआई सरकार इस स्थिति में पहुंच गई। 2018 में तो कई राजनीतिक विश्लेषकों का यहां तक मानना था कि इमरान खान की सरकार देश की पहली ऐसी सरकार होगी, जो अपना कार्यकाल पूरा करेगी। हालांकि, इस अविश्वास प्रस्ताव ने पीएम की चिंताएं बढ़ा दी हैं। 
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की मुसीबतें कोई हालिया घटनाक्रमों की वजह से नहीं बढ़ी हैं। वह इस स्थिति में कैसे पहुंचे यह जानने के लिए हमें करीब डेढ़ साल पीछे जाना होगा। तारीख थी 20 सितंबर 2020 यानी वह वक्त जब पूरी दुनिया कोरोनावायरस से बुरी तरह प्रभावित थी। तब इमरान सरकार पर भी देश में बदइंतजामी और लॉकडाउन न लगाने के आरोप लग रहे थे। यही वह समय था, जब विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता बिलावल भुट्टो जरदारी ने इमरान सरकार को हटाने के लिए पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के साथ संयुक्त विपक्ष के तौर पर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के गठन का एलान किया। इस मौके पर गठबंधन में शामिल जमीयत उलेमा-ए-इस्लामी के प्रमुख फजल-उर-रहमान ने गठबंधन के 26 पॉइंट्स के प्रस्ताव का एलान किया। इस गठबंधन में कई छोटी पार्टियां भी शामिल हैं। 
कुछ महीने पहले तक यह तय था कि इमरान खान अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। 2018 में जब देश में उन्हें भ्रष्टाचार खत्म करने और लोगों के जीवन में बदलाव करने के वादों पर जीत मिली तो उम्मीद यही थी कि इमरान अपना कार्यकाल पूरा करने वाले पाकिस्तान के पहले पीएम होंगे। हालांकि, विपक्षी पार्टियों ने इमरान पर आरोप लगाए कि उन्होंने यह जीत देश की सेना की मदद से हासिल की। इन आरोपों का सिलसिला लगातार जारी रहा है। ऐसा माना भी जाता है कि सेना की तरफ से इमरान खान को सुधारों के लिए काफी समर्थन मिला। सेना भी पहली बार इमरान के साथ पारंपरिक राजनीति को बदलने में सहयोग करती नजर आई। 
लेकिन सेना के समर्थन के बावजूद इमरान सरकार के लिए अपने वादे निभाना काफी मुश्किल साबित हुआ है। खासकर सामाजिक असमानता और गरीबी के मुद्दे पर पीटीआई सरकार फेल साबित हुई। इमरान के पिछले तीन साल के कार्यकाल में पाकिस्तान में महंगाई दर दो अंकों में ही रही। जबकि दुनिया के सबसे युवा देशों में शुमार पाकिस्तान का आर्थिक विकास दर भी महज 3.5 प्रतिशत पर ही थम गई। पाकिस्तान आर्थिक तौर पर कितना पिछड़ गया, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगस्त 2018 में इमरान सरकार बनने से ठीक पहले डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये की कीमत 123 थी, जबकि अब एक डॉलर की कीमत 183 पाकिस्तानी रुपये है। यानी इमरान के पीएम रहते पाकिस्तानी रुपये की वैल्यू 33 फीसदी यानी एक-तिहाई तक गिर गई है। 

एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने अकेले कोरोनावायरस महामारी के दौर में ही 10 अरब डॉलर यानी 1.83 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये का कर्ज ले लिया। इमरान का देश में आर्थिक सुधार न कर पाने का उल्टा असर उनके बाकी वादों पर भी पड़ा। जैसे उनका एक करोड़ नई नौकरियों को पैदा करने का वादा अब तक अधूरा है। इन स्थितियों को बदलने के बजाय इमरान अब तक अपने वित्त मंत्री को ही चार बार बदल चुके हैं। दूसरी तरफ आतंकवाद को न खत्म कर पाने की वजह से आतंकरोधी संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों ने भी पाकिस्तान में विदेशी कंपनियों की ओर से निवेश में भारी कमी आई है। 
इमरान ने राजनीति में उतरने के साथ ही पाकिस्तान को भ्रष्टाचार मुक्त करने का वादा किया था। 2018 का चुनाव भी उन्होंने ऐसे ही कुछ वादों के जरिए जीता। उनकी पार्टी पीटीआई ने 30 वर्षों तक पाकिस्तान पर राज करने वाले भुट्टो-जरदारी और शरीफ परिवार को देश की परेशानियों का जिम्मेदार ठहराया। उन पर पाकिस्तान का पैसा विदेश ले जाने से लेकर अपनी संपत्तियां बढ़ाने के भी आरोप लगाए। हालांकि, खुद सरकार में आने के बाद से इमरान खान अब तक जिनकी खिलाफत कर रहे थे, उन्हें सजा नहीं दिला पाए हैं। 

इमरान ने विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार का पता लगाने और उन पर नकेल कसने की जिम्मेदारी नवगठित सर्वशक्तिमान नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) को दी। इस संस्थान के पास अभूतपूर्व ताकतें दी गईं और नैब की पहली दो बैठकों के बाद दो प्रांतीय मंत्रियों की गिरफ्तारी भी हो गई। इसके अलावा विपक्षी दल के नेताओं पर लगे आरोपों की सघन जांच शुरू की गई, जिसके बाद इस्तीफों का एक दौर शुरू हुआ। चौंकाने वाली बात यह है कि साढ़े तीन साल लंबे चले भ्रष्टाचार रोधी अभियान के बावजूद इमरान खान अब तक किसी बड़े नेता को सजा दिलाने में सफल नहीं हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, जिन्हें कुछ समय पहले ही सजा सुनाई गईं, उनके खिलाफ भी केस की सुनवाई इमरान के पीएम बनने से पहले ही हो गई थी। यानी इमरान भ्रष्ट नेताओं को सजा दिलाने तो दूर उन पर आरोप साबित करने में भी फेल हो गए। 

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस कदम से खुद उन्हें तो राजनीतिक तौर पर कोई खास फायदा नहीं मिला, लेकिन इससे विपक्ष के बीच एक संदेश जरूर गया- या तो साथ आकर इमरान सरकार को हटाने के लिए काम शुरू कर दो या अलग-अलग होकर सत्ता की साजिशों का शिकार हो जाओ। पीपीपी और पीएमएल-एन ने इसके बाद अपनी लगभग सभी योजनाओं को एक-दूसरे को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ाया है। दोनों पार्टियों की इस एकजुटता का नुकसान भी इमरान को ही हुआ है, क्योंकि संसद में विपक्ष की वजह से ही इमरान ‘सख्त कानूनों’ को पास कराने में सफल नहीं हो पाए। पीटीआई सरकार ने इस दौरान कई नियमों को लागू करने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया, लेकिन इन अध्यादेशों की भी एक समय सीमा होने के कारण इमरान को भारी नुकसान पहुंचा। 
पाकिस्तान के करीब 75 साल के इतिहास में सेना के किसी न किसी प्रमुख ने 33 साल तक सत्ता पर कब्जा रखा। इनमें जनरल अयूब खान से लेकर जनरल जिया-उल-हक और परवेज मुशर्रफ तक के नाम शामिल रहे। यहां तक कि पाकिस्तान में जब कभी भी कथित लोकतांत्रिक सरकार बनी, तब उसके पीछ सेना का मजबूत हाथ होने की बात किसी से छिपी नहीं। विपक्ष भी लगातार आरोप लगाता रहा है कि इमरान खान को जीत दिलाने और फिर उनकी सरकार बचाने में सेना ने अहम भूमिका निभाई। इमरान ने भी कार्यकाल के शुरुआती दो साल में सेना की शह पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया। लेकिन उनके कदमों के अप्रभावी होने और चीन-समर्थक नीति के कारण एक समय के बाद सेना ने भी उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया। 

इसका पहली बार खुलासा पिछले साल अक्तूबर में हुआ। सरकार और सेना के बीच पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर विवाद सार्वजनिक हो गया और नए आईएसआई चीफ का नाम लगभग तीन हफ्ते तक पीएम कार्यालय में ही अटका रहा। यह वह दौर था, जब लगभग हर दिन सरकार से आईएसआई चीफ की नियुक्ति पर सवाल पूछे जाते और इमरान इन सवालों से बचकर निकल जाते। वैसे तो आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की होती है, लेकिन इसकी इजाजत भी पारंपरिक तौर पर सेना प्रमुख से ही ली जाती रही है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इमरान खान ने इस पद पर अपने वफादार फैज हमीद को ही कायम रखना चाहते थे, जबकि सेना प्रोटोकॉल के तहत इस पद के लिए लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम की नियुक्ति के पक्ष में थी। कहा जाता है कि इसी विवाद के बीच इमरान खान ने सेना के आदेश को टालने और अपनी मर्जी चलाने की कोशिश की। यहां से पहली बार इमरान सरकार और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच विवाद खुलकर सामने आ गए।  अब स्थिति यह है कि पाकिस्तान के पीएम के खिलाफ लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव पर सेना प्रमुख का कहना कि वे इस मामले में निष्पक्ष रहेंगे। यानी अब पाक सेना ने भी इमरान सरकार को सुरक्षित न करने का इशारा स्पष्ट कर दिया है।
पाकिस्तान में हुए 2018 के चुनाव में 342 सीटों वाली नेशनल असेंबली में इमरान की पार्टी को 155 सीटें मिलीं। यानी बहुमत के जादुई आंकड़े 172 से 16 कम। इस दौरान पीटीआई को सरकार बनाने में साथ मिला छोटी-छोटी पार्टियों का। इन छोटी-छोटी पार्टियों और निर्दलीय सांसदों का समर्थन लाने में इमरान के एक सहयोगी जहांगीर तरीर की बड़ी भूमिका रही थी। कहा जाता था कि तरीर अपने विमान भर-भरकर इमरान के लिए समर्थन जुटाने में लगे रहे। हालांकि, बीते सालों में राजनीति में यह कानाफूसी शुरू हो गई कि जहांगीर तरीर खुद को उप-प्रधानमंत्री मानने लगे हैं और वे जल्द ही इमरान खान से कोई बड़ी मांग कर सकते हैं। इसकी भनक लगते ही इमरान खान ने जहांगीर तरीर को किनारे लगाना शुरू कर दिया। खुद तरीर भी इमरान से दूरी बनाते हुए अलग हो गए। 

इसका असर यह हुआ कि जहां पहले इमरान की मुश्किलें सुलझाने के लिए उनके साथ जहांगीर तरीर जैसा एक विश्वसनीय नाम साथ था, वहीं अब वे विपक्ष की मोर्चाबंदी के खिलाफ अकेले पड़ गए हैं। इतना ही नहीं मौके की नजाकत को समझते हुए खुद जहांगीर तरीर भी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के साथ ही हो गए हैं। तरीर ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ में भी सेंध लगाना शुरू कर दिया है और अपने लाए सांसदों का समर्थन विपक्ष की तरफ ले गए हैं। इसके अलावा शुरुआत में इमरान का समर्थन करने वाली मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी), पाकिस्तान मुस्लिम लीग-कायद और बलूचिस्तान आवामी पार्टी (बीएपी) अविश्वास प्रस्ताव पर पीटीआई के खिलाफ जाने की बात कह चुकी हैं। 
 
इमरान खान के पाकिस्तान की सत्ता में आने के साथ ही विपक्ष को निशाना बनाना शुरू कर दिया। अपने इसी सख्त रवैये की वजह से उन्होंने संसद में भी कभी विधेयक पास कराने के लिए विपक्षी पार्टियों से चर्चा नहीं की। यहां तक कि पिछले साढ़े तीन साल में संसद में इमरान की उपस्थिति के आंकड़े ही निकाले जाएं तो सामने आता है कि वे संसद की सिर्फ 10 फीसदी बैठकों में ही शामिल हुए। यहां तक कि वे नेता प्रतिपक्ष तक से नहीं मिले। जब उन्हें विपक्ष के साथ सुलह की सलाह दी जाती तो इमरान सरेआम विपक्षी नेताओं के लिए कहते कि इन चोरों, डाकुओं और देश का खजाना लूटने वालों से मैं क्या बात करूं। इसका असर यह हुआ कि सुधार के लिए बनने वाले कई कानून अटके रहे और संसद के सत्र तनाव में ही खत्म होते रहे। 

इमरान खान की राजनीतिक समझ में कमी का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को चिढ़ाने के लिए तरह-तरह के नामों का इस्तेमाल करते हैं। मसलन फजल-उर-रहमान के लिए डीजल, बिलावल भुट्टो जरदारी के लिए टांगे कांपने वाला और मरियम नवाज को मरियम बीबी बुलाते सुने जाते हैं। हाल ही में जब विपक्ष ने पहली बार इमरान को अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की धमकी दी थी तो पीएम ने कहा था कि वे संसद के बाहर अपने 10 लाख समर्थक खड़े कर देंगे और फिर देखेंगे कि कौन-कौन अंदर जाता है।

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की कुर्सी खतरे में आ गई है। दरअसल, विपक्ष ने उनके खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिससे पार पाना इमरान के लिए काफी मुश्किल साबित होने वाला है। संसद में सहयोगियों की स्थिति पर गौर किया जाए तो सामने आता है कि इमरान सरकार इस वक्त अल्पमत में है। हालांकि, रविवार को इस्लामाबाद में हुई रैली में उन्होंने रूठे हुए साथियों को मनाने के लिए कई अपील कीं। इस बीच अब तक यह साफ नहीं है कि आखिर क्यों एक साल पहले तक देश में पूरी तरह सुरक्षित नजर आ रही पीटीआई सरकार इस स्थिति में पहुंच गई। 2018 में तो कई राजनीतिक विश्लेषकों का यहां तक मानना था कि इमरान खान की सरकार देश की पहली ऐसी सरकार होगी, जो अपना कार्यकाल पूरा करेगी। हालांकि, इस अविश्वास प्रस्ताव ने पीएम की चिंताएं बढ़ा दी हैं। 



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