संघर्ष: गांव में नहीं थी सुविधा तो सविता ने खेतों की मेढ़ पर दौड़कर बनाई फिटनेस, आज देश की हॉकी टीम की कप्तान 


कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पहचानने वाले की नजर पारखी होनी चाहिए। भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान गोलकीपर सविता पूनिया आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। प्राइमरी शिक्षा के दौरान शिक्षक ने छठी कक्षा में ही सविता पूनिया की प्रतिभा को पहचान लिया। केवल इस हीरे को तराशने की जरूरत थी। हुआ भी ऐसा ही। मेहनत करवाई तो इसका सकारात्मक परिणाम आज सभी के सामने हैं। हरियाण के सिरसा जिले के गांव जोधकां की मूल निवासी भारतीय हॉकी टीम की खिलाड़ी सविता पूनिया को वर्ष 2018 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इतना ही नहीं अभी पिछले महीने सविता पूनिया को भीम अवॉर्ड के लिए चुना गया है। हालांकि सरकार की ओर से कार्यक्रम आयोजित कर भीम अवॉर्ड प्रदान किया जाना बाकी है।

शिक्षक ने पहचाना तो पिता को किया सूचित, बोले- यह लड़की आगे तक जाएगी

सविता पूनिया गांव जोधकां के प्राइमरी स्कूल की ही छात्रा थी। वर्ष 2003 में छठी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा सविता को खेलते हुए देखा तो उनके खेल शिक्षक दीपचंद कंबोज ने पहचान लिया कि अच्छा खेलती है। उन्होंने सविता के पिता महेंद्र पूनिया, जो स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट है उनसे चर्चा की। इस दौरान कहा कि अगर सविता को मौका दिया जाए तो यह आगे तक जा सकती है।

पिता ने तुरंत प्रभाव से इस पर मेहनत शुरू कर दी। महेंद्र पूनिया बताते हैं कि उस समय वेतन कुछ ज्यादा नहीं था, सुविधाओं का भी अभाव था। लेकिन इसके बावजूद सविता को मेहनत करवाई। संघर्ष के पहले ही साल में सविता ने जूनियर वर्ग नेशनल लेवल की हॉकी प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। इसके बाद सविता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

गांव में सुविधाओं का अभाव था तो सविता ने ढाणी में खेतों की मेढ़ पर दौड़कर फिटनेस बनाई। महेंद्र पूनिया बताते हैं कि सविता को आगे ले जाने में उनके कोच सुंदर सिंह खरब का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

नियम की पक्की, घर से दूर रहकर किया संघर्ष

सविता के पिता महेंद्र पूनिया बताते है कि सविता बचपन से ही शर्मीले स्वभाव की है। घर से दूर रहने की आदत नहीं थी। इसी कारण शुरू में परेशान रही। लेकिन इसके बावजूद वह नियमों की पक्की है। इस कारण अपने आप को संभाला और संघर्ष किया। कई बार ऐसा मौका भी आया जब त्योहार या परिवार के शादी जैसे बड़े कार्यक्रमों में भी सविता शामिल नहीं हो पाई। सविता ने खेल पर ध्यान रखा। उसकी मेहनत का ही परिणाम है कि आज वह काफी उपलब्धियां हासिल कर चुकी है। इस समय सविता भुवनेश्वर में है।



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