यूक्रेन पर हमला: रूस के खिलाफ शुरू हो गया है अब तक का सबसे बड़ा और अनोखा युद्ध! क्या इस जंग से टूट जाएंगे पुतिन?


सार

विदेशी मामलों के जानकार और यूरेशिया पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम से जुड़े आनंद राज कहते हैं कि रूस के ऊपर प्रतिबंध लगाने का तब तक कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, जब तक यूरोप की निर्भरता रूस के ऊपर से कम नहीं हो जाती…

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रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो सवाल उठने शुरू हुए कि आखिर दुनिया के सबसे ताकतवर देश चुप क्यों हैं। यूक्रेन के युद्ध में सैन्य बल के तौर पर मदद के लिए न तो नाटो सामने आया और न ही अमेरिका समेत यूरोपीय देशों का यूरोपीय संघ। लेकिन युद्ध के तकरीबन 36 घंटे गुजर जाने के बाद पश्चिमी देशों ने के रूस के ऊपर तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। विशेषज्ञों के मुताबिक यूक्रेन के विरोध में रूस के खिलाफ यह एक तरह से अब तक की सबसे बड़ी ‘इकोनामिक वॉर’ शुरू हो चुकी है। अब सवाल यही उठता है क्या ‘इकोनॉमिक वॉर’ से रूस झुक जाएगा या उसको इस बात का अंदाजा था और उसकी अपनी दूसरी तैयारियां हैं।

विदेशी मामलों के जानकार और यूरेशिया पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम से जुड़े आनंद राज कहते हैं कि रूस के ऊपर प्रतिबंध लगाने का तब तक कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, जब तक यूरोप की निर्भरता रूस के ऊपर से कम नहीं हो जाती। राज कहते हैं अगर आप यूरोप के व्यापारिक मॉड्यूल को समझेंगे तो आपको लगेगा कि यूरोप की ज्यादातर व्यापारिक गतिविधियां अमेरिका की बजाय रूस से अधिक जुड़ी हुई हैं। खासतौर से प्राकृतिक गैस समेत अन्य उत्पादों के मामलों में रूस का यूरोपीय संघ के देशों में अधिक दखल है।

यूरोपीय संघ के देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर

आनंद राज कहते हैं कि यह तो बिल्कुल तय है कि जब किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगते हैं तो उसको परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं। लेकिन देखने वाली बात यह होती है कि आर्थिक प्रतिबंध किस मुल्क पर लगाए जा रहे हैं। वे कहते हैं जितना आर्थिक प्रतिबंध लगाने का नुकसान रूस को होगा, उससे कहीं ज्यादा बढ़ती हुई कीमतों के तौर पर अर्थव्यवस्था यूरोपीय संघ के देशों की भी बिगड़ेगी। क्योंकि इन देशों की अर्थव्यवस्था में रूस का भी योगदान है या यूं कह लें कि व्यापारिक दृष्टिकोण से यूरोप के अधिकांश देश रूस पर भी निर्भर हैं।

आर्थिक मामलों के जानकार और सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज ऑफ़ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर आरएन जिंदल कहते हैं कि किसी एक देश का बहिष्कार आर्थिक तौर पर किया जाता है, तो वह देश दसियों साल को पीछे चला जाता है। वे कहते हैं कि अब युद्ध की परिभाषा बदल चुकी है। अमेरिका और यूरोपीय संघ देशों ने जिस तरीके से रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं उसे आप ‘इकोनॉमिक वॉर’ कह  सकते हैं। जो दुनिया के अलग-अलग मुल्कों ने रूस के खिलाफ शुरू किया है। वे कहते हैं कि अमेरिका ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत यूरोपीय संघ के देशों को आपस में मिलाकर यूक्रेन का साथ देने के लिए आर्थिक मोर्चे पर रूस के ऊपर बड़े-बड़े प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। प्रोफेसर जिंदल का मानना है कि संभव है जितना रूस दुनिया के दूसरे मुल्कों पर निर्भर है, दुनिया के मुल्क भी कमोबेश कम या ज्यादा रूस पर निर्भर होंगे। इसका खामियाजा भी दुनिया के दूसरे देशों को भुगतना होगा। लेकिन इस इकोनॉमिक वॉर में सबसे बड़ा नुकसान भी रूस का होगा।

खामियाजा भुगतेगा रूस

विदेशी मामलों के जानकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि अमेरिका ने राष्ट्रपति समेत कई बड़ी शख्सियतों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा रूस पर यूरोपीय संघ ने भी आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि जिस तरीके से यूरोपीय संघ और अमेरिका ने रूस के ऊपर प्रतिबंध लगाया है उसका निश्चित तौर पर खामियाजा रूस को भुगतना पड़ेगा। वह कहते हैं रूस की अर्थव्यवस्था भी सिर्फ अपने मुल्क के भरोसे नहीं चल सकती है। उसे भी दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग अलग तरीके के व्यापारिक दृष्टिकोण के साथ समझौते करने पड़े हैं। यह बात अलग है कि उन समझौतों का स्वरूप यूरोपीय और अमेरिका में कितना है इसका निश्चित तौर पर आंकलन किया ही गया होगा।

वह कहते हैं जितने ज्यादा आर्थिक प्रतिबंध जितने ज्यादा दिनों के लिए लगेंगे उतना ही रूस कमजोर होगा। लेकिन वे एक बात बिल्कुल स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि इस इकोनॉमिक वॉर में सिर्फ रूस ही प्रभावित होने वाला देश नहीं होगा। पूरी दुनिया इसकी चपेट में आने वाली है। वे कहते हैं कि निश्चित तौर पर अमेरिका की कमजोर होती ताकत का परिणाम ही यूक्रेन का युद्ध है। क्योंकि यूक्रेन को तमाम आश्वासनों और नाटो के सहयोग के बाद भी मदद न मिल पाना यह बताता है कि अमेरिका अपनी ताकत खो रहा है।

विस्तार

रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो सवाल उठने शुरू हुए कि आखिर दुनिया के सबसे ताकतवर देश चुप क्यों हैं। यूक्रेन के युद्ध में सैन्य बल के तौर पर मदद के लिए न तो नाटो सामने आया और न ही अमेरिका समेत यूरोपीय देशों का यूरोपीय संघ। लेकिन युद्ध के तकरीबन 36 घंटे गुजर जाने के बाद पश्चिमी देशों ने के रूस के ऊपर तमाम तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। विशेषज्ञों के मुताबिक यूक्रेन के विरोध में रूस के खिलाफ यह एक तरह से अब तक की सबसे बड़ी ‘इकोनामिक वॉर’ शुरू हो चुकी है। अब सवाल यही उठता है क्या ‘इकोनॉमिक वॉर’ से रूस झुक जाएगा या उसको इस बात का अंदाजा था और उसकी अपनी दूसरी तैयारियां हैं।

विदेशी मामलों के जानकार और यूरेशिया पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम से जुड़े आनंद राज कहते हैं कि रूस के ऊपर प्रतिबंध लगाने का तब तक कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, जब तक यूरोप की निर्भरता रूस के ऊपर से कम नहीं हो जाती। राज कहते हैं अगर आप यूरोप के व्यापारिक मॉड्यूल को समझेंगे तो आपको लगेगा कि यूरोप की ज्यादातर व्यापारिक गतिविधियां अमेरिका की बजाय रूस से अधिक जुड़ी हुई हैं। खासतौर से प्राकृतिक गैस समेत अन्य उत्पादों के मामलों में रूस का यूरोपीय संघ के देशों में अधिक दखल है।

यूरोपीय संघ के देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर

आनंद राज कहते हैं कि यह तो बिल्कुल तय है कि जब किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगते हैं तो उसको परिणाम भुगतने ही पड़ते हैं। लेकिन देखने वाली बात यह होती है कि आर्थिक प्रतिबंध किस मुल्क पर लगाए जा रहे हैं। वे कहते हैं जितना आर्थिक प्रतिबंध लगाने का नुकसान रूस को होगा, उससे कहीं ज्यादा बढ़ती हुई कीमतों के तौर पर अर्थव्यवस्था यूरोपीय संघ के देशों की भी बिगड़ेगी। क्योंकि इन देशों की अर्थव्यवस्था में रूस का भी योगदान है या यूं कह लें कि व्यापारिक दृष्टिकोण से यूरोप के अधिकांश देश रूस पर भी निर्भर हैं।

आर्थिक मामलों के जानकार और सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज ऑफ़ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर आरएन जिंदल कहते हैं कि किसी एक देश का बहिष्कार आर्थिक तौर पर किया जाता है, तो वह देश दसियों साल को पीछे चला जाता है। वे कहते हैं कि अब युद्ध की परिभाषा बदल चुकी है। अमेरिका और यूरोपीय संघ देशों ने जिस तरीके से रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं उसे आप ‘इकोनॉमिक वॉर’ कह  सकते हैं। जो दुनिया के अलग-अलग मुल्कों ने रूस के खिलाफ शुरू किया है। वे कहते हैं कि अमेरिका ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत यूरोपीय संघ के देशों को आपस में मिलाकर यूक्रेन का साथ देने के लिए आर्थिक मोर्चे पर रूस के ऊपर बड़े-बड़े प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। प्रोफेसर जिंदल का मानना है कि संभव है जितना रूस दुनिया के दूसरे मुल्कों पर निर्भर है, दुनिया के मुल्क भी कमोबेश कम या ज्यादा रूस पर निर्भर होंगे। इसका खामियाजा भी दुनिया के दूसरे देशों को भुगतना होगा। लेकिन इस इकोनॉमिक वॉर में सबसे बड़ा नुकसान भी रूस का होगा।

खामियाजा भुगतेगा रूस

विदेशी मामलों के जानकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि अमेरिका ने राष्ट्रपति समेत कई बड़ी शख्सियतों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा रूस पर यूरोपीय संघ ने भी आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि जिस तरीके से यूरोपीय संघ और अमेरिका ने रूस के ऊपर प्रतिबंध लगाया है उसका निश्चित तौर पर खामियाजा रूस को भुगतना पड़ेगा। वह कहते हैं रूस की अर्थव्यवस्था भी सिर्फ अपने मुल्क के भरोसे नहीं चल सकती है। उसे भी दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग अलग तरीके के व्यापारिक दृष्टिकोण के साथ समझौते करने पड़े हैं। यह बात अलग है कि उन समझौतों का स्वरूप यूरोपीय और अमेरिका में कितना है इसका निश्चित तौर पर आंकलन किया ही गया होगा।

वह कहते हैं जितने ज्यादा आर्थिक प्रतिबंध जितने ज्यादा दिनों के लिए लगेंगे उतना ही रूस कमजोर होगा। लेकिन वे एक बात बिल्कुल स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि इस इकोनॉमिक वॉर में सिर्फ रूस ही प्रभावित होने वाला देश नहीं होगा। पूरी दुनिया इसकी चपेट में आने वाली है। वे कहते हैं कि निश्चित तौर पर अमेरिका की कमजोर होती ताकत का परिणाम ही यूक्रेन का युद्ध है। क्योंकि यूक्रेन को तमाम आश्वासनों और नाटो के सहयोग के बाद भी मदद न मिल पाना यह बताता है कि अमेरिका अपनी ताकत खो रहा है।



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