सुप्रीम कोर्ट: पॉक्सो मामले के अभियुक्त की दोषसिद्धि और सजा की रद्द, पीड़िता के बयान और शादी के मद्देनजर सुनाया फैसला


सार

निचली अदालत ने रिश्ते में पीड़िता के आरोपी मामा को पॉक्सो की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालत जमीनी हकीकत से आंखें नहीं मूंद सकती और अपीलकर्ता व शिकायतकर्ता के सुखी पारिवारिक जीवन में खलल नहीं डाल सकती।

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सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो के एक मामले में अभियुक्त की दोषसिद्धि और सजा को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि उसने पीड़िता से शादी कर ली है और उनके दो बच्चे भी हैं। साथ ही पीड़िता ने बयान भी दिया कि वह अभियुक्त के साथ सुखमय वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि यह अदालत जमीनी हकीकत से आंखें नहीं मूंद सकती और अपीलकर्ता व शिकायतकर्ता के सुखी पारिवारिक जीवन में खलल नहीं डाल सकती। हमें तमिलनाडु में लड़की का मामा से शादी करने के रिवाज के बारे में बताया गया है। पीठ ने तमिलनाडु सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि शादी केवल सजा से बचने के उद्देश्य से की गई है।

निचली अदालत ने रिश्ते में पीड़िता के आरोपी मामा को पॉक्सो की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई थी। मद्रास हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में अपीलकर्ता (अभियुक्त) ने कहा कि उस पर आरोप था कि उसने पीड़िता से शादी करने के वादे पर शारीरिक संबंध बनाए लेकिन उसने पीड़िता से शादी की और उन दोनों के दो बच्चे भी हैं।  पीठ ने महिला के बयान पर भी गौर किया, जिसमें उसने कहा था कि उनके दो बच्चे हैं और अपीलकर्ता उन सबकी देखभाल कर रहा है और वह एक सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है।

प्रदेश सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि अपराध के वक्त पीड़िता की आयु 14 वर्ष थी और उसने पहले बच्चे को 15 वर्ष की उम्र और दूसरे बच्चे को 17 वर्ष की आयु में जन्म दिया। सरकार का कहना था कि दोनों की शादी वैध नहीं है। हालांकि पीठ ने कहा कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हमारा विचार है कि अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा दरकिनार करने योग्य है। हालांकि पीठ ने साफ किया कि यदि अभियुक्त (अपीलकर्ता) महिला की उचित देखभाल नहीं करता है तो महिला या राज्य सरकार की ओर से इस आदेश में संशोधन की अपील लगाई जा सकती है।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो के एक मामले में अभियुक्त की दोषसिद्धि और सजा को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि उसने पीड़िता से शादी कर ली है और उनके दो बच्चे भी हैं। साथ ही पीड़िता ने बयान भी दिया कि वह अभियुक्त के साथ सुखमय वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि यह अदालत जमीनी हकीकत से आंखें नहीं मूंद सकती और अपीलकर्ता व शिकायतकर्ता के सुखी पारिवारिक जीवन में खलल नहीं डाल सकती। हमें तमिलनाडु में लड़की का मामा से शादी करने के रिवाज के बारे में बताया गया है। पीठ ने तमिलनाडु सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि शादी केवल सजा से बचने के उद्देश्य से की गई है।

निचली अदालत ने रिश्ते में पीड़िता के आरोपी मामा को पॉक्सो की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई थी। मद्रास हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में अपीलकर्ता (अभियुक्त) ने कहा कि उस पर आरोप था कि उसने पीड़िता से शादी करने के वादे पर शारीरिक संबंध बनाए लेकिन उसने पीड़िता से शादी की और उन दोनों के दो बच्चे भी हैं।  पीठ ने महिला के बयान पर भी गौर किया, जिसमें उसने कहा था कि उनके दो बच्चे हैं और अपीलकर्ता उन सबकी देखभाल कर रहा है और वह एक सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है।

प्रदेश सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि अपराध के वक्त पीड़िता की आयु 14 वर्ष थी और उसने पहले बच्चे को 15 वर्ष की उम्र और दूसरे बच्चे को 17 वर्ष की आयु में जन्म दिया। सरकार का कहना था कि दोनों की शादी वैध नहीं है। हालांकि पीठ ने कहा कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हमारा विचार है कि अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा दरकिनार करने योग्य है। हालांकि पीठ ने साफ किया कि यदि अभियुक्त (अपीलकर्ता) महिला की उचित देखभाल नहीं करता है तो महिला या राज्य सरकार की ओर से इस आदेश में संशोधन की अपील लगाई जा सकती है।



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