Peter Brook: महाभारत के जरिये युद्ध की पीड़ा जीवंत करने वाले ‘पद्मश्री’ पीटर ब्रुक नहीं रहे


ख़बर सुनें

मशहूर निर्देशक व थियेटर (रंगमंच) दिग्गज पीटर स्टीफन पॉल ब्रुक ने लंदन में 97 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। ब्रुक के लिए ‘दुनिया एक रंगमंच’ महज जुमला नहीं था, बल्कि वे स्कूल, अस्पताल, फैक्ट्री, खदान या जिम जैसी किसी भी जगह को रंगमंच बना देते थे।

1985 में वियतनाम में युद्ध चल रहा था तो ब्रुक ने पेरिस में महाभारत को रंगमंच पर पेश किया। करीब नौ घंटे दर्शक एकटक नाटक देखते रहे। आखिर में ब्रुक ने पूछा कि क्या युद्ध संघर्ष खत्म कर सकता है? क्या वाकई नेताओं और लोगों के पास शांति और युद्ध के बीच किसी एक को चुनने का विकल्प होता है? तो पूरी दुनिया सन्न रह गई। ब्रुक कहते थे, हर दिन दुनियाभर में मूर्खतापूर्ण युद्धों से हो रही पीड़ा और दहशत के बारे में सुनते हैं। महाभारत करोड़ों लाशों की बात है और सबसे अहम बात यह है कि युधिष्ठिर अंत में कहते हैं कि ‘यह जीत एक हार है।’ यही युद्ध का असल सच है। 2021 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कि।

हर मंच पर रचते तिलिस्म…
द एम्पटी स्पेस में ब्रुक ने लिखा, मुझे बस कोई भी खाली जगह दे दें, मैं उसे स्टेज बना दूंगा। रोशनी, रंग और नवोन्मेषी तरीकों से वे अनुपयुक्त जगहों को भी बेहतरीन मंच में बदल देते थे। 1970 में उन्होंने स्ट्रैटफोर्ड प्रोडक्शन के लिए शेक्सपियर के ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम नाटक का निर्देशन किया। इसके दृश्यों में उन्होने सिर्फ सफेद रंग इस्तेमाल किया।

व्यावसायिकता के आगे नहीं झुके 
ब्रुक व्यावसायिकता के सामने नहीं झुकने की जिद की वजह से आम लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं हो पाए। ब्रुक आखिरी दिनों तक भी काम करते रहे। 2017 में प्रकाशित टिप ऑफ द टंग किताब में ब्रूक लिखते हैं, थियेटर की हर शैली, डॉक्टर के पास जाने जैसी है।

किशोरवय में फिल्मों से जुड़े
21 मार्च, 1925 लंदन में जन्मे ब्रुक के पिता एक कंपनी के निदेशक थे और मां विज्ञानी। महज 16 वर्ष की उम्र में स्कूल छोड़कर वग फिल्म स्टूडियो से जुड़ गए। ऑक्सफोर्ड से अंग्रेजी व विदेशी भाषाओं में स्नातक किया।

विस्तार

मशहूर निर्देशक व थियेटर (रंगमंच) दिग्गज पीटर स्टीफन पॉल ब्रुक ने लंदन में 97 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। ब्रुक के लिए ‘दुनिया एक रंगमंच’ महज जुमला नहीं था, बल्कि वे स्कूल, अस्पताल, फैक्ट्री, खदान या जिम जैसी किसी भी जगह को रंगमंच बना देते थे।

1985 में वियतनाम में युद्ध चल रहा था तो ब्रुक ने पेरिस में महाभारत को रंगमंच पर पेश किया। करीब नौ घंटे दर्शक एकटक नाटक देखते रहे। आखिर में ब्रुक ने पूछा कि क्या युद्ध संघर्ष खत्म कर सकता है? क्या वाकई नेताओं और लोगों के पास शांति और युद्ध के बीच किसी एक को चुनने का विकल्प होता है? तो पूरी दुनिया सन्न रह गई। ब्रुक कहते थे, हर दिन दुनियाभर में मूर्खतापूर्ण युद्धों से हो रही पीड़ा और दहशत के बारे में सुनते हैं। महाभारत करोड़ों लाशों की बात है और सबसे अहम बात यह है कि युधिष्ठिर अंत में कहते हैं कि ‘यह जीत एक हार है।’ यही युद्ध का असल सच है। 2021 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कि।

हर मंच पर रचते तिलिस्म…

द एम्पटी स्पेस में ब्रुक ने लिखा, मुझे बस कोई भी खाली जगह दे दें, मैं उसे स्टेज बना दूंगा। रोशनी, रंग और नवोन्मेषी तरीकों से वे अनुपयुक्त जगहों को भी बेहतरीन मंच में बदल देते थे। 1970 में उन्होंने स्ट्रैटफोर्ड प्रोडक्शन के लिए शेक्सपियर के ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम नाटक का निर्देशन किया। इसके दृश्यों में उन्होने सिर्फ सफेद रंग इस्तेमाल किया।

व्यावसायिकता के आगे नहीं झुके 

ब्रुक व्यावसायिकता के सामने नहीं झुकने की जिद की वजह से आम लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं हो पाए। ब्रुक आखिरी दिनों तक भी काम करते रहे। 2017 में प्रकाशित टिप ऑफ द टंग किताब में ब्रूक लिखते हैं, थियेटर की हर शैली, डॉक्टर के पास जाने जैसी है।

किशोरवय में फिल्मों से जुड़े

21 मार्च, 1925 लंदन में जन्मे ब्रुक के पिता एक कंपनी के निदेशक थे और मां विज्ञानी। महज 16 वर्ष की उम्र में स्कूल छोड़कर वग फिल्म स्टूडियो से जुड़ गए। ऑक्सफोर्ड से अंग्रेजी व विदेशी भाषाओं में स्नातक किया।



Source link

Enable Notifications OK No thanks