गुजरात:  तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व आईपीएस अधिकारी को झटका, जमानत याचिका खारिज


ख़बर सुनें

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार की जमानत याचिका सत्र न्यायालय ने खारिज कर दी। उन्हें जून में उनके एनजीओ पर एक मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था।

इससे पहले कोर्ट ने मंगलवार 2002 के सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने के एक मामले में जमानत याचिकाओं पर अपना 28 जुलाई तक के लिए टाल दिया था। अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश डीडी ठक्कर की अदालत मंगलवार को आदेश सुनाने वाली थी, लेकिन उन्होंने कहा कि वह गुरुवार को ऐसा करेगी, क्योंकि आदेश अभी तैयार नहीं हुआ है। 

अदालत ने पिछले हफ्ते सीतलवाड़, श्रीमार और अभियोजन पक्ष के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। सीतलवाड़ और श्रीकुमार को पिछले महीने अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और 194 (धन हासिल करने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) के तहत गिरफ्तार किया  था। 

मामले में जांच के लिए गठित एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अदालत को बताया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार तत्कालीन कांग्रेस नेता अहमद पटेल के इशारे पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे।  

एसआईटी ने यह भी आरोप लगाया था कि पटेल के कहने पर सीतलवाड़ को 2002 में गोधरा कांड केबाद हुए दंगों के बाद 30 लाख रुपये मिले थे। एसआईटी ने अदालत को बताया था कि श्रीकुमार एक ‘असंतुष्ट सरकारी अधिकारी’ थे, जिन्होंने ‘पूरे गुजरात राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों, नौकरशाही और पुलिस प्रशासन को बदनाम करने के गलत उद्देश्यों के साथ प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। हालांकि सीतलवाड़ और श्रीकुमार दोनों ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों से इनकार किया है। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले महीने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी द्वारा दायर याचिका को खारिज करने के बाद सीतलवाड़, श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था। 8 फरवरी 2012 को एसआईटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों समेत 63 अन्य को क्लीन चिट देते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी जिसमें कहा गया था कि अब उनके खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य कोई सबूत नहीं हैं।  शीर्ष अदालत ने इस साल 24 जून को एसआईटी द्वारा मोदी और 63 अन्य को दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा था। 

विस्तार

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व आईपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार की जमानत याचिका सत्र न्यायालय ने खारिज कर दी। उन्हें जून में उनके एनजीओ पर एक मामले के संबंध में गिरफ्तार किया गया था।

इससे पहले कोर्ट ने मंगलवार 2002 के सांप्रदायिक दंगों के सिलसिले में निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने के एक मामले में जमानत याचिकाओं पर अपना 28 जुलाई तक के लिए टाल दिया था। अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश डीडी ठक्कर की अदालत मंगलवार को आदेश सुनाने वाली थी, लेकिन उन्होंने कहा कि वह गुरुवार को ऐसा करेगी, क्योंकि आदेश अभी तैयार नहीं हुआ है। 

अदालत ने पिछले हफ्ते सीतलवाड़, श्रीमार और अभियोजन पक्ष के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। सीतलवाड़ और श्रीकुमार को पिछले महीने अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और 194 (धन हासिल करने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना) के तहत गिरफ्तार किया  था। 

मामले में जांच के लिए गठित एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अदालत को बताया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार तत्कालीन कांग्रेस नेता अहमद पटेल के इशारे पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को अस्थिर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे।  

एसआईटी ने यह भी आरोप लगाया था कि पटेल के कहने पर सीतलवाड़ को 2002 में गोधरा कांड केबाद हुए दंगों के बाद 30 लाख रुपये मिले थे। एसआईटी ने अदालत को बताया था कि श्रीकुमार एक ‘असंतुष्ट सरकारी अधिकारी’ थे, जिन्होंने ‘पूरे गुजरात राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों, नौकरशाही और पुलिस प्रशासन को बदनाम करने के गलत उद्देश्यों के साथ प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। हालांकि सीतलवाड़ और श्रीकुमार दोनों ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों से इनकार किया है। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले महीने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी द्वारा दायर याचिका को खारिज करने के बाद सीतलवाड़, श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था। 8 फरवरी 2012 को एसआईटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों समेत 63 अन्य को क्लीन चिट देते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी जिसमें कहा गया था कि अब उनके खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य कोई सबूत नहीं हैं।  शीर्ष अदालत ने इस साल 24 जून को एसआईटी द्वारा मोदी और 63 अन्य को दी गई क्लीन चिट को बरकरार रखा था। 



Source link

Enable Notifications OK No thanks