Sawan 2022: शिव चालीसा, शिवजी की आरती पढ़ने के हैं अनगिनत फायदे, 40 बार पढ़कर हो सकते हैं सिद्ध, यहां पढ़ें


शिव चालीसा और शिवजी की आरती sawan 2022- India TV Hindi News
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शिव चालीसा और शिवजी की आरती

Highlights

  • भगवान शिव की आराधना के बाद जब हम शिव आरती करते हैं तभी हमारी पूजा संपन्न मानी जाती है
  • शिव चालीसा का 3,5,11 या फिर 40 बार पाठ करना चाहिए
  • मान्यता है शिव चालीसा लगातार 40 बार पढ़ने के बाद इंसान सिद्ध हो जाता है

Sawan Somwar 2022: आज यानी कि 18 जुलाई 2022 को सावन का पहला सोमवार है। यूं तो पूरा सावन शिवजी को समर्पित होता है लेकिन सावन के  सोमवार का महत्व ज्यादा होता है क्योंकि सोमवार शिवजी का दिन माना जाता है। भगवान शिव की पूजा करते वक्त उन्हें बेलपत्र, दूध, दही, भांग, धतूरी, शमी आदि चढ़ाया जाता है। वहीं तुलसी की पत्ती और केतकी के फूलों को शिवजी को नहीं अर्पित किया जाता है। शिवलिंग पर कभी भी हल्दी या कुमकुम नहीं लगाया जाता है। शिवजी की पूजा करते वक्त शिव चालीसा और शिवजी की आरती का खास महत्व होता है, खासकर अगर सावन के सोमवार पर आप शिव चालीसा और शिव जी की आरती पढ़ते हैं तो आपके जीवन में तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं।

सावन 2022 के सोमवार की तिथियां

  1. सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को है
  2. सावन का दूसरा सोमवार 25 जुलाई को है
  3. सावन का तीसरा सोमवार 1 अगस्त को है
  4. सावन का चौथा सोमवार 8 अगस्त को है
  5. सावन का पांचवा और आखिरी सोमवार 12 अगस्त को है

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सावन पर पढ़ें शिव चालीसा

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।


कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला ।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।

कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।

मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।

छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 

मैना मातु की हवे दुलारी ।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।

सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।

या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 

देवन जबहीं जाय पुकारा ।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।

सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।

पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।

सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।

जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।

नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।

कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।

करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।

येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।

संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।

संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।

आय हरहु मम संकट भारी ॥ 

धन निर्धन को देत सदा हीं ।

जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।

मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।

शारद नारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमः शिवाय ।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।

ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।

पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।

ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।

अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा ।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥

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सावन 2022 में पढ़ें शिवजी की आरती

भगवान शिव के कई नाम हैं लोग उन्हें महादेव, भोलेनाथ, शिव शंभू, शंकर आदि नामों से पुकारते हैं। शिवजी की आरती का काफी महत्व है। यहां पढ़िए 

ॐ जय शिव ओंकारा,

स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,

अर्द्धांगी धारा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

एकानन चतुरानन

पंचानन राजे ।

हंसासन गरूड़ासन

वृषवाहन साजे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

दो भुज चार चतुर्भुज

दसभुज अति सोहे ।

त्रिगुण रूप निरखते

त्रिभुवन जन मोहे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

अक्षमाला वनमाला,

मुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै,

भाले शशिधारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर

बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक

भूतादिक संगे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

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कर के मध्य कमंडल

चक्र त्रिशूलधारी ।

सुखकारी दुखहारी

जगपालन कारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव

जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर में शोभित

ये तीनों एका ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति

जो कोइ नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी

सुख संपति पावे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

लक्ष्मी व सावित्री

पार्वती संगा ।

पार्वती अर्द्धांगी,

शिवलहरी गंगा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

पर्वत सोहैं पार्वती,

शंकर कैलासा ।

भांग धतूर का भोजन,

भस्मी में वासा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

जटा में गंग बहत है,

गल मुण्डन माला ।

शेष नाग लिपटावत,

ओढ़त मृगछाला ॥

जय शिव ओंकारा…॥

काशी में विराजे विश्वनाथ,

नंदी ब्रह्मचारी ।

नित उठ दर्शन पावत,

महिमा अति भारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ॐ जय शिव ओंकारा,

स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,

अर्द्धांगी धारा ॥

सावन में इस तरह करें महादेव को प्रसन्न, मिलेगा मनचाहा वरदान



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