NSE Scam : बड़ा खुलासा, SEBI के ऑर्डर से ठीक पहले विदेशी निवेशकों ने चली ये चाल, एक्‍सचेंज को लगा झटका


नई दिल्‍ली. नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज (NSE) पर को-लोकेशन मामले में हुए फर्जीवाड़े को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. NSE की वेबसाइट के मुताबिक, फरवरी में NSE की पूर्व एमडी एवं सीईओ चित्रा रामकृष्‍ण के खिलाफ बाजार नियामक सेबी (SEBI) की कार्रवाई से ठीक पहले एक्‍सचेंज पर बड़ी हलचल दिखी थी.

एक्‍सपर्ट का कहना है कि सेबी के ऑर्डर से ठीक पहले विदेशी निवेशकों ने बड़ी संख्‍या में अपने शेयर घरेलू निवेशकों को बेचे थे. इस दौरान हुए 209 ट्रांजेक्‍शंस में से करीब 35 फीसदी विदेशी निवेशकों के थे, जिनमें घरेलू निवेशकों को शेयर बेचे गए. इस दौरान कुल 11.61 लाख शेयरों की बिक्री विदेशी निवेशकों की थी. इनका मूल्‍य 1,650 रुपये से 2,800 रुपये के बीच था.

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जनवरी में सबसे ज्‍यादा थे शेयरों के दाम
NSE के शेयरों के दाम जनवरी में सबसे ज्‍यादा 3,650 रुपये के भाव पर थे, लेकिन अनलिस्‍टेड होने के बाद से उसके स्‍टॉक में ज्‍यादा एक्टिविटी नहीं दिख रही. इससे लगता है कि जनवरी में विदेशी निवेशकों की ओर से हुई बिकवाली किसी संकट का संकेत है, क्‍योंकि दिसंबर में इसी तरह के लगभग 50 फीसदी लेनदेन 2,000 रुपये प्रति शेयर से अधिक की कीमत पर हुए थे. इनमें से कुछ 2,800 रुपये प्रति शेयर के भाव पर भी थे.

2021 में नहीं दिखा था ऐसा नजारा
एक्‍सपर्ट का कहना है कि इससे पहले NSE शेयरों की इस तरह बड़ी बिकवाली सितंबर में दिखी थी, लेकिन वह घरेलू निवेशकों के बीच हुई थी. इसे छोड़ दिया जाए तो 2021 में किसी भी महीने में 100 से ज्‍यादा ट्रांजेक्‍शन नहीं देखे गए. ऐसे में जनवरी में हुई इस बड़ी बिकवाली से कई तरह के सवाल खड़े होते हैं.

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कई बड़े निवेशक पूरी तरह बाहर
NSE भी खुद को बाजार में लिस्‍ट कराने की दौड़ में शामिल है, जिसे फिलहाल अपना प्‍लान टालना पड़ा है. इस बीच सिटीग्रुप, गोल्डमैन सैक्स और नॉरवेस्ट वेंचर पार्टनर्स जैसे प्रमुख विदेशी निवेशक वित्‍तवर्ष 2021-22 की समाप्ति से पहले ही NSE से पूरी तरह बाहर हो गए हैं. सैफ कैपिटल जैसे कुछ बड़े निवेशकों ने अपनी हिस्‍सेदारी भी घटा दी है.

IPO में हो रही देरी है सबसे बड़ा कारण
NSE के शेयरों में विदेशी निवेशकों की हिस्‍सेदारी घटने का सबसे बड़ा कारण एक्‍सचेंज के IPO में हो रही देरी है. लेकिन, अधिकतर बाजार विश्‍लेषकों का कहना है कि जनवरी में हुई भारी बिकवाली इस कारण से इतर भी इशारा कर रही है. कुछ दिग्‍गजों का ये भी कहना है कि बिक्री को को-लोकेशन विवाद से जोड़ा जा सकता है जिसने साल 2015 से NSE को लगातार प्रभावित किया है.

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लगातार घट रही संस्‍थागत निवेशकों की हिस्‍सेदारी
संस्‍थागत निवेशक (Institutional investors) NSE पर अपनी हिस्‍सेदारी लगातार घटा रहे, जबकि रिटेल इन्‍वेस्‍टर्स की हिस्‍सेदारी बढ़ रही है. वित्‍तवर्ष 2011-12 जहां NSE पर संस्‍थागत निवेशकों की हिस्‍सेदारी 87 फीसदी थी, वहीं अब ये घटकर 50 फीसदी नीचे आ गई है. NSE के शेयरों के भाव भी जून, 2020 के 1,000 रुपये से दोगुना बढ़ चुके हैं. विश्‍लेषक इसके 3,000 तक जाने का अनुमान लगा रहे हैं.

Tags: NSE, Scam

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