संजय उवाच: रवींद्र जडेजा ने छोड़ी कप्तानी या धोनी का कद पड़ गया भारी?


अनहोनी को होनी करने वाले महेंद्र सिंह धोनी आखिर आज से फिर चेन्नई सुपर किंग्स की कप्तानी संभालेंगे. मुकाबला सनराइजर्स हैदराबाद से है, जो पॉइंट्स टेबल मे फिलहाल टॉप चार में है और चेन्नई दस टीमों की लीग मे नवें स्थान पर. क्या धोनी की कप्तानी का मिडास टच चेन्नई को प्लेऑफ तक ले जा सकेगा. अगर ऐसा हुआ तो चमत्कार ही होगा. वैसे एक बात हमेशा कही जाती है, कि कोई कप्तान उतना ही अच्छा होता है, जितनी कि टीम, तो धोनी की जगह जडेजा और फिर जडेजा की जगह धोनी होने से क्या सीएसके की किस्मत बदलेगी? धोनी के मुरीद मानते हैं कि उनमें अब भी वो जज्बा है, कि वह चेन्नई के लिए फर्श से अर्श तक का सफर तय कर सकते हैं.

पिछले सीजन भारतीय क्रिकेट की मजबूत धरोहर माने जाने वाले विराट कोहली ने भी आरसीबी की कप्तानी छोड़ी थी, लेकिन बाकायदा टीम प्रबंधन और नए कप्तान को भरपूर समय दिया था. जबकि धोनी ने आईपीएल का सत्र शुरू होने से ठीक दो दिन पहले कप्तानी का बैटन रवींद्र जडेजा को थमा दिया था. टीम के कोच स्टीफन फ्लेमिंग ने हालांकि इस बात का जिक्र किया था, कि धोनी ने पिछले सीजन ही कप्तानी से हटने की ख्वाहिश जताई थी, लेकिन ख्वाहिश जताने और कप्तानी छोड़ने में बड़ा फर्क है. फिर धोनी का कद ही इतना बड़ा है कि उनके बोलने भर से कप्तानी से उन्हें हटाया नहीं जा सकता. टीम के सीईओ ने भी खुद धोनी की कप्तानी से हटने की टाइमिंग पर हैरत जताई थी. फिर आखिर धोनी ने ऐसा क्यों किया? क्या उनकी पारखी निगाहों को इस बात का एहसास हो चला था, कि इस बार का टीम का संतुलन चलने वाला नहीं है. लेकिन अगर ऐसा था, तो अब उन्होंने क्यों कप्तानी का बोझ ले लिया? क्या इसलिए कि अब पाने को कुछ खास रह नहीं गया है?

रवींद्र जडेजा आठ मैचों मे कप्तानी के बाद ही तौबा क्यों करने लगे, वजह सिर्फ हार थी, या फिर धोनी का कद, जो लगातार उन्हें कप्तान होने के बावजूद बौना होने का एहसास करा रहा था. या फिर कप्तानी का बोझ उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन पर असर डाल रहा था. सीएसके ने जडेजा को 16 करोड़ और धोनी को 12 करोड़ मे खरीदा था, लेकिन इस बार अब तक जडेजा अपनी कीमत अदा नहीं कर पा रहे थे.

जडेजा की मुश्किलें

रवींद्र जडेजा को सीनियर टीम की कप्तानी करने का कभी मौका नहीं मिला था. कुछ एज ग्रुप के मैच में जरूर उन्होंने सौराष्ट्र की कप्तानी की थी. फिर भी जडेजा सुरेश रैना की रुखसती के बाद कप्तानी के इकलौते दावेदार थे. बाएं हाथ के इस बल्लेबाज की पहचान आईपीएल के सबसे शानदार फिनिशर के रूप मे होती है. 2021 के सीजन में जडेजा ने 75 से ज्यादा की औसत से रन बनाए थे. इसीलिए जब धोनी ने जडेजा पर कप्तानी का भार सौंपा था तब भी किसी कोने से विरोध का कोई संकेत नहीं मिला. जडेजा ने भी कप्तानी को सहर्ष स्वीकार किया था. कयास यह भी थे कि जडेजा की दिलचस्पी कप्तानी में थी, और उन्हें टीम से जोड़े रखने की नीयत से भी यह फैसला किया गया. फिर धोनी का करियर अब ढलान पर है. उन्हें अहसास था कि उनकी उम्र 40 हो चली है और ऐसे में न तो वह ज्यादा खेल सकते हैं और न ही टीम को आगे ले जा सकते हैं.

दूसरी ओर जडेजा को भी अंदाजा नहीं था कि उनके साथ सर मुंड़ाते ही ओले पड़ने की कहावत चरितार्थ हो जाएगी. कप्तानी का सफर शुरू किया तो पहले ही मैच में हार मिली. पांचवें मैच में ही टीम को जीत मिल सकी, लेकिन इससे टीम की किस्मत नहीं बदली. टीम लगातार हारती रही और जडेजा आलोचकों के निशाने पर आते रहे. यहां तक कि खुद उनका प्रदर्शन ऐसा गिरा कि कोई भी आश्चर्य कर सकता है. आठ मैचों में केवल 112 रन उनके खाते में आए साथ ही 26 ओवर में 22.4 के औसत से मात्र पांच विकेट मिले. इसमें एक बार 39 रन पर लिए गए तीन विकेट भी शामिल हैं.

तकनीकी तौर पर चेन्नई अभी तक प्लेआफ की होड़ से बाहर हुआ नहीं है, लेकिन जडेजा समझ चुके हैं कि खुद की ‘इमेज’ बचानी है तो कप्तानी छोड़नी पड़ेगी.

कप्तान न थे, फिर भी मैदान संभालते रहे

ऐसा नहीं है कि धोनी इस सीजन में खिलाड़ी बनकर ही खेलते रहे, बल्कि जडेजा के कप्तान होने के बावजूद कई बार वह भी कप्तानी करते नजर आए. खासकर गेंदबाजी में बदलाव में उनकी कई बार दिलचस्पी देखी गई. जडेजा अधिकतर समय डीप में फील्डिंग करते रहे और धोनी विकेट के पास से फैसले लेते रहे. एक बार तो यह भी हुआ कि जब धोनी ने ड्वेन ब्रावो से गेंदबाजी में बदलाव का फैसला लिया. जब तक जडेजा दौड़कर पहुंचते, वह यह देखकर लौट गए कि फैसला लिया जा चुका है. मानना होगा कि धोनी के रहते जडेजा अपने काम को नहीं कर पा रहे थे. धोनी का असर है ही ऐसा कि कोई भी खुलकर आगे नहीं जा सकता और जडेजा के साथ भी यही हुआ. आधा सीजन बीत जाने पर भी वह सहज नहीं थे. प्रदर्शन भी बढ़िया नहीं हो रहा था, इसलिए दोहरे दबाव में थे.

सबसे ज्यादा उठापटक वाली टीम है सीएसके

मुंबई इंडियंस को भले ही सबसे ज्यादा पांच बार चैंपियन बनने का गौरव हासिल है, लेकिन चार बार चैंपियन बनने के बावजूद चेन्नई सुपर किंग्स के साथ विवाद भी कम नहीं रहा है. 2008 से, जब से आईपीएल की शुरुआत हुई है तब से चेन्नई को इसी तरह की उठापटक देखते हुए निकला है. 2013 में इस टीम पर दो साल का प्रतिबंध भी लगाया गया था क्योंकि तब टीम के मालिक एन श्रीनिवासन के दामाद फिक्सिंग के दोषी पाए गए थे. लिहाजा धोनी को इस दौरान दो साल पुणे सुपरजाइंट्स की ओर से खेलने के लिए मजबूर होना पड़ा. पुणे की ओर से खेलने के दौरान भी धोनी को कप्तानी छोड़नी पड़ी थी. यह आज भी रहस्य बना हुआ है कि तब धोनी ने पहले कप्तानी छोड़ी थी या टीम मैनेजमेंट ने उनको हटाया था. दोनों के अपने दावे थे.

इसी तरह 2020 की घटना सबसे ताजा उदाहरण है. यूएई में आईपीएल का आयोजन हुआ और सुरेश रैना मैच शुरू होने से पहले ही टीम छोड़कर लौट आए थे. यह नहीं भूलना चाहिए कि सुरेश रैना अगर टीम में होते तो वह धोनी के बाद सीएसके की कप्तानी करने के सबसे बड़े दावेदार होते. इस साल तो चेन्नई ने रैना को शामिल हीं नहीं किया. बल्कि रैना की छवि ऐसी तैयार हो गई कि किसी भी टीम ने सुरेश रैना को शामिल करने से परहेज किया. रैना का विवाद सिर्फ प्रबंधन के साथ ही नहीं था, बल्कि उनके सबसे अज़ीज़ माही भी इसके केंद्र मे थे. अगर नहीं होते तो रैना इस दफा भी आईपीएल खेल रहे होते.

धोनी हैं आईपीएल के सबसे सफल कप्तान

धोनी ने 228 आईपीएल मैचों में 4878 रन बनाए हैं. लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान कप्तानी को लेकर है. वो अकेले ऐसे कप्तान हैं जिनको दो सौ से ज्यादा मैचों का अनुभव है. उनके नाम 204 मैचों में 121 जीत और सिर्फ 82 हार दर्ज है. सिर्फ चेन्नई के लिए कप्तानी की बात करें तो धोनी ने 190 मैचों में 116 बार टीम को जिताया है और इस दौरान केवल 73 हार का सामना करना पड़ा.

धोनी की कामयाबी का सिलसिला चेन्नई के लिए केवल आईपीएल में ही नहीं रहा बल्कि अब बंद हो चुके चैंपियंस लीग में भी रहा है. दो बार इस टूर्नामेंट को भी धोनी की कप्तानी में चेन्नई ने जीता है. यानि आईपीएल और चैंपियंस लीग दोनों को जोड़ लें तो धोनी ने 213 मैचों में से 130 में जीत दिलाई. केवल 81 में टीम हारी है. अब इस सीजन के बचे हुए मैचों में कप्तानी करके धोनी क्या पारसमणि की भूमिका निभाएंगे.

आसान नहीं होगा आगे का सफर

धोनी का मिडास टच हमेशा ही चर्चा का विषय रहता है. चाहे कप्तानी का मामला हो या फिर फिनिशर का. इस सीजन में भी धोनी ने अब तक सिर्फ एक बार अर्धशतक जमाया है. एक मौके पर छक्का लगाकर भी टीम को जीत दिलाई है. फिर भी उनमें पहले जैसी बात नहीं रही. पंजाब किंग्स के खिलाफ पिछले मैच में हालांकि उन्होंने 23 रन बनाए थे लेकिन टीम को जीत नहीं दिला सके थे. पर उससे पहले मुंबई के खिलाफ उनकी बल्लेबाजी सबको याद है.

आज चेन्नई का नौवां मैच भी सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ पुणे में होगा. ऐसे में सभी की निगाहें उसी ओर होगी. हैदराबाद के खिलाफ पिछले मैच में धोनी शून्य पर आउट हुए थे और टीम को आठ विकेट से हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में अब धोनी पर दोहरी जिम्मेवारी है.

अगर देखें तो चेन्नई सुपर किंग्स की वर्तमान टीम ज्यादा कामयाब नहीं है. टीम में कुछ युवा और ज्यादातर अधिक उम्र के खिलाड़ी हैं. इसलिए इस टीम को डैड्स आर्मी भी कहा जाता है. कागज पर जरूर यह टीम थोड़ी संतुलित है, लेकिन मैदान से संतुलन नदारद है. दीपक चाहर के चोटिल होकर बाहर हो जाने से टीम पर असर पड़ा है. इसके अलावा पिछले साल के दूसरे हाफ में शानदार बल्लेबाजी करने वाला ऋतुराज गायकवाड इस बार कुछ नहीं कर पा रहे हैं. मोईन आली ने निराश किया, ब्रावो की गेंदबाजी के अलावा टीम के पास इतराने को कुछ भी नहीं है. पहले 15 टॉप मे सीएसके का कोई बल्लेबाज शामिल नहीं है, ब्रावो जरूर टॉप 10 गेंदबाजों में शामिल है, लेकिन उसके बाद दूर दूर तक कोई भी नहीं है. कुल मिलाकर गेंदबाजी हो या बल्लेबाजी सभी में टीम को मात मिल रही है.

सीसके अगर बचे हुए मैच जीत ले, तो अब भी वह प्लेऑफ के दरवाजे पर दस्तक दे सकती है. लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा संभव लगता नहीं है. अगर धोनी का जादू चल जाए और यह मुमकिन हो जाए तो धोनी भारतीय क्रिकेट के सर्वकालिक महान कप्तान होंगे. फिलहाल एक सम्मानजनक विदाई ही टीम के जख्मों पर मरहम की तरह काम करेगी.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

ब्लॉगर के बारे में

संजय बैनर्जी

संजय बैनर्जीब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट व कॉमेंटेटर

ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट व कॉमेंटेटर. 40 साल से इंटरनेशनल मैचों की कॉमेंट्री कर रहे हैं.

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