SC: कल 240 याचिकाओं पर शीर्ष अदालत में सुनवाई, अकेले CJI की पीठ ने CAA से जुड़ी 232 अर्जियों को सूचीबद्ध किया


सुप्रीम कोर्ट

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– फोटो : अमर उजाला

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दीवाली की छुट्टियों के बाद अब कल यानी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट विवादित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) सहित करीब 240 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। गौरतलब है कि इनमें से ज्यादातर जनहित याचिकाएं हैं। इन 240 याचिकाओं में से करीब 232 याचिकाएं सीएए से जुड़ी हैं। गौरतलब है कि  मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने अकेले ही इन 232 याचिकाओं को 31 अक्तूबर यानी कल के लिए सूचीबद्ध किया है। 

इससे पहले सीजेआई यूयू ललित की पीठ ने कहा था कि नागरिकता अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा। बता दें कि भारत के मुख्य न्यायधीश यूयू ललित आठ नवंबर को रिटायर होने वाले हैं। 

याचिकाओं में क्या है?
इस मुद्दे पर मुख्य याचिका इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने दायर की थी। आईयूएमएल ने अपनी याचिका मे कहा है कि सीएए समता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक वर्ग को अलग रखते हुये अन्य गैरकानूनी शरणार्णियों को नागरिकता प्रदान करना है। याचिका में यह भी दलील दी गई है कि यह कानून संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है।

 सीएए की संवैधानिक वैधता को इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग, पीस पार्टी, असम गण परिषद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, जमायत उलेमा ए हिन्द, जयराम रमेश, महुआ मोइत्रा, देव मुखर्जी, असददुद्दीन ओवेसी, तहसीन पूनावाला व केरल सरकार सहित अन्य ने चुनौती दी है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सीएए को मूल अधिकारों पर हमला कहा है। याचिका के अनुसार, यह कानून धर्म व भौगोलिक परिस्थितियों के दो वर्ग बनाता है। 

जनवरी 2020 में, शीर्ष अदालत ने मामले में साफ किया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के संचालन पर रोक नहीं लगाएगी। 

सीएए के अलावा इन याचिकाओं पर भी होगी सुनवाई 
गौरतलब है कि साल 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया था। संशोधित कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रयास करता है, जो 2014 तक देश में आए हैं।  

सीएए पर याचिकाओं के अलावा शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर भी सुनवाई करने वाली है। अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्र और राज्यों को संसद और राज्य विधानसभाओं में पेश किए जाने से कम से कम 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइटों पर और सार्वजनिक डोमेन में मसौदा कानूनों को प्रमुखता से प्रकाशित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।  

इसके अलावा CJI की अगुवाई वाली पीठ एक अन्य जनहित याचिका पर भी सुनवाई करेगी, जिसमें एक साल के भीतर मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी जैसे विभिन्न आर्थिक अपराधों से संबंधित मामलों का फैसला करने के लिए हर जिले में विशेष भ्रष्टाचार विरोधी अदालतें स्थापित करने की मांग की गई है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट विधि आयोग को “वैधानिक निकाय” घोषित करने और पैनल के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए एक जनहित याचिका पर भी विचार करेगी। 

साथ ही, एक जनहित याचिका जिस पर 31 अक्टूबर यानी कल सुनवाई होनी है, उसमें चुनाव आयोग को मतपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) से पार्टी के प्रतीकों को हटाने और उम्र, शैक्षणिक योग्यता और उम्मीदवारों की तस्वीर लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

विस्तार

दीवाली की छुट्टियों के बाद अब कल यानी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट विवादित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) सहित करीब 240 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। गौरतलब है कि इनमें से ज्यादातर जनहित याचिकाएं हैं। इन 240 याचिकाओं में से करीब 232 याचिकाएं सीएए से जुड़ी हैं। गौरतलब है कि  मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने अकेले ही इन 232 याचिकाओं को 31 अक्तूबर यानी कल के लिए सूचीबद्ध किया है। 

इससे पहले सीजेआई यूयू ललित की पीठ ने कहा था कि नागरिकता अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा। बता दें कि भारत के मुख्य न्यायधीश यूयू ललित आठ नवंबर को रिटायर होने वाले हैं। 

याचिकाओं में क्या है?

इस मुद्दे पर मुख्य याचिका इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने दायर की थी। आईयूएमएल ने अपनी याचिका मे कहा है कि सीएए समता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर एक वर्ग को अलग रखते हुये अन्य गैरकानूनी शरणार्णियों को नागरिकता प्रदान करना है। याचिका में यह भी दलील दी गई है कि यह कानून संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है।

 सीएए की संवैधानिक वैधता को इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग, पीस पार्टी, असम गण परिषद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, जमायत उलेमा ए हिन्द, जयराम रमेश, महुआ मोइत्रा, देव मुखर्जी, असददुद्दीन ओवेसी, तहसीन पूनावाला व केरल सरकार सहित अन्य ने चुनौती दी है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सीएए को मूल अधिकारों पर हमला कहा है। याचिका के अनुसार, यह कानून धर्म व भौगोलिक परिस्थितियों के दो वर्ग बनाता है। 

जनवरी 2020 में, शीर्ष अदालत ने मामले में साफ किया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के संचालन पर रोक नहीं लगाएगी। 

सीएए के अलावा इन याचिकाओं पर भी होगी सुनवाई 

गौरतलब है कि साल 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया था। संशोधित कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रयास करता है, जो 2014 तक देश में आए हैं।  

सीएए पर याचिकाओं के अलावा शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर भी सुनवाई करने वाली है। अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्र और राज्यों को संसद और राज्य विधानसभाओं में पेश किए जाने से कम से कम 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइटों पर और सार्वजनिक डोमेन में मसौदा कानूनों को प्रमुखता से प्रकाशित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है।  

इसके अलावा CJI की अगुवाई वाली पीठ एक अन्य जनहित याचिका पर भी सुनवाई करेगी, जिसमें एक साल के भीतर मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी जैसे विभिन्न आर्थिक अपराधों से संबंधित मामलों का फैसला करने के लिए हर जिले में विशेष भ्रष्टाचार विरोधी अदालतें स्थापित करने की मांग की गई है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट विधि आयोग को “वैधानिक निकाय” घोषित करने और पैनल के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए एक जनहित याचिका पर भी विचार करेगी। 

साथ ही, एक जनहित याचिका जिस पर 31 अक्टूबर यानी कल सुनवाई होनी है, उसमें चुनाव आयोग को मतपत्रों और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) से पार्टी के प्रतीकों को हटाने और उम्र, शैक्षणिक योग्यता और उम्मीदवारों की तस्वीर लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है।





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