President Oath: 18 मिनट का रहा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का पहला भाषण, जानें इसकी 10 बड़ी बातें


द्रौपदी मूर्मु ने देश की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले ली है। सोमवार की सुबह संसद के सेंट्रल हॉल में शपथ लेने के बाद उनका पहला संबोधन 18 मिनट का रहा। इसमें उन्होंने गरीब से लेकर युवा और महिलाओं तक का जिक्र किया। इतिहास से लेकर आजाद भारत के विकास की यात्रा पर प्रकाश डाला। बोलीं, ‘मेरे लिए देश के युवाओं और महिलाओं का हित सर्वोपरि होगा।’ 

आइए जानते हैं राष्ट्रपति मुर्मू के भाषण की 10 बड़ी बातों को…

 

1. गरीब सपने देख सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है : मैं जनजातीय समाज से हूं, और मुझे वार्ड काउंसलर से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मिला है। यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है। ये हमारे लोकतंत्र की ही शक्ति है कि उसमें एक गरीब घर में पैदा हुई बेटी, दूर-सुदूर आदिवासी क्षेत्र में पैदा हुई बेटी, भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंच सकती है। राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है।

 

2. बिरसा मुंडा के बलिदान से प्रेरणा मिली : राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना, मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है। ये भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। मैं देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति भी हूं जिसका जन्म आजाद भारत में हुआ है। संथाल क्रांति, पाइका क्रांति से लेकर कोल क्रांति और भील क्रांति ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी योगदान को और सशक्त किया था। सामाजिक उत्थान एवं देश-प्रेम के लिए ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा जी के बलिदान से हमें प्रेरणा मिली थी। 

 

3. भारत की उपलब्धियों का बखान : कुछ ही दिन पहले भारत ने कोरोना वैक्सीन की 200 करोड़ डोज लगाने का कीर्तिमान बनाया है। इस पूरी लड़ाई में भारत के लोगों ने जिस संयम, साहस और सहयोग का परिचय दिया, वो एक समाज के रूप में हमारी बढ़ती हुई शक्ति और संवेदनशीलता का प्रतीक है। 

 

4. मैंने जल, जंगल और जलाशयों को महसूस किया : मेरा जन्म तो उस जनजातीय परंपरा में हुआ है जिसने हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर जीवन को आगे बढ़ाया है। मैंने जंगल और जलाशयों के महत्व को अपने जीवन में महसूस किया है। हम प्रकृति से जरूरी संसाधन लेते हैं और उतनी ही श्रद्धा से प्रकृति की सेवा भी करते हैं। 

 



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