हिंदी हैं हम शब्द-श्रृंखला में आज का शब्द है - मेघ जिसका अर्थ है 1. बादल और 2. एक राग। कवि कैलाश गौतम ने इस शब्द का प्रयोग करते हुए यह कविता लिखी है।
बरसो मेघ और जल बरसो, इतना बरसो तुम
जितने में मौसम लहराए, उतना बरसो तुमबरसो प्यारे धान-पान में, बरसो आँगन में
फूला नहीं समाए सावन, मन के दर्पण मेंखेतों में सारस का जोड़ा उतरा नहीं अभी
वीर बहूटी का भी डोला गुज़रा नहीं अभीपानी में माटी में कोई तलवा नहीं सड़ा
और साल की तरह न अब तक धानी रंग चढ़ामेरी तरह मेघ क्या तुम भी टूटे हारे हो
इतने अच्छे मौसम में भी एक किनारे होमौसम से मेरे कुल का संबंध पुराना है
मरा नहीं है राग प्राण में, बारह आना हैइतना करना मेरा बारह आना बना रहे
अम्मा की पूजा में ताल मखाना बना रहेदेह न उघड़े महँगाई में लाज बचानी है
छूट न जाए दुख में सुख की प्रथा पुरानी हैसोच रहा परदेसी, कितनी लम्बी दूरी है
तीज के मुँह पर बार-बार बौछार ज़रूरी हैकाश ! आज यह आर-पार की दूरी भर जाती
छू जाती हरियाली, सूनी घाटी भर जातीजोड़ा ताल नहाने कब तक उत्सव आएँगे
गाएँगे, भागवत रास के स्वांग रचाएँगेमेरे भीतर भी ऐसा विश्वास जगाओ ना
छम-छम और छमाछम बादल-राग सुनाओ ना
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