हैलो बॉलीवुड, खेल के मैदान से एक और बायोपिक की कहानी तैयार है!


क्रिकेट में ऐसे मौके शायद ही आते हैं जब किसी टीम की जीत खासकर ऐतिहासिक जीत के लम्हें में खिलाड़ियों से ज्यादा सेहरा किसी कोच को मिले. गुजरात टाइटंस ने इस बार आईपीएल का ख़िताब जीता तब आशीष नेहरा की कोच के तौर पर बहुत तारीफ हुई लेकिन हार्दिक पंड्या और उनके साथी खिलाड़ियों से ज्यादा नहीं. लेकिन, यही बात मध्य-प्रदेश के पहली बार रणजी ट्रॉफी जीतने पर लागू नहीं होती है. यहां पर चैंपियन 11 खिलाड़ी या टीम से ज्यादा जीत का श्रैय नये कोच चंद्रकांत पंडित को दिया जा रहा है जिन्होंने सिर्फ 6 महीने पहले इस टीम की कमान संभाली थी. लेकिन, पंडित की तारीफ करने वालों में आगे सिर्फ क्रिकेट-पंडित नहीं बल्कि पूर्व खिलाड़ी और खुद मौजूदा एसपी की टीम के हर खिलाड़ी शामिल हैं. आलम ये है कि नए कप्तान श्रीवास्ताव ने मैच जीतने के बाद खुद की प्रशंसा पर विराम लगाते हुए ये कहा कि दरअसल उनकी रणनीति और टीम की जीत के असली हीरो पंडित ही हैं जिन्होंने हर तरीके से इस जीत की बुनियाद रखी.

किरमानी-मोरे के दौर में पंडित को मिले कम मौके

इससे पहले अपने दो दशक से ज्यादा वक्त के कोचिंग करियर में 2 अलग-अलग टीमों के साथ 5 बार रणजी ट्रॉफी जीतने वाले कोच के लिए ये ट्रॉफी अगर सबसे अहम भले ही ना सही लेकिन सबसे भावनात्मक और दिल के करीब जरूर रही है. तभी तो जीत के लम्हें के दौरान पंडित ना तो खुद को रोक पाएं और ना ही अपने आंसूओं को. 4 दशक पहले एक युवा खिलाड़ी के तौर पर फर्स्ट क्लास क्रिकेट में शुरुआत करने वाले पंडित को टीम इंडिया के लिए विकेटकीपर के तौर पर बहुत ज्यादा मौके नहीं मिले क्योंकि वो सैय्यद किरमानी और किरण मोरे वाले दो दौर के बीच में आए. लेकिन, सिर्फ बल्लेबाज के तौर पर ही पंडित इतने काबिल थे कि 1991 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्होंने एक शुद्ध बल्लेबाज के तौर पर टेस्ट मैच खेला जब मोरे उस टीम में विकेटकीपर थे.

मुंबई से किया मध्य प्रदेश का रुख, इतिहास बनाने से पहले चूक गए थे

भारत के लिए बहुत ज़्यादा मौके नहीं मिलने की बात से पंडित को कभी खटास नहीं हुई और उन्होंने घरेलू क्रिकेट में मुंबई से बहुत साल खेलने के बाद मध्य-प्रदेश का रुख किया. 1998-99 में कप्तान के तौर पर पंडित एमपी की टीम को इतिहास रचने के बेहद करीब ले आए. बेंगलुरु के इसी चिन्नास्वामी स्टेडियम में मैच के पांचवे दिन उनकी टीम जब एक निश्चित जीत की तरफ बढ़ रही थी तब अचानक एक नाटकीय बदलाव आया और वो हार गए. पंडित इत्तेफाक से क्रिकेट के मैदान पर उस दिन पहली बार रोये थे. हार के बाद पंडित ने अपने मुंह को हाथों से छिपा कर अपनी निराशा और आंसूओं को किसी और के देखने नहीं दिया. लेकिन, ये बात उनके दिल में चुभ गयी.

पंडित का स्वभाव नरम लेकिन क्रिकेट को लेकर मिजाज काफी सख्त

मुंबई के लिए कई बार चैंपियन बनने के बावजूद पंडित को ऐसा लगा कि वो अपने दम पर किसी दूसरी टीम को चैंपियन बनाने में आखिर क्यों चूक गये. मलाल ने उन्हें करियर की नई दिशा दी और घरेलू क्रिकेट में उन्होंने नई सदी में कोच के तौर पर एंट्री की. इस दौर में इस लेखक को भी पंडित के साथ बात-चीत करने का मौका मिला. पंडित स्वभाव के नरम हैं लेकिन क्रिकेट को लेकर काफी सख़्त हैं और कभी भी हल्की बातें नहीं करते हैं. लेकिन, कड़े मिज़ाज वाले पंडित भी रविवार को अपनी भावना का इज़हार सार्वजनिक तौर पर करने से बच नहीं पाये. उनके आंसूओं ने ये साबित कर दिया कि कोच के तौर पर छठी बार रणजी ट्रॉफी जीतने वाली टीम का हिस्सा होना उनके लिए शायद सबसे बड़ी संतुष्टि की बात है.

विदर्भ जैसी टीम का कायाकल्प किया, गुमनाम खिलाड़ियों की बदौलत दो बार जीता खिताबपिछले 23 सालो में पंडित मुंबई (2002-03 और 2003-04 फिर एक दशक बाद 2015-16 में) को तीन बार चैंपियन बना चुके थे और असम जैसी टीम के साथ भी जुड़े. असम के साथ उन्हें ट्रॉफी जीतने का मौका तो नहीं मिला क्योंकि उस राज्य के पास इतने बेहतरीन खिलाड़ी उस दौरे में नहीं मिलते थे. लेकिन, असम की ही तरह फिसड्डी माने जाने वाली विदर्भ की टीम का जिस तरह से उन्होंने कायाकल्प किया. विदर्भ ने उनके नेतृत्व में 2017-18 और 2018-19 सीजन में चैंपियन बना. इसके बाद पंडित ने पूरे भारत में अपनी कोचिंग का लोहा मनवा लिया. सिर्फ बीसीसीआई और आईपीएल की टीमें ही उनसे प्रभावित नहीं हुई जिसकी शायद सबसे ज्यादा जरूरत थी.

बीसीसीआई ने नहीं मिला चंद्रकांत पंडित को सम्मान!

बीसीसीआई ने पंडित को ना तो कभी ए टीम की कामन दी और और ना ही किसी आईपीएल टीम ने उन्हें सहायक कोच तक की भूमिका के लायक समझा. शायद नई पीढ़ी के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और टीमों को पंडित जैसे पूराने स्कूल वाले क्रिकेट दर्शन रखने वाले कोच जो अनुशासन से किसी तरह समझौता नहीं करता नहीं पसंद आया हो. लेकिन, किसी ने उन्हें आधुनिक टीमों के साथ जोड़ने की पहल नहीं की. लेकिन, एमपी के कप्तान आदित्य श्रीवास्तव ने सार्वजिनक तौर ये माना कि कि कोचिंग के मामले में पंडित का कोई जोड़ा नहीं है तो अब हर किसी की आंखें खुलनी चाहिए.

 जॉन राइट और गैरी कर्स्टन की याद दिलाते हैं चंद्रकांत पंडित

कुछ साल पहले फैज फजल जैसे गुमनाम खिलाड़ी को भी पंडित के चलते एक नहीं लगातार 2 बार रणजी ट्रॉफी जीतने का मौका मिला था. एक तरह से देखा जाए तो पंडित आपको कई मायनों में टीम इंडिया के पूर्व कोच जॉन राइट और गैरी कर्स्टन की याद दिलाते हैं जब हर बड़ी कामयाबी के बाद हर खिलाड़ी उन कोचों की तारीफ करते अघाता नहीं था. पंडित की कहानी अब तक पूरी तरह से फिल्मी है जिसे उन्होंने क्रिकेट जीवन में बेहतरीन तरीके से जीया है. शायद वक्त आ गया है कि नीरज पांडे या फिर फरान अख्तर जैसा कोई और डायेरक्टर पंडित की पंडितई और उनकी रोचक और दिलचस्प यात्रा को सुनहरे पर्दे पर अमरत्व का रुप देने में कामयाब हो जाये जिसके हकदार पंडित हैं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

विमल कुमार

विमल कुमार

न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.

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