भूपिंदर कौर ने बताया कि जब उन्होंने ट्रेन चलाना शुरू किया था, तब फिरोजपुर मंडल में एक भी महिला लोको पायलट नहीं थी। उनको ट्रेन चलाते देख आम लोग तो हैरान होते ही थे, कई बार महकमे के अधिकारी भी दंग रह जाते थे।
लुधियाना के गांव आलमगीर की रहने वालीं भूपिंदर कौर उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, जिनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा है। रेलवे में लोको पायलट भूपिंदर के इशारे पर आज रेलगाड़ी दौड़ती है। भूपिंदर ने कड़ी मेहनत से यह मुकाम पाया है।
भूपिंदर कौर का जन्म 10 मई, 1974 को लुधियाना के बीला गांव में हुआ था। पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। उसी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद भूपिंदर ने खालसा कॉलेज लुधियाना में दाखिला ले लिया। उनके मन में कुछ अलग करने का जुनून था, जिससे समाज में मान सम्मान और विशेष पहचान मिल सके।
स्नातक की पढ़ाई के साथ खेल के मैदान में उतरने का फैसला किया और कॉलेज की एथलेटिक्स टीम में शामिल हो गईं। उन्होंने खेल के मैदान में खूब पसीना बहाया और कुछ ही समय के भीतर धावक बन गईं। वह इंटर यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने लगीं। खेल में अच्छे प्रदर्शन की वजह से 1997 में भारतीय रेलवे में तकनीशियन की नौकरी मिल गई।
वह तकनीकी सूझबूझ के मामले में भी काफी आगे थी। इसी के चलते साल 2010 में तरक्की पाकर सहायक लोको पायलट बन गईं। भूपिंदर कौर ने ट्रेन दौड़ाना शुरू कर दिया। वर्ष 2016 में फिर से तरक्की मिली और वह लोको पायलट बन गईं। भूपिंदर कौर ने बताया कि समय और नियम की पाबंद होने की वजह से 24 साल की नौकरी में किसी तरह की कोई समस्या नहीं आई और सहकर्मियों से भी काफी कुछ सीखने को मिला।
मालगाड़ी से शुरू हुआ था ट्रेन चलाने का सफर
भूपिंदर कौर ने बताया कि उनका ट्रेन चलाने का सफर मालगाड़ी से शुरू हुआ था। वह पहली बार एक मालगाड़ी को लुधियाना से अजीतवाल तक लाई थीं। शुरूआत में मालगाड़ी चलाने के बाद उनको पैसेंजर ट्रेन पर लगाया गया। वह लुधियाना-फिरोजपुर-लुधियाना पैसेंजर ट्रेन चलाने लगीं।
पैसेंजर ट्रेन को चलाना बेहद ही रोमांचक था। ग्रामीण इलाकों के छोटे स्टेशन पर रोकना और लोगों को रोजमर्रा के कार्यों के लिए उनके गंत्वय तक पहुंचाना अच्छा लगता था। कई साल तक पैसेंजर ट्रेन चलाने के बाद उनकी ड्यूटी मोगा शताब्दी में लग गई। शताब्दी ट्रेन पर भी उन्होंने पूरी कुशलता से काम किया।
फिरोजपुर मंडल की पहली महिला लोको पायलट
भूपिंदर कौर ने बताया कि जब उन्होंने ट्रेन चलाना शुरू किया था, तब फिरोजपुर मंडल में एक भी महिला लोको पायलट नहीं थी। उनको ट्रेन चलाते देख आम लोग तो हैरान होते ही थे, कई बार महकमे के अधिकारी भी दंग रह जाते थे। उस समय उनको फिरोजपुर मंडल की पहली महिला लोको पायलट का खिताब मिला था। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय पर उनकी टीम में सात नई महिला लोको पायलट शामिल हुई हैं।
परिवार से मिलता है पूरा सहयोग
भूपिंदर कौर ने बताया कि उनकी कामयाबी के सफर में परिवार का बड़ा योगदान रहा है। पारिवारिक सदस्यों की तरफ से पूरा सहयोग मिलने की वजह से कभी कोई समस्या उनके रास्ते की अड़चन नहीं बनी। उनके पति भी पंजाब पुलिस में नौकरी करते हैं। उनके परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे की मजबूरी समझते हैं और सहयोग करते हैं। इसलिए उनको ड्यूटी दौरान किसी तरह की चिंता नहीं होती और वह बेफिक्र होकर अपनी ड्यूटी पर ध्यान देती हैं।
रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करती हैं माया, लज्जावती और सुषमा
परिवार चलाने की जिम्मेदारी अगर अकेली महिला के सिर पर आ जाए तो वह उसे बखूबी तरीके से निभा सकती है। माया, लज्जावती और सुषमा ने यह साबित कर दिखाया है। ये महिलाएं अपना पारिवारिक दायित्व निभाने के लिए पिछले कई वर्षों से लुधियाना स्टेशन पर कुली का काम कर रही हैं।
माया, लज्जावती और सुषमा ने बताया कि उनके सिर पर अपना परिवार चलाने की जिम्मेदारी थी लेकिन कम पढ़े-लिखे होने की वजह से कोई नौकरी नहीं मिल रही थी। घर के आर्थिक हालात खराब होने के कारण काम करना जरूरी था। इसलिए पूरी बहादुरी के साथ बुरे हालात का सामना किया और कुली बनकर यात्रियों का बोझ उठाना शुरू कर दिया। पहले कुछ दिन दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रिश्तेदार और करीबियों के ताने भी सुनने को मिले लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया। उन्होंने हालात के सामने घुटने नहीं टेके और परिवार के प्रति अपना दायित्व निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
जिस थाने में काम सीखा, वही थाना संभालती है अमनजीत कौर
पंजाब पुलिस में सिपाही के पद पर भर्ती अमनजीत कौर किसी जमाने में थाना जीआरपी लुधियाना में काम सीखती थीं। ड्यूटी के प्रति लगन और मन में कुछ सीखने की इच्छा ने उन्हें इतना सक्षम बनाया कि वह बिना फाइल खोले किसी भी मुकदमे का स्टेटस बता सकती हैं। कानून की हर धारा जुबानी याद है और महिलाओं से जुड़े आपराधिक मामले हल करने में बड़े बड़े अधिकारी उनकी मदद लेते हैं।
अमनजीत कौर ने बताया कि वह नानकसर तहसील के कोठेहारी गांव की रहने वाली हैं। वह बचपन से पुलिस में भर्ती होना चाहती थीं। डीएवी कॉलेज जगरांव से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद किस्मत ने साथ दिया और वह पंजाब पुलिस में सिपाही भर्ती हो गई। उनकी पहली पोस्टिंग लुधियाना के जीआरपी थाने में की गई।
कानूनी कार्य में निपुण होने के लिए उन्होंने हर फाइल को बारीकी से पढ़ना शुरू किया। धीरे-धीरे वह कानूनी प्रक्रिया में महिर होती गईं और कानून की धाराएं जुबानी याद होने लगीं। हेड कांस्टेबल बनने के बाद उन्होंने थाने का रिकॉर्ड संभाल लिया और हर मुकदमे की जानकारी को जुबानी याद रखने लगीं। 10 साल की मेहनत ने उन्हें इतना सक्षम बनाया कि वह जिस थाने में काम सीखती थी, उसी थाने की सहायक मुंशी बनकर सारा कामकाज संभाल रही हैं।
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लुधियाना के गांव आलमगीर की रहने वालीं भूपिंदर कौर उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं, जिनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा है। रेलवे में लोको पायलट भूपिंदर के इशारे पर आज रेलगाड़ी दौड़ती है। भूपिंदर ने कड़ी मेहनत से यह मुकाम पाया है।
भूपिंदर कौर का जन्म 10 मई, 1974 को लुधियाना के बीला गांव में हुआ था। पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक थे। उसी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद भूपिंदर ने खालसा कॉलेज लुधियाना में दाखिला ले लिया। उनके मन में कुछ अलग करने का जुनून था, जिससे समाज में मान सम्मान और विशेष पहचान मिल सके।
स्नातक की पढ़ाई के साथ खेल के मैदान में उतरने का फैसला किया और कॉलेज की एथलेटिक्स टीम में शामिल हो गईं। उन्होंने खेल के मैदान में खूब पसीना बहाया और कुछ ही समय के भीतर धावक बन गईं। वह इंटर यूनिवर्सिटी और राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने लगीं। खेल में अच्छे प्रदर्शन की वजह से 1997 में भारतीय रेलवे में तकनीशियन की नौकरी मिल गई।
वह तकनीकी सूझबूझ के मामले में भी काफी आगे थी। इसी के चलते साल 2010 में तरक्की पाकर सहायक लोको पायलट बन गईं। भूपिंदर कौर ने ट्रेन दौड़ाना शुरू कर दिया। वर्ष 2016 में फिर से तरक्की मिली और वह लोको पायलट बन गईं। भूपिंदर कौर ने बताया कि समय और नियम की पाबंद होने की वजह से 24 साल की नौकरी में किसी तरह की कोई समस्या नहीं आई और सहकर्मियों से भी काफी कुछ सीखने को मिला।