उज्जैन: महाशिवरात्रि पर रात्रि में हुई महापूजा, सुबह महाकाल को सजाया सवा मन फूलों का सेहरा, दोपहर में हुई भस्मारती


महाशिवरात्रि पर महाकाल के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचे। देर रात को महापूजा की गई। भगवान महाकाल को सवा मन फूलों का सेहरा सजाया।  सुबह सप्त धान्य अर्पण किए गए थे। महाशिवरात्रि के अगले दिन भस्मारती दोपहर 12 बजे हुई। साल में एक बार ही ऐसा होता है जब तड़के की जाने वाली भस्मारती दोपहर में होती है।

 


दरअसल, महाशिवरात्रि पर महाकाल की नगरी में उत्साह और उल्लास छाया रहा। तड़के 3 बजे मंदिर के पट खोले गए थे, जिसके बाद भस्मारती हुई। इसके बाद आमजनों का प्रवेश शुरू हुआ और देर रात तक करीब पांच लाख से ज्यादा भक्तों ने महाकाल के दर्शन किए। शिवरात्रि की संध्या को ही उज्जैन दीपों की रोशनी से जगमगाया। शहर में 21 लाख दीप जलाए गए। शिप्रा नदी के विभिन्न घाटों पर 11 लाख से ज्यादा दीप जलाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सपत्नीक इस दीपोत्सव कार्यक्रम में शामिल हुए। उज्जैन का यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में दर्ज हुआ। इससे पहले यह रिकॉर्ड अयोध्या के नाम था जहां एक साथ नौ लाख से अधिक दीये जलाए गए थे।


सुबह हुए मुकुट के दर्शन, दोपहर में भस्मारती

बुधवार तड़के पुजारियों ने भगवान का अभिषेक पूजन कर बिल्व पत्र, कमल पुष्प, सप्तधान्य अर्पित किया। इसके बाद सवा मन फूल व फलों से बना पुष्प मुकुट (सेहरा) सजाया। भगवान को मिष्ठान, फल, सूखे मेवे का महाभोग लगाया और आरती की। बुधवार दोपहर 12 बजे महाकाल की भस्मारती हुई। साल में एक बार ऐसा होता है जब शिवरात्रि के अगले दिन दोपहर में भस्मारती होती है। बुधवार सुबह 6 बजे से 11 बजे तक भक्तों ने महाकाल के मुकुट के दर्शन किए। बाद में मुकुट उतारा गया और इसके फूलों का प्रसाद स्वरूप वितरित किया। बताया जाता है कि भगवान महाकाल के पुष्प मुकुट के फूल घर में रखने से संपन्नता बनी रहती है। जिन कन्याओं के मांगलिक कार्य में रुकावट आ रही है, वे  पुष्प मुकुट के फूलों को अपने पास रखें तो उनके विवाह के योग शीघ्र बन जाते हैं।


महानिशाकाल में हुई महापूजा

दीपोत्सव कार्यक्रम के बाद रात 11 बजे से महाकाल की महापूजा शुरू की गई। महानिशाकाल में यह पूजा हुआ। कोटितीर्थ कुंड के समीप स्थित कोटेश्वर महादेव की पूजा अर्चना के साथ महापूजा शुरू हुई। कोटेश्वर महादेव की पूजा के बाद मंगलवार रात 12 बजे से गर्भगृह में पूजन का क्रम शुरू हुआ। सबसे पहले पुजारियों ने भगवान महाकाल का पंचामृत, फलों के रस, सुगंधित द्रव्य से अभिषेक किया। इसके बाद भूशुद्धि, भूतशुद्धि पूजा की गई। शिव सहस्त्र नामावली से भगवान को सवा लाख बिल्व पत्र अर्पित किए गए। चंदन का लेपन कर सप्तधान्य का मुखारविंद धारण कराया गया तथा सात प्रकार के धान्य अर्पित किए गए। महाभोग लगाकर आरती की गई। 



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