President Election: राष्ट्रपति चुनाव में क्यों सक्रिय हैं गृहमंत्री शाह और क्या चूक कर रहे हैं यशवंत सिन्हा?


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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबियों में हैं। राजनीतिक अनुभव के लिहाज से एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू से अधिक अनुभवी और बड़े नेता हैं, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सक्रियता हर रोज उनकी उम्मीदों पर पर पानी फेर रही है। राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि एनडीए के उम्मीदवार के लिए खेले जा रहे दांव के आगे विपक्ष के सिन्हा की धार कमजोर हो रही है। सिन्हा के प्रचार में पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। वहीं भाजपा अब द्रौपदी मुर्मू की भारी मतों से जीत को लेकर आश्वस्त चल रही है।

राष्ट्रपति चुनाव के बहाने गृह मंत्री शाह विपक्ष को एक बड़ा झटका देना चाहते हैं। यशवंत सिन्हा 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद से ही उनकी (मोदी) और उनकी सरकार के नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। अनुच्छेद 35ए और 370 तथा सीएए को लेकर भी सिन्हा अलग राय रखते हैं। बताते हैं शाह इसे लेकर बहुत संवेदनशील हैं। वह राष्ट्रपति चुनाव के जरिए देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ विपक्ष को खड़ा होने का कोई अवसर नहीं देना चाहते। इसलिए भाजपा की कोशिश है कि राष्ट्रपति चुनाव में जीत और हार में काफी बड़ा अंतर होना चाहिए।

क्या सच में अमित शाह सक्रिय हैं?

महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक घटनाएं इसी ओर संकेत करती हैं। यशवंत सिन्हा ने भी चुनाव में ऑपरेशन लोटस के जारी रहने का वक्तव्य दिया है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बगावत से सरकार के गठन तक सब कुछ केंद्रीय गृह मंत्री की निगरानी और जानकारी में चला है। बताते हैं शिवसेना के सांसदों को द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में करने के लिए शाह ने राज्य के सीएम शिंदे, डिप्टी सीएम फड़नवीस को लगाया था। खुद भी उन्होंने कुछ लोगों से संपर्क साधा। उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर समेत तमाम नेताओं से केंद्रीय गृह मंत्री ने खुद बात की है। उन्हें भाजपा के करीब और एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में ले आए हैं। इसमें अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी शामिल हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी समाज से आते हैं। एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में आना उनकी राजनीतिक मजबूरी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी उनसे बात की है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बड़े अंतर को तय करने के लिए एनडीए के रणनीतिकारों ने महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में राजनीतिक दबाव की भी मुहिम शुरू की है।

सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए!

भाजपा के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि मतगणना के नतीजों के बाद विपक्ष के पास कहने के लिए कुछ नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा कि उनके यशवंत सिन्हा से निजी तौर पर रिश्ते हैं। वाजपेयी सरकार में उन्होंने साथ काम किया था। सूत्र का कहना है कि मुझे केवल इतना भर कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव और इस पद की मर्यादा होती है। यशवंत सिन्हा वरिष्ठ हैं और उन्हें अपने बयानों में इसका ख्याल रखना चाहिए। सूत्र का कहना है कि वे जब से चुनाव मैदान में हैं लगातार एक के बाद एक बयान दे रहे हैं। उन्होंने झारखंड की राज्यपाल रही, राजनीति की वरिष्ठ नेता और एनडीए की उम्मीदवार के रबर स्टांप जैसे शब्द का प्रयोग किया। भाजपा पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं और चुनाव में वादा करने तक का सहारा ले रहे हैं।

राष्ट्रपति चुनाव में कहां से कमजोर होती गई विपक्ष की धार?

यशवंत सिन्हा के विपक्ष का साझा उम्मीदवार होने के बाद उनके चुनाव प्रचार में कांग्रेस के नेता जयराम रमेश कड़ी मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस के प्रणब झा लगातार यशवंत सिन्हा के साथ हैं और मीडिया से संवाद कर रहे हैं। इसके अलावा संजीव सिंह समेत अन्य लोग प्रचार की कड़ी हैं। हालांकि सिन्हा ने इस चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया है। वह हर राज्य में जा रहे हैं और प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन उनकी राह में विपक्ष के नेताओं की ही तमाम खुद की बनाई लक्ष्मण रेखाएं हैं।

दक्षिण भारत के नेता और मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल के अहम सदस्य रहे सूत्र के अनुसार यशवंत सिन्हा तो बाद में उम्मीदवार बने। इससे पहले हमारी सबसे बड़ी नाकामी एक सशक्त उम्मीदवार की तलाश कर पाना या आम राय न बना पाना रहा। एनसीपी के शरद पवार ने भी चुनाव के लिए मना कर दिया था। यशवंत सिन्हा तो तृणमूल कांग्रेस में थे और ममता बनर्जी की राय से उम्मीदवार बने। उनके साथ भजपा और तृणमूल के साथ रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी प्रचार में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। वरिष्ठ नेता के अनुसार विपक्ष इस चुनाव के लिए न तो अपनी एकता पर ध्यान दे रहा है और न ही मजबूत दावेदारी बनाने की दिशा में काम कर रहा है।

अगले दो दिन में तेजी से बदलेगा माहौल!

यशवंत सिन्हा के साथ उनके प्रचार में लगे नेताओं का कहना है कि हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और होते हैं। संजीव सिंह कहते हैं कि कभी-कभी जो दिखाई दे रहा है, वह सच नहीं होता। सच कुछ और होता है। हौसला रखिए। दो दिन बाद आपको यशवंत सिन्हा के चुनाव प्रचार का असर साफ-साफ दिखाई देगा। पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री को देश के सभी राज्यों से बड़ा समर्थन मिल रहा है। क्या पता राष्ट्रपति का यह चुनाव भाजपा के रणनीतिकारों की भी आंखे खोल दे।

चुनाव के लिए सामग्री पहुंचने का सिलसिला शुरू

चार दिन बाद 18 जुलाई को राष्ट्रपति का चुनाव होना है। चुनाव को संपन्न कराने के लिए राज्यों में चुनाव सामग्री पहुंचाई जा रही है। इसके लिए निर्वाचन आयोग लगातार सक्रिय है। 21 जुलाई को मतगमना होगी। इस बार चुनाव में केवल दो ही प्रत्याशी मैदान में हैं। एनडीए की तरफ से द्रौपदी मुर्मू चुनाव मैदान में हैं, जबकि विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को साझा उम्मीदवार बनाया है।

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबियों में हैं। राजनीतिक अनुभव के लिहाज से एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू से अधिक अनुभवी और बड़े नेता हैं, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सक्रियता हर रोज उनकी उम्मीदों पर पर पानी फेर रही है। राजनीतिक गलियारों में माना जा रहा है कि एनडीए के उम्मीदवार के लिए खेले जा रहे दांव के आगे विपक्ष के सिन्हा की धार कमजोर हो रही है। सिन्हा के प्रचार में पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। वहीं भाजपा अब द्रौपदी मुर्मू की भारी मतों से जीत को लेकर आश्वस्त चल रही है।

राष्ट्रपति चुनाव के बहाने गृह मंत्री शाह विपक्ष को एक बड़ा झटका देना चाहते हैं। यशवंत सिन्हा 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद से ही उनकी (मोदी) और उनकी सरकार के नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। अनुच्छेद 35ए और 370 तथा सीएए को लेकर भी सिन्हा अलग राय रखते हैं। बताते हैं शाह इसे लेकर बहुत संवेदनशील हैं। वह राष्ट्रपति चुनाव के जरिए देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ विपक्ष को खड़ा होने का कोई अवसर नहीं देना चाहते। इसलिए भाजपा की कोशिश है कि राष्ट्रपति चुनाव में जीत और हार में काफी बड़ा अंतर होना चाहिए।

क्या सच में अमित शाह सक्रिय हैं?

महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक घटनाएं इसी ओर संकेत करती हैं। यशवंत सिन्हा ने भी चुनाव में ऑपरेशन लोटस के जारी रहने का वक्तव्य दिया है। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बगावत से सरकार के गठन तक सब कुछ केंद्रीय गृह मंत्री की निगरानी और जानकारी में चला है। बताते हैं शिवसेना के सांसदों को द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में करने के लिए शाह ने राज्य के सीएम शिंदे, डिप्टी सीएम फड़नवीस को लगाया था। खुद भी उन्होंने कुछ लोगों से संपर्क साधा। उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर समेत तमाम नेताओं से केंद्रीय गृह मंत्री ने खुद बात की है। उन्हें भाजपा के करीब और एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में ले आए हैं। इसमें अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी शामिल हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदिवासी समाज से आते हैं। एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में आना उनकी राजनीतिक मजबूरी के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी उनसे बात की है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बड़े अंतर को तय करने के लिए एनडीए के रणनीतिकारों ने महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में राजनीतिक दबाव की भी मुहिम शुरू की है।

सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए!

भाजपा के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि मतगणना के नतीजों के बाद विपक्ष के पास कहने के लिए कुछ नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा कि उनके यशवंत सिन्हा से निजी तौर पर रिश्ते हैं। वाजपेयी सरकार में उन्होंने साथ काम किया था। सूत्र का कहना है कि मुझे केवल इतना भर कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव और इस पद की मर्यादा होती है। यशवंत सिन्हा वरिष्ठ हैं और उन्हें अपने बयानों में इसका ख्याल रखना चाहिए। सूत्र का कहना है कि वे जब से चुनाव मैदान में हैं लगातार एक के बाद एक बयान दे रहे हैं। उन्होंने झारखंड की राज्यपाल रही, राजनीति की वरिष्ठ नेता और एनडीए की उम्मीदवार के रबर स्टांप जैसे शब्द का प्रयोग किया। भाजपा पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं और चुनाव में वादा करने तक का सहारा ले रहे हैं।

राष्ट्रपति चुनाव में कहां से कमजोर होती गई विपक्ष की धार?

यशवंत सिन्हा के विपक्ष का साझा उम्मीदवार होने के बाद उनके चुनाव प्रचार में कांग्रेस के नेता जयराम रमेश कड़ी मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस के प्रणब झा लगातार यशवंत सिन्हा के साथ हैं और मीडिया से संवाद कर रहे हैं। इसके अलावा संजीव सिंह समेत अन्य लोग प्रचार की कड़ी हैं। हालांकि सिन्हा ने इस चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया है। वह हर राज्य में जा रहे हैं और प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन उनकी राह में विपक्ष के नेताओं की ही तमाम खुद की बनाई लक्ष्मण रेखाएं हैं।

दक्षिण भारत के नेता और मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल के अहम सदस्य रहे सूत्र के अनुसार यशवंत सिन्हा तो बाद में उम्मीदवार बने। इससे पहले हमारी सबसे बड़ी नाकामी एक सशक्त उम्मीदवार की तलाश कर पाना या आम राय न बना पाना रहा। एनसीपी के शरद पवार ने भी चुनाव के लिए मना कर दिया था। यशवंत सिन्हा तो तृणमूल कांग्रेस में थे और ममता बनर्जी की राय से उम्मीदवार बने। उनके साथ भजपा और तृणमूल के साथ रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी प्रचार में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। वरिष्ठ नेता के अनुसार विपक्ष इस चुनाव के लिए न तो अपनी एकता पर ध्यान दे रहा है और न ही मजबूत दावेदारी बनाने की दिशा में काम कर रहा है।

अगले दो दिन में तेजी से बदलेगा माहौल!

यशवंत सिन्हा के साथ उनके प्रचार में लगे नेताओं का कहना है कि हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और होते हैं। संजीव सिंह कहते हैं कि कभी-कभी जो दिखाई दे रहा है, वह सच नहीं होता। सच कुछ और होता है। हौसला रखिए। दो दिन बाद आपको यशवंत सिन्हा के चुनाव प्रचार का असर साफ-साफ दिखाई देगा। पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री को देश के सभी राज्यों से बड़ा समर्थन मिल रहा है। क्या पता राष्ट्रपति का यह चुनाव भाजपा के रणनीतिकारों की भी आंखे खोल दे।

चुनाव के लिए सामग्री पहुंचने का सिलसिला शुरू

चार दिन बाद 18 जुलाई को राष्ट्रपति का चुनाव होना है। चुनाव को संपन्न कराने के लिए राज्यों में चुनाव सामग्री पहुंचाई जा रही है। इसके लिए निर्वाचन आयोग लगातार सक्रिय है। 21 जुलाई को मतगमना होगी। इस बार चुनाव में केवल दो ही प्रत्याशी मैदान में हैं। एनडीए की तरफ से द्रौपदी मुर्मू चुनाव मैदान में हैं, जबकि विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को साझा उम्मीदवार बनाया है।



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