आजादी का अमृत महोत्सव : संघर्षों की झलक है बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की जन्मस्थली पर बना स्मारक


बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अछूत समाज को जगाया, खुद उनकी आवाज बने। देश के राजनीतिक ढांचे को लोकतांत्रिक स्वरूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संविधान के इस महान शिल्पी के रोम-रोम में राष्ट्रीयता के भाव भरे हुए थे।

देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से लगभग 23 किलोमीटर दूर पुराने आगरा-मुंबई मार्ग पर महू छावनी में 130 साल पहले जन्मे डॉ. भीमराव आंबेडकर अभी भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं। पहले स्वाधीनता आंदोलन और आजादी के बाद गणतंत्र की स्थापना में अहम योगदान करने वाले बाबा साहब शोषितों, वंचितों के लिए संघर्ष के प्रतीक हैं। शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो के संदेश को डॉ. आंबेडकर ने पहले स्वयं अपने जीवन में उतारा। 

उन्होंने अछूत समाज को जगाया, खुद उनकी आवाज बने। देश के राजनीतिक ढांचे को लोकतांत्रिक स्वरूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कानून मंत्री के रूप में हिंदू कोड बिल पेश करके महिलाओं को अधिकार दिलाए। संविधान के इस महान शिल्पी के रोम-रोम में राष्ट्रीयता के भाव भरे हुए थे। छुआछूत, गैर बराबरी और आर्थिक विषमताओं से संघर्ष में तपकर वे विद्रोही तो बने लेकिन विध्वंसक नहीं थे। 

उन्होंने तथागत बुद्ध के प्रज्ञा, शील, दया व करुणा के मार्ग को अपनाया। भारत की मूल संस्कृति की ओर लौटने की प्रेरणा दी। कई विचारक उन्हें जात-पात, भेदभाव, सामाजिक-आर्थिक विषमता, रूढि़वाद और धार्मिक पाखंड के खिलाफ भविष्य का दर्शन मानते हैं।

खपरैल के क्वार्टर की जगह भव्य स्मारक
दो सौ साल पुरानी ब्रिटिश कालीन छावनी, मिलिट्री हेड क्वार्टर ऑफ वार (महू) का नामकरण 17 बरस पहले डॉ. आंबेडकर नगर के रूप में हो चुका है। होता भी क्यों नहीं, यह करोड़ों शोषितों, वंचितों के प्रेरणास्रोत, संविधान निर्माता, भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर की जन्मस्थली जो है। महू छावनी में खपरैल की छत वाला वह क्वार्टर तो अब नहीं है, जिसमें भीमराव उर्फ भीवा का जन्म हुआ था। इसकी जगह उनके जीवन से जुड़े हर पड़ाव की स्मृतियों को संजोएं रखने वाला भव्य स्मारक है। लगभग 90 हजार आबादी वाले महू (डॉ. आंबेडकर नगर) की पहचान यहां बने इन्फेंट्री स्कूल, मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग और आर्मी वार कॉलेज से भी है।

महू छावनी में बीते भीमराव के ढाई साल
इसी सैन्य छावनी में 1878 में सूबेदार रामजी सकपाल अफगानिस्तान से स्थानांतरित होकर आए थे। उनकी पत्नी भीमाबाई साथ में रहती थीं। भीमराव ने 14 अप्रैल 1891 को उनकी 14वीं संतान के रूप में जन्म लिया था। कबीरपंथी रामजी सकपाल पहले सैनिक थे और फिर सैन्य विद्यालय में शिक्षक रहे। भीमराव के बचपन के ढाई साल महू में ही बीते। 

उनके पुरखों का मूल गांव आंबाडवे महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में पड़ता है। वह उस समय अछूत समझी जाने वाली महार जाति से थे। इस जाति के लोग आमतौर पर धार्मिक त्योहारों के समय पालकी उठाने का काम करते थे। बहादुर लेकिन सामाजिक तौर पर हेय समझे जाने वाली जाति से ताल्लुक रखने के कारण बाबा साहब को जीवनभर रुढ़ियों, कुरीतियों से संघर्ष करना पड़ा।

श्रद्धा का केंद्र, संघर्षों की झलक है स्मारक
महू भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन से जुड़े पंच तीर्थों में से एक है। यह करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केंद्र ही नहीं, बलि्क शिक्षा, संगठन और संघर्ष की प्रेरणा देने वाला स्थल भी है। 4.52 एकड़ में फैले बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर स्मारक में उनके जीवन संघर्षों की झलक दिखाई पड़ती है। इस भव्य स्मारक के भूतल और पहली मंजिल पर विशाल हॉल में बाबा साहब की जीवनगाथा को फोटो गैलरी माध्यम से दर्शाया गया है। मुख्य द्वार पर ही डॉ. आंबेडकर की एक छोटी और एक बड़ी प्रतिमा है। भूतल के हॉल में भी साहब की बैठे हुए प्रतिमा है। फोटो गैलरी में खपरैल के उस क्वार्टर का सांकेतिक चित्र है, जिसमें बाबा साहब का जन्म हुआ था। उन्हें पालने में झुलाने की सांकेतिक तस्वीर भी उनके अनुयायियों के लिए श्रद्धा का केंद्र है।

संगठनकर्ता ही नहीं कुशल प्रशासक भी
प्रथम तल (ऊपर) के हॉल में बुद्ध की बड़ी प्रतिमा है। इस हॉल की फोटो गैलरी में कुशल संगठनकर्ता से प्रभावी प्रशासक के रूप में दर्शाने वाली बाबा साहब की तस्वीरें हैं। इसमें 1941 की वह तस्वीर भी है, जब डॉ. आंबेडकर पहली बार अपनी जन्म भूमि महू और इंदौर आए थे। महू में चंद्रोदय वाचनालय में वह 40 लोगों के साथ ग्रुप फोटो में नजर आ रहे हैं। इसके अलावा मुंबई में उनके ऐतिहासिक स्वागत, समता सैनिक दल, महिला कार्यकर्ताओं और इंदौर में कार्यकर्ताओं के साथ चित्र हैं। 

1947 में गठित अंतरिम सरकार के प्रथम मंत्रिमंडल, पूना पैक्ट के समय महात्मा गांधी से वार्ता, 1950 में महार रेजिमेंट के सैनिकों के साथ, पहली पत्नी रमाबाई आंबेडकर, विजय लक्ष्मी पंडित और अपने परिवार के साथ चित्र लगे हैं। संसद में हिंदू कोड बिल पर चर्चा के जवाब, संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में भी फोटो हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय में डिग्री लेते हुए और श्रम मंत्री के रूप में उनके फोटो हैं।

अस्थि कलश का दर्शन करते हैं सैकड़ों लोग
डॉ. आंबेडकर स्मारक में पीछे की तरफ भीम जन्म भूमि स्मारक समिति की देखरेख में बाबा साहब के अस्थि कलश और उनका अंतिम ग्रंथ ‘बुद्धा एवं उनका धम्म’ स्थापित है। बाबा साहब आंबेडकर स्मारक समिति के उपाध्यक्ष राजेंद्र वाघमारे बताते हैं कि बाबा साहब के अस्थि कलश नागपुर, दादर (मुंबई) और महू स्मारक में रखे हुए हैं। हर रोज सैकड़ों लोग और खास मौके पर हजारों-लाखों लोग दर्शन कर प्रेरणा लेते हैं। वह बताते हैं कि भीम जन्म भूमि के लिए भंते धम्मशील ने लंबी लड़ाई लड़ी। यहां उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है। जल्द ही स्मारक में सौ फुट ऊंचा तिरंगा लगेगा। एलईडी पर बाबा साहब के विचारों को प्रदर्शित करने की व्यवस्था की जा रही है।

शताब्दी वर्ष में हुआ शिलान्यास
बाबा साहब के स्मारक का शिलान्यास उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा ने किया था। इसका लोकार्पण उनके 117वें जन्म दिन पर 14 अप्रैल 2008 को पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया था। बाबा साहब की 125वीं जयंती पर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मारक का भ्रमण किया था और 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां आए थे।

दुनियाभर के शोधार्थियों के लिए बने पीठ
इंदौर हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और आंबेडकरवादी केपी गनगोरे डॉ. आंबेडकर के स्मारक को उनके व्यक्तित्व के अनुरूप नहीं मानते है। उन्होंने कहा कि बाबा साहब देश विदेश के शोषितों और दलितों की चेतना के प्रतीक हैं। जिस दौर में उन्होंने पढ़ाई की, तब छुआछूत थी। पुलिस में इज्जत वाले काम धंधे नहीं मिलते थे। इन हालात में जिन विचारों ने उन्हें आगे बढ़ाया, उनकी झलक स्मारक में मिलनी चाहिए। यहां बाबा साहब की शोध पीठ बननी चाहिए, ताकि शोधार्थी आकर उन पर शोध कर सकें। उनका कहना है कि स्मारक के पास सेना की कई एकड़ खाली भूमि पड़ी हुई है। इसे स्मारक समिति को दिया जाना चाहिए।

बाबा साहब से जुड़े पंच तीर्थ
भीम जन्म भूमि, डॉ. आंबेडकर नगर (महू), इंदौर, मध्यप्रदेश
डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक (परिनिर्माण भूमि), नई दिल्ली
दीक्षा भूमि (धर्मांतरण स्थल), नागपुर
चैत्य भूमि (समाधि स्थल) दादर, मुंबई
डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर
स्मारक, लंदन, ब्रिटेन

भीमराव के पिता सूबेदार रामजी सकपाल 1894 में सेना से सेवानिवृत्त हो गए। उस समय भीमराव की उम्र ढाई वर्ष थी। कुछ दिन महू के आर्मी कैप में रहने के बाद रामजी सकपाल परिवार समेत महाराष्ट्र में रत्नागिरी में पैतृक गांव आंबाडवे के पास दापोली चले गए। उस समय तक दापोली नगर परिषद की पाठशालाओं में अछूत बच्चों के दाखिला लेने पर पाबंदी थी। वहां से वह सतारा चले गए और पीडब्लूडी दफ्तर में स्टोर कीपर की नौकरी करने लगे। उस समय उनकी 14 संतानों में पांच ही जीवित थीं। तीन पुत्र और दो पुत्रियां। भीमराव सबसे छोटे होने के कारण सबके लाडले थे।

गुरु ने बनाया आंबेडकर
महाराष्ट्र में ज्यादातर लोग अपना उपनाम गांव के नाम के साथ ‘कर’ लगाकर रखते है। भीमराव के गांव का नाम आंबाडवे था। उनका सरनेम था, ‘आंबाडवेकर’। भीमराव जिस सेकंडरी स्कूल में पढ़ते थे, उसमें एक ब्राह्मण अध्यापक का सरनेम आंबेडकर था। वह भीमराव को बहुत प्यार करते थे। उनके लिए अपने घर से रोटी लाते थे। भीमराव उनसे बहुत प्रभावित थे। उन्हें अपना उपनाम बोलने में कठिन लगता था। इन्हीं शिक्षक की सलाह पर उन्होंने अपना उपनाम आंबेडकर रख लिया। अध्यापक ने स्कूल के रजिस्टर में भी भीमराव आंबेडकर नाम दर्ज किया।

n भीमराव ने सतारा के बाद मुंबई के एल्फिंस्टन हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। बाद में बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ ने भीमराव के लिए 25 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप मंजूर कर दी और उन्होंने इंटर व बीए की परीक्षा पास की। 
n स्कॉलरशिप से ही अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमए, पीएचडी की। इसके बाद लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से भी डिग्री ली।

1941 में महू आए थे…
राजेन्द्र वाघमारे बताते हैं कि बाबा साहब डॉ. आंबेडकर अपने जन्म के 50 साल बाद 1941 में महू और इंदौर आए थे। महू के चंद्रोदय वाचनालय में उन्होंने लोगों को संबोधित किया था। उहोंने लकड़ी की वह कुर्सी दिखाई, जिस पर बाबा साहब बैठे थे। यह कुर्सी अब बौद्ध विहार की शोभा बनी हुई है। डॉ. आंबेडकर मैमोरियल सोसायटी, महू का पंजीकरण 24 सितंबर 1972 को हुआ था। 1980 को 22500 वर्ग मीटर जमीन का लीज एग्रीमेंट हुआ। स्मारक समिति के पहले अध्यक्ष भंते धर्मशील थे। मौजूदा अध्यक्ष भंते सुमेध बोधी हैं।

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