परेश रावल की छटपटाहट ने उन्हें खलनायक से ‘बाबू भैया’ बनाया, अनोखी कॉमेडी ने बदल दी इमेज


‘हेरा फेरी’ (Hera Pheri) की तीसरी किश्त बनाने की घोषणा फिरोज नाडियाडवाला (Firoz Nadiadwala) ने कर दी है. फिरोज ने कंफर्म कर दिया है कि वह अक्षय कुमार (Akshay Kumar), सुनील शेट्टी (Suniel Shetty) और परेश रावल (Paresh Rawal) के साथ तीसरी बार फिर धमाल मचाने के लिए तैयार हैं. साल 2000 में आई ‘हेरी फेरी’ रही हो या 2006 में इस फिल्म का सीक्वल, दोनों ही कॉमेडी फिल्मों को दर्शकों ने ऐसा पसंद किया कि अब तीसरा सीक्वल बनने जा रहा है. इस फिल्म को बेस्ट सीक्वल माना जाता है. यूं तो फिल्म से जुड़े सभी लोगों के लिए ‘हेराफेरी’ खास है लेकिन ‘बाबूराव गणपतराव आप्टे’ उर्फ बाबू भैया का किरदार निभाने वाले परेश रावल के बेहद खास है. इस फिल्म की सफलता ने उन्हें वह मुकाम दिया जिसे वह हासिल करना चाहते थे. चलिए आपको बताते हैं परेश रावेल के खलनायक से ‘बाबू भैया’ बनने का दिलचस्प किस्सा.

विलेन के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले परेश रावल जल्द ही ऐसी भूमिकाओं से उब गए. इसके बाद उन्होंने निगेटिव रोल में कॉमेडी का तड़का लगाना शुरू कर दिया. धीरे धीरे अपनी इमेज ऐसी बदल डाली की अब किसी को भी याद नहीं होगा कि परेश कभी खलनायक थे. हालांकि, इस सफर को तय करने में परेश को काफी संघर्ष करना पड़ा.  देर से ही सही अब उन्हें ऐसे कलाकार का तमगा मिल गया है, जो हर तरह के रोल में जान फूंक सकता है.

Paresh Rawal

परेश रावल हर तरह की भूमिका में जान फूंक देते हैं.

‘अर्जुन’ में खलनायक की भूमिका से चर्चा में आए थे परेश रावल
राहुल रवैल के निर्देशन में 1985 में बनी एक फिल्म ‘अर्जुन’ आई थी. इस फिल्म में जितनी चर्चा हीरो की हुई, उससे अधिक विलेन की हुई. कहा गया कि विलेन तो विलेन जैसा लगता ही नहीं है. वह तो हमारे बीच का कॉमन मैन नजर आता है. डायलॉग्स बोलते समय भी बिना मतलब चीखता-चिल्लाता नहीं है, ना ही डराने के लिए आंखे तरेरता है. ये बात हो रही थी खलनायक परेश रावल की.

परेश रावल थियेटर के मंझे हुए कलाकार हैं
परेश रावल एक ऐसे कलाकार हैं जिसे चलता-फिरता एक्टिंग स्कूल कहा जाता है. मुंबई के एक मिडिल क्लास फैमिली में पैदा हुए परेश बचपन से ही एक्टर बनना चाहते थे. बिजनेस फैमिली से ताल्लुक रखने वाले परेश के पिता ने भी सपनों की उड़ान भरने में मदद ही की कभी रोक-टोक नहीं लगाई. स्कूल-कॉलेज में नाटकों में सक्रिय रुप से हिस्सा लेते थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद परेश रावल थियेटर की दुनिया में ऐसे रंगे कि सुबह से शाम तक, उनके लिए नाटक ही पहली प्राथमिकता बन गई थी. परेश की शानदार अदाकारी देख कई बार उन्हें फिल्मों के ऑफर भी मिले. लेकिन उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया. परेश कभी फिल्मों में नहीं आते अगर उनकी मुलाकात केतन मेहता से नहीं हुई होती. परेश और केतन मिले और एक नाटक में काम किया और फिर साथ बन गया.

Paresh Rawal

परेश रावल थियेटर के मंझे हुए कलाकार हैं.

केतन मेहता ने फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री करवाई
केतन मेहता के ही इसरार पर परेश रावल ने बार फिल्म ‘होली’ में काम किया. 34 साल की उम्र में जब फिल्मी दुनिया में कदम रखा तो एक मंझे हुए एक्टर थे. लिहाजा पहली ही फिल्म में उनकी अदाकारी से राहुल रवैल इतने प्रभावित हुए कि उन्हें ‘अर्जुन’ में काम दिया. इसके बाद तो समंदर, डकैत, जीवन एक संघर्ष, योद्धा जैसी फिल्में राहुल रवैल ने परेश के साथ ही बनाई.

सरदार वल्लभ भाई पटेल को पर्दे पर जीवंत कर चुके हैं परेश
80 के दशक मे परेश रावल ने स्क्रिप्ट की मांग के मुताबिक करप्ट थानेदार, दबंग जमींदार, कपटी बिजनेसमैन जैसे रोल प्ले किए. निगेटिव रोल में भी अपनी संवाद अदायगी और अभिनय से खास हो जाते थे. 90 का दशक आते-आते परेश का कलाकार मन बदलाव की मांग करने लगा. एक बार फिर केतन मेहता का साथ मिला और 1994 में फिल्म बनाई ‘सरदार’. सरदार वल्लभ भाई पटेल को पर्दे पर जीवंत करना आसान काम नहीं था. परेश ने इस भूमिका के लिए कड़ी मेहनत की और जब फिल्म रिलीज हुई तो फिल्म समीक्षकों ने उनकी जमकर प्रशंसा की. इसी साल एक और फिल्म आई, जिसका नाम था ‘वो छोकरी’. इस फिल्म के लिए परेश को नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

विलेन का रोल परेश रावल को नहीं आ रहा था रास
दरअसल,परेश रावल खलनायक की बजाय अपनी पहचान हरफन मौला कलाकार के रुप में बनाना चाहते हैं. हालांकि उन्हें बार-बार ऐसे ही रोल मिलते थे. कहते हैं कि उन्हें विलेन का टैग पसंद नहीं आ रहा था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक बार एक अवॉर्ड फंक्शन में परेश को जब 6 दूसरे विलेन का रोल प्ले करने वाले कलाकारों के साथ स्टेज पर बुलाया गया तो उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया.

Paresh Rawal

‘तेजा’ का रोल परेश रावल के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.

‘अंदाज अपना अपना’ ने आसान की ‘बाबू भैया’ की राह
साल 1994 में फिल्म आई ‘अंदाज अपना अपना’. राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में आमिर खान और सलमान खान लीड रोल में थे. इस फिल्म ने परेश के लिए अभिनय का नया आयाम खोल दिया. इस फिल्म में परेश ने कॉमेडी का ऐसा तड़का लगाया जो दर्शकों को बहुत पसंद आया. ‘अंदाज अपना अपना’ के किरदार ‘तेजा’ की पॉपुलैरिटी ही उन्हें ‘हेराफेरी’ तक ले आई. प्रियदर्शन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘हेराफेरी’ के ‘बाबू भैया’ के रुप में परेश ने कॉमेडी का एक ऐसा रंग पेश किया कि इस फिल्म का सीक्वल भी साल 2006 में हिट रहा और अब तीसरे के आने की तैयारी चल रही है.

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 दर्शकों के पसंदीदा एक्टर बन गए हैं परेश रावल
‘बाबू भैया’ दर्शकों का चहेता किरदार तो बना ही साथ ही प्रियदर्शन के साथ ऐसी जोड़ी जमी की ‘हंगामा’, ‘हलचल’, ‘गरम मसाला’, ‘भागम भाग’, ‘भूल भुलैया’ जैसी फिल्मों से दर्शकों के पसंदीदा कलाकार बन गए. इन फिल्मों ने दर्शकों के मन पर ऐसा प्रभाव डाला कि लोग भूल गए कि परेश कभी विलेन के किरदार निभाते थे.

Tags: Bollywood, Paresh rawal

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