सार
लेखक और मध्यप्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश राजपूत अमर उजाला से चर्चा में कहते है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में यह बदलाव बहुत पहले से ही महसूस किया जा रहा था। कमलनाथ के ऊपर नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव था। लेकिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़कर पार्टी अध्यक्ष का पद अपने पास रखा…
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विस्तार
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया है। अभी तक वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष के पद पर काबिज थे। अब नेता विरोधी दल की कमान डॉ. गोविंद सिंह को सौंप दी गई है। डॉ. सिंह को नियुक्त किए जाने के प्रदेश की सियासत में गहरे मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग में उनकी काट के तौर पर वहीं के एक सशक्त और जमीन से जुड़े नेता को तवज्जो दी है। दूसरा, एमपी कांग्रेस में दिग्विजय सिंह खेमे का दबदबा मजबूत होता दिखाई दे रहा है। कुछ दिन पहले ही महिला कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दिग्विजय खेमे की विभा पटेल को भी नियुक्त किया गया है।
सिंधिया परिवार के मुखर विरोधी हैं गोविंद
दरअसल 2023 के चुनाव के लिहाज से मध्यप्रदेश में ग्वालियर-चंबल संभाग सबसे अहम है। 2018 में कांग्रेस की सरकार इसी अंचल के कारण बनी थी और सरकार गिरी भी यहां की वजह से ही थी। लिहाजा इस क्षेत्र की 34 सीटों की इस बार भी निर्णायक भूमिका होगी। इसलिए कांग्रेस को भाजपा और सिंधिया से मुकाबला करने के लिए एक ऐसे आक्रामक नेता की जरूरत थी, जो सिंधिया से बिना दबे और डरे उनका मुकाबला कर सके। डॉ. गोविंद सिंह के राजनीतिक जीवन को देखा जाए, तो वह हमेशा से सिंधिया परिवार के मुखर विरोधी रहे हैं। सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब भी अगर उनके खिलाफ कोई बात होती थी, तो गोविंद सिंह खुलकर उस पर बोलते थे। ऐसे में उनको डराने या झुकाने जैसी स्थिति नहीं बनेगी। वह खुलकर भाजपा से मोर्चा लेंगे।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में जातिगत समीकरण सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। यह इलाका ठाकुर बाहुल्य क्षेत्र है। यहां की सीटों पर यह वर्ग निर्णायक भूमिका में होता है। ठाकुर वर्ग से आने वाले भाजपा के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर है। ऐसे में ठाकुर वर्ग को साधने के लिए कांग्रेस ने गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाकर इस वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश की है। खास बात यह भी है कि गोविंद सिंह सभी तरह के मैनेजमेंट के माहिर माने जाते है। उनके पास समर्थकों की एक लंबी कतार भी है। राम लहर के दौरान भी डॉ. गोविंद सिंह अजेय रहे हैं। जब प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए थे, तब कांग्रेस को कई सीटें जिताने में उनकी भूमिका बहुत ही अहम रही थी। इसके अलावा वे कांग्रेस के लिए समय-समय पर भी अपनी उपयोगिता भी साबित करते रहे हैं।
कमलनाथ ने अध्यक्ष पद रखा अपने पास
लेखक और मध्यप्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश राजपूत अमर उजाला से चर्चा में कहते है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में यह बदलाव बहुत पहले से ही महसूस किया जा रहा था। कमलनाथ के ऊपर नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का दबाव था। लेकिन उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़कर पार्टी अध्यक्ष का पद अपने पास रखा। इससे संदेश यही जाता है कि वे पार्टी का कंट्रोल अपने हाथों में ही रखना चाहते हैं। पार्टी अध्यक्ष के मुकाबले नेता प्रतिपक्ष का पद बहुत ही कमजोर होता है। विधानसभा की बैठक भी साल में तीन बार होती है। ऐसे में यह पद छोड़ना कमलनाथ ने उचित समझा।
सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा चल रही है कि गोविंद सिंह को यह जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह के गुट में होने की वजह से मिली है, लेकिन इस बात से पत्रकार राजपूत इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि गोविंद सिंह भले ही दिग्विजय सिंह के करीबी रहे हों, लेकिन केवल यह कह देना कि उन्हें यह पद दिग्विजय सिंह की वजह से मिला है यह सही नहीं होगा। क्योंकि गोविंद सिंह का अपना खुद का राजनीतिक रसूख है। वे सातवीं बार के विधायक हैं, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ सरकार दोनों में मंत्री रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस संगठन में भी कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। विधानसभा में कमलनाथ की गैरमौजूदगी में वे ही नंबर दो की भूमिका में होते थे। पूरे मध्यप्रदेश में अब उनकी पहचान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के तौर पर होती है। दिल्ली हाईकमान से उनके अच्छे संबंध हैं। आज प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को अलग-अलग करके नहीं देख सकते हैं। दोनों एक साथ ही चुनाव लड़ेंगे और उनका एक ही मकसद है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनानी है।
मिशन मोड में आई कांग्रेस
दरअसल, मध्यप्रदेश कांग्रेस में हुए इस बड़े बदलाव के बाद एक बात साफ है कि मिशन 2023 के लिए कांग्रेस भी अब कमर कस चुकी है। हाल ही में कमलनाथ की दो बार केंद्रीय आलाकमान सोनिया गांधी से दिल्ली में मुलाकात हुई थी। इसके बाद भोपाल में दिग्विजय सिंह, अरुण यादव, अजय सिंह, सुरेश पचौरी की मौजूदगी में कमलनाथ के बंगले पर डिनर हुआ था। उसके बाद ये बड़ा फैसला सामने आया है।