OMG: पिता-पुत्र की अनोखी जोड़ी; एक ही टीम, एक ही पोजीशन, हर मैच में एकदूसरे को करते हैं रिप्लेस


खेलों की दुनिया बेहद दिलचस्प है, यहां न जाने कितने कीर्तिमान बनते हैं, टूटते हैं. इस दुनिया का अपना रोमांच है, यही वजह है कि समाज का एक बहुत बड़ा तबका खेलों से जुड़ा हुआ है. आज जिस पहलू का जिक्र हम करने जा रहे है, उसकी बानगी अब तक के खेल इतिहास में बिरले ही मिलती है. दुनिया में भी इस तरह के गिने चुने मामले ही हैं.

हम बात कर रहे हैं पिता-पुत्र के एक ही टीम से खेलने की. अलग-अलग समय में पिता-पुत्र के एक ही टीम से खेलने के मामले तो आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन एक टीम से, एक ही समय पर एक ही पोजीशन से खेलना. मजेदार बात यह कि इस पोजीशन से एक समय पर एक ही खिलाड़ी खेल सकता है. यानी जब पिता खेलेगा तो पुत्र बेंच पर बैठेगा. जब पुत्र मुकाबले में उतरेगा तो पिता को रिप्लेस करेगा…

अपने देश में विभिन्न खेलों में हमने दो भाइयों को एक साथ खेलते देखा, बहने भी कई बार अपने भाइयों के समकालीन उसी खेल में या किसी अन्य खेल में शिरकत करती देखी गईं. मां-बेटे और बाप-बेटे एक साथ तो नहीं, लेकिन आगे पीछे किसी स्थापित खेल में या उससे अलग किसी खेल में शीर्ष स्तर पर खेलते देखे गए.

हाल ही में, भारतीय हॉकी टीम की पूर्व कप्तान प्रीतम सिवाच के बेटे यशदीप ने देश के लिए हॉकी में ही जूनियर वर्ल्ड कप में शिरकत की, तो मां बेटे की यह जोड़ी सुर्खियों में आ गई. क्रिकेट में सुरिंदर अमरनाथ ने सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में डेब्यू किया था, और 1963 में उसी फर्स्ट क्लास मैच में लाला अमरनाथ सामने वाली टीम से खेल रहे थे.

लाला जी की उम्र उस समय 52 साल थी. अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट में भी बहुत पहले इस तरह के उदाहरण मिलते हैं. आधुनिक क्रिकेट में 1996 में डेनिस और हीथ स्ट्रीक ने यह कारनामा किया था. इंटरनेशनल स्तर पर फुटबॉल, बेसबॉल, बास्केटबाल में इस तरह के कुछ मामले हैं, लेकिन भारत में प्रचलित और लोकप्रिय खेलों में इस तरह की बानगी न के बराबर है.

लोकप्रियता के शिखर पर मौजूद एनबीए में, कोबी ब्रायंट को कौन नहीं जानता, पिछले ही साल एक विमान दुर्घटना में दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से उनकी मौत हो गई, और समूची दुनिया स्तब्ध सी रह गई थी. उनके पिता जो ब्रायन्ट भी तीन अलग अलग टीमों के लिए खेल चुके थे. पिता पुत्र की अनगिनत जोड़ियां हैं एनबीए में, लेकिन जो ब्रायंट ने 1992 में खेलना छोड़ा और कोबी 1996 से एनबीए में शामिल हुए.

यानी पिता-पुत्र एक साथ खेलने का गौरव सिर्फ चार साल के फासले से चूक गए. बेसबाल लीग में ही केन ग्रिफी और उनके पिता केन ग्रिफी सीनियर 1990 में सिएटल मैरिनर्स के लिए एक साथ खेले. बहरहाल आज जिस बात का जिक्र हम करने जा रहे हैं, वह नायाब है.

पिता पुत्र की यह जोड़ी एक ही खेल में शिरकत कर रही है, एक ही टीम में शामिल है, और दोनों की पोजीशन भी एक ही है. यानी किसी भी मैच में एक ही शामिल होगा, और दूसरे को बाहर बैठना होगा. दिलचस्प यह की जो बाहर बैठेगा उसे बुरा नहीं लगेगा, क्योंकि उसका अपना खून उसकी जगह मैदान के अंदर होगा.

प्रो कबड्डी के आठवें सीजन में दबंग दिल्ली के लेफ्ट कॉर्नर पर नजर रखिएगा. या तो 8 नम्बर की जर्सी पहने जोगिंदर नरवाल होंगे या फिर 88 नंबर की जर्सी के साथ उनके बेटे विनय होंगे. बाप बेटे की जोड़ी सचमुच नायाब है. जोगिंदर की उम्र अभी 39 साल है और बेटा विनय 19 का है. कम उम्र में शादी हुई, और बेटा वक्त से पहले जवान हो गया.

कबड्डी का खेल बाल जीवन घुट्टी की तरह ही जन्म से साथ था. कसबाई मानसिकता के परिवेश में किसी जमाने में कबड्डी खेल के साथ ही एक मनोरंजन का साधन हुआ करता था. हरियाणा के सोनीपत जिले के रिनधाना में जोगिंदर के परिवार में कबड्डी बसती  थी. उनके बड़े भाई सुरिंदर किसी जमाने में भारतीय कबड्डी का नाम हुआ करते थे. बचपन से ही विनय कबड्डी के प्रति आकर्षित हो चुका था, ताऊ और पिता जी तो पहले ही कबड्डी में थे.

हालांकि, बाप और बेटे के एक ही टीम में रहने से और एक साथ खेलने से कुछ परेशानियां भी हो सकती है, लेकिन जोगिंदर ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है की बेटा टीम में अपने दोस्तों के साथ रहता है, मै अपने दोस्तों के साथ रहता हूं. कोच को जब कुछ कहना या समझाना होता है तब यह नहीं देखा जाता कि किसी को कुछ कहने पर अगले को बुरा लग सकता है.

जोगिंदर कहते हैं कि बेटा अभी बीए की पढ़ाई कर रहा है, कबड्डी का जुनून है, बस खाता है और खेलता है. जोगिंदर बहुत पहले से जर्सी नंबर आठ पहनते हैं, बाप शेर तो बेटा सवा शेर की तर्ज पर बेटे ने 88 नंबर पसंद कर लिया. विनय को अभी बहुत कुछ सीखना है और वह अपने पिता के हर दांव पर, हर तकनीक पर नजदीक नजर रखता है.

पिता से सीखने के लिए तो ज़िंदगी होती है, लेकिन खेल भी उन्ही से सीख लिया जाए तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है. विनय का कल ही जन्म दिन भी था, तो अपनी तरफ से शुभकामना देने का भला और बेहतर मौका क्या हो सकता है.

क्रिकेट और बाकी खेलों में हमने भाइयों और बाप बेटे की जोड़ी के बारे में हमेंशा बहुत कुछ सुना है, लेकिन अपनी मिट्टी से जुडे खेल में भी इस तरह के उदाहरण मौजूद हैं. शुरुआती सीजन में राम कुमार साह और श्याम कुमार साह दो भाई खेलते थे, एक बंगाल वारियर्स के लिए तो दूसरा पटना पायरेट्स के लिए.

बंगाल के लिए ही नितिन मदने का शुमार एक बेहतरीन खिलाड़ी के तौर पर था, चोट के चलते उनका करियर लंबा नहीं चल सका. उनके भाई कृष्णा मदने भी तेलुगू टाइटन्स की ओर से प्रो कबड्डी लीग का हिस्सा रहे हैं. गुजरात जाएंट्स में वर्तमान में दो भाईयों की जोड़ियाँ एक साथ खेल रही हैं.

चार के चारों डिफेंस में खेलते हैं और जाहिर है कि इन सबका रिश्ता सिर्फ एक गाँव- भैंसवाल से है. कप्तान सुनील के भाई सुमित भी उन्ही की तरह एक शानदार डिफेंडर हैं. सुनील राइट कवर खेलते हैं तो सुमित लेफ्ट कॉर्नर. किसी भी राइट रेडर को टैकल करने के लिए यही कारगर कॉमबीनेशन भी है.

उधर परवेश भैंसवाल टीम के मजबूत कवर हैं तो उनके भाई अंकित कॉरनर की पोजीशन से खेलते हैं. है न मजेदार बात! इन पर चर्चा कभी बाद में होगी. हाँ कबड्डी के चाहने वाले धरमराज चेरलाथन का नाम तो जानते ही होंगे. 46 वर्ष की उम्र में चेरलाथन लीग के सबसे उम्रदराज खिलाड़ी हैं लेकिन अब भी उनकी चुस्ती फुर्ती में कहीं कोई कमी नहीं है.

चेरलाथन के भाई डी गोपू पिछले सीजन तक तमिल तलाईवास के लिए खेला करते थे. सिद्धार्थ देसाई और सूरज देसाई भी तमिल तलाईवाज़ के लिए खेलते रहे हैं.

खेल और खिलाड़ियों के रिश्ते आम तौर पर लोगों की दिलचस्पी की वजह बनते हैं. उम्मीद है कि कबड्डी से जुड़े यह कुछ उदाहरण आपको पसंद आए होंगे.

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