President Election: मायावती ने दिया एनडीए उम्मीदवार को समर्थन, जानें कब-कब बसपा-भाजपा आए साथ, कब लगे सांठ-गांठ के आरोप?


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राष्ट्रपति चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती ने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का एलान किया है। मायावती ने कहा कि हमारी पार्टी ने आदिवासी समाज को अपने मूवमेंट का खास हिस्सा मानते हुए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है। 
ये पहला मौका नहीं है जब मायावती ने भाजपा को समर्थन दिया है। इससे पहले भी कई मौके आए हैं जब मायावती भाजपा के साथ आ चुकी हैं। चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती तीन बार भाजपा की मदद से ही इस पद पर पहुंची थीं।  
पहले कब-कब मायावती और भाजपा एक साथ आए? कब सरकार में दोनों की हिस्सेदारी रही? कब-कब मायावती ने भाजपा के साथ गठबंधन नहीं होते हुए भी भाजपा का साथ दिया? कब-कब मायावती पर लगे भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप? आइये जानते हैं… 
पहले कब-कब मायावती और भाजपा एक साथ आए?

  • 38 साल पहले 14 अप्रैल 1984 को बसपा का गठन हुआ। पार्टी ने पहली बार 1989 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई। पहले ही चुनाव में बसपा को 9.4% वोट और 13 सीटें मिलीं। इसके साथ ही पार्टी राज्य की दो लोकसभा सीटें जीतने भी सफल रही। 1993 आते-आते राज्य में बसपा के बड़ी ताकत बन चुकी थी।
  •  मुलायम सिंह यादव और कांशीराम साथ आए। राज्य में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी। लेकिन, 1995 में बसपा ने समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद मायावती भाजपा के समर्थन से राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। ये पहला मौका था जब बसपा और भाजपा साथ आए थे। 
  • बसपा-भाजपा का पहला साथ महज चार महीने तक चला। तीन जून 1995 को बनी मायावती सरकार से अक्टूबर 1995 में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। मायावती महज 137 दिन पद पर रह सकीं। राज्य राष्ट्रपति शासन लगा। नए सिरे से चुनाव हुए। चुनाव के बाद एक बार फिर बसपा और भाजपा साथ आए। 
  • समझौता हुआ कि छह महीने बसपा और छह महीने भाजपा के सीएम रहेगा। मयावती पहले छह महीने मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनते ही बसपा ने भाजपा से समर्थन वापस ले लिया। बसपा के समर्थन वापस लेने के बाद कल्याण सिंह ने भारी हंगामे के बीच बहुमत साबित किया। बहुमत परीक्षण के दौरान विधानसभा में जमकर मारपीट तक हुई थी। 
  • 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर मायवाती और भाजपा साथ आए। दोनों के साथ आने से सबसे बड़ी पार्टी सपा विपक्ष में रह गई। मायावती ने भाजपा की मदद से सरकार बनाई। मायावती तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। इस बार मायवाती की सरकार करीब 16 महीने चली।  
  • 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा के अपने दम पर बहुमत मिला। मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं। पहली बार उन्होने अपना कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद मायावती की पार्टी लगातार तीन विधानसभा चुनाव में हार चुकी है। हर चुनाव के बाद उसकी सीटें और वोट शेयर कम हो रहे हैं। 

कब-कब मायावती ने भाजपा के साथ गठबंधन नहीं होते हुए भी भाजपा का साथ दिया?
2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा 24 साल बाद साथ आए। चुनाव  में उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलने पर मायावती ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया। इसके बाद से कई बार मायावती पर भाजपा से नजदीकियों के आरोप लग चुके हैं। सपा से गठबंधन के पहले भी मायावती पर भाजपा की मदद करने के आरोप लगते रहे थे।
बसपा और भाजपा के बीच अंदरूनी गठबंधन के दावों को और हवा मिली जब 2020 में महज 15 विधायकों के बल पर बसपा ने रामजी गौतम को राज्यसभा चुनाव खड़ा कर दिया। उस वक्त खाली हो रही दस सीटों में से भाजपा के पास नौ जीतने के लिए पर्याप्त संख्या बल था। इसके बाद भी भाजपा ने केवल आठ उम्मीदवार उतारे। इसकी वजह बसपा उम्मीदवार रामजी गौतम निर्विरोध जीत गए। इस दौरान  कांग्रेस और सपा ने भाजपा-बसपा के गठजोड़ का आरोप लगाया था।
 
कब-कब मायावती पर लगे भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप?
2022 विधानसभा चुनाव के दौरान भी लगातार मायावती की पार्टी पर भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप लगे। यहां तक कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी सपा ने मायावती पर भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए मुस्लिम मतदाताओं को बरगलाने का आरोप लगाया था। 
हाल ही में हुए उप-चुनाव में भी सपा ने बसपा और भाजपा में साठगांठ का आरोप लगाया। आजमगढ़ से सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव ने आरोप लगाया कि बसपा-भाजपा में गुप्त एजेंडा है। उन्होंने दावा किया कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा के लोगों ने भाजपा को जिताने का काम किया।  विश्लेषक भी मांनते हैं कि बीते विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट भाजपा को शिफ्ट हुआ। 
मुर्मू को समर्थन देने का ममता ने क्या कारण बताया?
 मायावती ने शनिवार को राजधानी लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष की बैठक में बसपा को न बुलाए जाने पर हमला बोला। मायावती ने कहा कि हमें विपक्ष ने अलग-थलग रखा। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का षड़यंत्र देखने को मिला। हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि हमारी पार्टी ने आदिवासी समाज को अपने मूवमेंट का खास हिस्सा मानते हुए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि हमारा यह फैसला न तो भाजपा या एनडीए के समर्थन में  है और न ही विपक्ष के खिलाफ। हम अपनी पार्टी और आंदोलन को ध्यान में रखते एक आदिवासी समाज की योग्य और कर्मठ महिला को देश की राष्ट्रपति बनाने के पक्ष में हैं। मायावती ने कहा कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक विपक्षी उम्मीदवार का चयन करने के लिए 15 जून को बुलाई थी और केवल चयनित पार्टियों को आमंत्रित किया इसके साथ ही जब शरद पवार ने 21 जून को एक बैठक बुलाई, तो बसपा को भी आमंत्रित नहीं किया गया था।

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राष्ट्रपति चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती ने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का एलान किया है। मायावती ने कहा कि हमारी पार्टी ने आदिवासी समाज को अपने मूवमेंट का खास हिस्सा मानते हुए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है। 

ये पहला मौका नहीं है जब मायावती ने भाजपा को समर्थन दिया है। इससे पहले भी कई मौके आए हैं जब मायावती भाजपा के साथ आ चुकी हैं। चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती तीन बार भाजपा की मदद से ही इस पद पर पहुंची थीं।  

पहले कब-कब मायावती और भाजपा एक साथ आए? कब सरकार में दोनों की हिस्सेदारी रही? कब-कब मायावती ने भाजपा के साथ गठबंधन नहीं होते हुए भी भाजपा का साथ दिया? कब-कब मायावती पर लगे भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप? आइये जानते हैं… 



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